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विद्युल्लताकी कथा ।
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यह सुनते ही कमलश्रीके मुँह पर एक साथ उदासी छागई । वह गिड़गिड़ा कर बोली- पर प्राणनाथ, मैं आपके बिना नहीं जी सकती ? इसलिए मैं तो आपहीके साथ चलूँगी। समुद्रदत्तने तब उससे कहा- प्यारी, तुम धनवानकी लड़की हो, सुकुमार हो, और मैं एक गरीब रास्तागिर हूँ । मेरे साथ रहकर तुम्हें क्या सुख होगा ? घर छोड़कर बाहर तुम्हें सुख न मिलेगा कमलश्री । इसलिए मेरे साथ तुम्हारा जाना ठीक नहीं है । देखो, निर्धनों को प्रायः कष्ट उठाने पड़ते हैं और उनकी ऐसी दशा देख स्त्रियाँ भी उन्हें छोड़कर नौ-दो ग्यारह हो जाती हैं । कमलश्रीने कहा- मैं अधिक क्या कहूँ, पर यह याद रखिए कि मैं आपके बिना क्षण भर भी नहीं जी सकती । बहुत मना करने पर भी जब कमलश्रीने न माना, तब समुद्रदत्तने उससे कहा- अच्छा तब चलो । जो तुम्हारे भाग्य में होगा, वह होगा। क्योंकि जो होनहार होती है वह नारियलके फलमें पानीकी तरह कहीं न कहीं से आही जाती हैं, और जो जानेवाला होता है वह हाथीके खाये कैथके भीतरके की तरह किसी प्रकार चला ही जाता है।
एक दिन मौका पा कमलश्रीने समुद्रदत्तको अपने पिता के घोड़ोंका भेद बताकर कहा- मेरे पिताके इन घोड़ों में दो घोड़े सबसे अच्छे हैं। उनमें एक आकाशमें चलता है, और एक जल में | आकाशगामी सफेद जलगामी लाल है । और ये दोनों बिलकुल दुबले-पतले हैं । समुद्रदत्तने तब अपनी नौकरी के
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