________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सम्यक्त्व-कौमुदीबड़ा ही विषम प्रभाव है-उसके सामने किसीकी नहीं चलती। जो काम रूपी आगसे जल रहा है, उस पर अमृत भी क्यों न सींचा जाय उसकी वह आग कभी न बुझेगी। नीतिकारने बहुत ठीक लिखा है कि
तभीतक प्रतिष्ठा-मान-मर्यादा बनी रहती है, तभीतक मनमें चपलता नहीं आ पाती-मन शान्त बना रहता है और तभीतक संसारके तत्वोंका ज्ञान करानेवाले दीपक रूप सिद्धान्तशास्त्रकी नई नई बातें मनमें सूझा करती हैं-प्रतिभाका विकाश होता रहता है, जबतक कि समुद्रकी लहराती हुई लहरोंके समान चंचल मानिनी स्त्रियोंके कटाक्षोंकी-हाव-भाव-विलासोंकी मारसे जर्जरित होकर हृदय लम्बी लम्बी निसासें न डालने लगे।
बुद्धसिंहकी भी यही दशा है। असलमें यह मूर्ख है। इसको वशमें करना कठिन है । और सब साध्य है, पर मूर्खका वश करना बड़ा ही असाध्य है । मगरके मुंहमें हाथ देकर नुकीली डादोंके तले दबा हुआ माण निकला जा सकता है, अनन्त तरंगोंसे लहराता हुआ समुद्र तैरा जा सकता है, क्रोधित साँप फूलकी तरह सिर पर रखा जा सकता है, पर हठी और मूर्खका चित्त वशमें नहीं किया जा सकता। जिसकी जो आदत पड़ जाती है, फिर सैकड़ों तरहकी शिक्षाओंसे भी वह नहीं छूटती । अस्तु, बुद्धदासने बुद्धसिंहसे कहा-अच्छा थोड़ा धैर्य रक्खो। मैं इस कामके लिए शनैः शनैः यत्न करता हूँ। देखो, पानी डालनेसे धीरे धीरे जमीन तर हो जाती है, विनयसे
For Private And Personal Use Only