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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मलताकी कथा | गया । वहाँ पद्मश्री जिनेन्द्र भगवान् की पूजा कर रही थी । पद्मश्रीने इस समय यौवनावस्था में पदार्पण किया ही था । इसलिए वह परम सुन्दरी थी । उसकी बाणी बड़ी मीठी और सरस थी । उसके स्तन उन्नत थे। होंठ पके कुँदुरुके समान थे और मुख चन्द्रमाके समान था । उसकी अनोखी सुन्दरताको देखकर नीच बुद्धसिंह कामान्ध हो गया । जैसे तैसे वह घर पर आकर खाट पर पड़ गया । पुत्रको चिंतित देखकर उसकी माताने उससे पूछा- बेटा, आज तुझे खाना-पीना क्यों नहीं रुचता ? तुझे क्या कोई बड़ी भारी चिन्ता है? लाज छोड़कर सब कारण बतला । बुद्धसिंह बोला-मा, यदि वृषभदास सेठकी लड़की पद्मश्री के साथ मेरा विवाह हो, तो कहीं मैं जी सकता हूँ । अन्यथा मरनेके सिवा मेरे भाग्य में और कुछ नहीं बदा है। माने लड़के का यह हाल सुनकर अपने पतिसे जाकर कहा । बुद्धदासने आकर तब बुद्धसिंहसे कहा- देखो, वृषभदास जैनी है, मदिरा और मांस खानेवाले हम लोगोंको वह चांडालकी तरह देखता है तब तेरे साथ वह अपनी कन्याको कैसे व्याह देगा ? इसलिए जिस वस्तुको पा सको उसीके लिए हठ करना अच्छा होता है । और दूसरी बात यह है कि जिनका आचारविचार एकसा हो, समान कुल हो, समान गुण हों, उन्हींसे मित्रता, विवाह आदि सम्बन्ध होते हैं । यह सुनकर बुद्धसिंहने कहा - पिताजी, ज्यादा बातोंसे क्या मतलब ? मैं उसके बिना किसी तरह नहीं जी सकता । बुद्धदासने कहा-सच है, कामका For Private And Personal Use Only १०५
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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