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छाउड़े ( ८५ )
छिनछवि उदा० आलम अकेली तू मैं आजु कछु और देखी । छाली-वि० [?] निर्मल, स्वच्छ ।
औरै सुनी ओरै चालि औरनि की छाँह | उदा० अधरा मुसकान तरंग लसै रसखानि सुहाइ सों।
-पालम महाछवि छाली।
-रसखानि छाउड़े-संज्ञा, पु० [हिं० छौना] पशुओं का छावर-संज्ञा, पु० [सं० शाव] हाथी का जवान बच्चा, शावक ।
बच्चा । उदा० धरिये न पाउँ बलि जाउँ राधे चन्दमुखी उदा० गुज्जरत गुंज सिंह गज्जन के कुंभ बैठे छोटे वारों मन्दगति पै गयंद पति छाउड़े।
छौना छेके फिरै छरहरे छावरनि । -देव
-गंग छाक-संज्ञा, स्त्री० [हिं० छकना] नशा, मस्ती
छावा-संज्ञा, पु० [सं० शावक] गज शावक, उदा० छिनकु छाकि उछकै न फिरि, खरौ विषम
। छोटा हाथी, हाथी का बच्चा। छवि-छाक ।
-बिहारी
उदा० दीनी मुहीम को भार बहादुर छाबो गहै छाटी-वि० [प्रा० छंटि] सिंचित ।
क्यों गयंद को टप्पर ।
-भूषण उदा० फहरै फुहारे नीर नहरै नदी सी बहै छहरै छिकरा-संज्ञा, पु० [बुं०] हरिण ।। छबीन छाक छीटिन की छाटी है।
छरकत छैल पात के खरके छिकरा लौं भगि -पद्माकर जाई ।
--बक्सी हंसराज छात-संज्ञा, पु० [सं० क्षत] चोट, घाव, जख्म ।
छिछि-संज्ञा, स्त्री० [हिं० छींटा] १. छींटा, बूंद उदा० रूप अघाति न छातनि देव, सुबातनि बातनि
२. फुहार,धारा। घूघट गोठनि।
--देव
उदा० १. प्रति उच्छलि छिछि त्रिकूट छयो। पुर छाद-वि० [सं० छादन] छाई हुई, फैली हुई
रावन के जल जोर भयो। -केशव २. पाच्छादित, छिपी हुई।
२. उड़ि स्रोनित छिछि प्रयास तट, पय कों उदा० नाभि की गंभीरता विलोकि मन भूलि जात,
कम ज्यौं पिचकारि छुट । सुरसरि सलिल के भ्रम छबि छाद री ।
-मानकवि -सिवनाथ
छिक-संज्ञा, पु० [?] चैन, पाराम, । छान-संज्ञा, स्त्री० [सं० छादन] छप्पर, छानी।
उदा० छाक छके छलहाइन में छिक पावै न छैल उदा० श्री वृषभान की छान धुजा अटकी लरकान
छिनौ छबि बाढ़ । .
-पद्माकर ते पान लई री।
-रसखनि छिड़ियाना-क्रि० अ० [देश॰] मचलना। छानमा-क्रि० सं० [सं० क्षरण] १. भेदना, छेद उदा० रस के निधान बसकरन बिधान कहौ प्राज करना, भेद करके पार करना २. बांधना।
इडियाने छिड़ियाने कैसे डोलौ हौ। उदा० प्रान प्यारे कंत, कित बसं हो इकंत, इत
-ठाकुर अंतक बसंत, तुम बिन डाई छाती छानि ।
-देव
छिद्र--संज्ञा, पु० [सं०] अवसर, मौका, अवकाश। छामता-संज्ञा, स्त्री० [सं० क्षाम] क्षीणता,
उदा० तब तिहि समै छिद्र यह पाइ । रामपूत दुर्बलता, कृशता ।
यह बिनयो जाइ ।
-केशव उदा० छामता पाइ रमा ह्व नई परंजक कहा
छिनकना-क्रि० [अनु० छनछना] जलना, छनकरै राधिका रानी।
-दास
छना कर जलना। छाय-संज्ञा, स्त्री० [हिं० छार] छार, मिट्टी रज
उदा० मैं लै दयी, लयौ सु, कर छवत छिनकि गौ २. व्रण, घाव [हिं० छात] ३. छाया।
नीरु। लाल तिहारौ अरगजा उर ह्व उदा० ब्रह्मादिक इंद्रादिक बंदना करत तिन, चरन
लग्यो अबीर ।
- बिहारी की छाय ब्रज छायी ही रहत हैं ।
छिनछवि-संज्ञा, स्त्री० [क्षण-छबि] बिजली,
-ब्रजनिधि विद्युत्। २. लाल पाग बाँधे, धरे ललित लकुट कांधे अवा० घूघट घटान छिनछवि की छटा सी छिति मैन सर साँधे सो करन चित छाय को।
ऊपर बिलोकिबै को मुकुंर मँजाइ ल । -घनानंद ।
-पद्माकर
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