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सम्यक्त्व-कौमुदी
बदलेमें उन्हीं दोनों घोड़ोंके लेनेका निश्चय किया। कमलश्रीके इस रहस्यके बतानेसे प्रसन्न होकर वह मनमें विचारने लगा-मैं बड़ा पुण्यात्मा हूँ। क्योंकि बिना पुण्यके मनोरथोंकी सिद्धि नहीं होती । इसी समय समुद्रदत्तके मित्र भी अपने अपने मालको बेच-विचाकर और अपने देशमें बिकने योग्य अच्छा अच्छा नया माल खरीद कर देशान्तरसे लौट आये। वे समुद्रदत्तसे मिले। सभीने परस्परको जिमाया और योग्य वस्तुएँ एकने एककी भेंट की। नीतिकार कहते हैं-खाना-खिलाना, देना-लेना और अपनी गुप्त बात कहना या सुनना, ये छह मित्रताके लक्षण हैं। - एक दिन समय पाकर समुद्रदत्तने अपने मालिक अशोकके पास जाकर कहा-स्वामी, अब मेरे तीन वर्ष पूरे हो गये, और मेरे साथी भी परदेशसे लौट आये हैं । इसलिए मेरी तनख्वाह आप दे दीजिए, जिससे कि मैं अपने देश चला जाऊँ। ___ अशोकने कहा-ठीक है, इन घोड़ोंमें से जो तुम्हें पसंद हो, दो घोड़े लेलो । अशोककी आज्ञा पा समुद्रदत्तने उन्हीं दोनों आकाश गामी और जलगामी घोड़ोंको छाँट लिया। यह देखकर अशोकको बड़ी चिन्ता हुई। ___ उसने समुद्रदत्तसे कहा-अरे-ओ मुखोंके अगुआ ! सचमुच तू बड़ा ही मूर्ख है । तू कुछ नहीं जानता । बतला तो इन बदसूरत और दुबेल-पतले घोड़ोंको लेकर क्या करेगा?
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