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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org adisney Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४ सम्यक्त्व -कौमुदी - यह बड़ी दुष्टा है । इसे सबेरे ही गधे पर चढ़ाकर शहर से निकलवा देना ही उचित है । चोरने विचारा - दुर्जनों का ऐसा स्वभाव ही होता है। बिना किसीकी निन्दा किये उन्हें अच्छा ही नहीं लगता । कौभा अच्छी अच्छी चीजोंको खाता है, पर उसे विष्टाके बिना तृप्ति ही नहीं होती ! ६ - पद्मलताकी कथा | सके बाद अदासने पद्मलता से कहा- प्रिये, अब तुम अपने सम्यक्त्वकी प्राप्तिका कारण बतलाओ । पद्मलता तब हाथ जोड़कर यों कहने लगी CABRER RELA अंगदेशमें चंपापुर नामका नगर है । उसमें धाड़िवाहन नामका राजा था। इसकी रानीका नाम पद्मावती था। उसी नगरमें वृषभदास नामका एक सेठ रहता था । वह सम्यग्दृष्टि था और सम्पूर्ण गुणोंसे युक्त था । इसकी भी स्त्रीका नाम पद्मावती था । इसके पद्मश्री नामकी एक लड़की थी । वह बड़ी रूपवती थी । इसी नगरमें बुद्धदास नामका एक और सेठ रहता था । यह बौद्धधर्मका अनुयायी और प्रसिद्ध दानी था । इसकी स्त्रीका नाम बुद्धदासी था और लड़केका बुद्धसिंह । एक दिन बुद्धसिंह अपने मित्र कामदेवके साथ कौतूहल- वश जिनमंदिरमें चला For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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