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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यक्त्व-कौमुदी दीक्षा लेली। उसके साथ और भी बहुतसे लोगोंने दीक्षा ली। बौद्धधर्मावलम्बी बुद्धदास और बुद्धसिंहने जैनी हो श्रावकोंके व्रत लिये । और कई लोगोंने अपने परिणामोंको ही सुधारा । इधर पद्मावती रानी, वृषभदास सेठकी स्त्री पद्मावती, तथा पद्मश्री आदिने सरस्वती आर्यिकाके पास दीक्षा ग्रहण की। __ यह कथा सुनाकर पद्मळताने अर्हद्दाससे कहा-प्राणनाथ, यह सब वृत्तान्त मैंने प्रत्यक्ष देखा है, इसीसे मुझको दृढ़तर सम्यक्त्वकी प्राप्ति हुई है । यह सुनकर अहंदासने कहा-प्रिये, जो तुमने देखा है, मैं उसका श्रद्धान करता हूँ, उसे चाहता हूँ और उस पर रुचि-प्रेम करता हूँ। अईहासकी और और स्त्रियोंने भी ऐसा ही कहा । परन्तु कुन्दलताने सबकी हाँम हाँ न मिलाकर कहा-यह सब झूठ है, मैं इसका श्रद्धान नहीं करती। राजा, मंत्री और चोरने अपने अपने मनमें विचारा-पद्मलताकी प्रत्यक्ष देखी हुई बातको भी कुन्दलता झूठ बतलाती है । वास्तवमें यह बड़ी पापिनी है । राजाने कहा-सबेरे ही मैं इसे गधे पर चढ़ाकर शहरसे बाहर निकाल दूंगा। चोरने कहा-दुष्टोंका ऐसा स्वभाव ही होता है । - - For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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