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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मलताकी कथा । मैं मार डालूंगा। ऐसा कहकर अचेत पड़े बुद्धसिंहको उसके पास रखकर वह लगा रोने । पद्मश्रीने मनमें विचारा-मेरे जो कर्मोंका उदय है, उसे कौन मेट सकता है ? अस्तु, जो हो, उसने हाथ जोड़कर कहा-यदि मेरे हृदयमें जिनधर्मका पक्का श्रद्धान है, यदि मैं सच्ची पतिव्रता हूँ, यदि मुझे रात्रिभोजनका त्याग है, तो हे-शासनदेवता, मेरे प्राणनाथ और ये दोनो व्यापारी सचेत हो जायँ ! आश्चर्य है कि-इतना कहते ही पद्मश्रीके व्रतके प्रभावसे वे तीनों उठ बैठे । यह देखकर शहरके लोगोंने पद्मश्रीकी प्रशंसा कर कहा-इसे धन्य है, जो ऐसी सुन्दर होने पर भी यह पतिव्रता है । यह बड़े आश्चर्यकी बात है। नीतिकारोंने कहा है कि राजनीतिमें निपुण राजा यदि धार्मिक हो तो उसमें आश्चर्य नहीं, वेद और शास्त्रोंको पढ़ा हुआ ब्राह्मण यदि पंडित हो, तो भी कुछ आश्चर्य नहीं; पर हाँ रूपवती और यौवनवती स्त्री यदि पतिव्रता हो, तो आश्चर्य है तथा निर्धन मनुष्य यदि पाप न करे तो आश्चर्य है। इस तरह प्रशंसा कर नगरके लोगोंने पद्मश्रीकी पूजा की । देवोंने पंचाश्चर्य किये । यह सब वृत्तान्त धाडिवाइनने भी देखा । उसे बड़ा वैराग्य हुआ । वह कहने लगा-जिनधर्मको छोड़कर और किसी धर्मसे इष्टसिद्धि नहीं हो सकती । इसलिए इसी धर्मको स्वीकार करना चाहिए। ऐसा विचार कर अपने नयविक्रम नामके पुत्रको राज्य देकर उसने यशोधर मुनिके पास जिन For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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