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-देव
-देव
छिपन
छुहावनी छिपन--संज्ञा, पु० [हिं० छिपाना] गोपन, दुराव | उदा० १. प्रेम मतवारी, छवि छीते की खुमारी, २. कपट ।
छिति मुरछित डारी, नारी नारी में न उदा० जो पीय ब्याहि लायौ. तासों रोपी है छिपन
लहिये । सब लोक लाज लोपी, दुरनीति करी है। छीतना-क्रि० सं० [सं० क्षति] निदित करना
-ग्वाल कलंकित करना, बुराई करना। छिपिया-संज्ञा, पु० [देश॰] दरजी, कपड़े सीने उदा० कहै परताप पाये मोहन रंगीले स्याम नख वाला।
सिख देखि करि आनन छित रही। उदा० छिपिया को दूधभात खीचरी है करमा की
--प्रतापसाहि चक्करा रैदास जू चमार के खाये हैं।
छींद - संज्ञा, स्त्री० [हिं० छिनार] छिनार स्त्री, -ठाकुर
-चरित्र भ्रष्टा नारी, व्यभिचारिणी।। छियरा-संज्ञा, स्त्री० [हिं० छोर] खूट, छोर .
उदा. जब तें छबीले ज के ईछन तीछन देखे, किनारा ।
ताछिन तैं छींद कैसे छंदनि करति है । उदा० जोतिष देख ले ऐसी कहै गठियाय ले अांचर
-सुन्दर के छियरा सों।
-ठाकुर छोबर संज्ञा, स्त्री० [देश॰] एक प्रकार का छिरद-संज्ञा, स्त्री० [?] हठ जिद।
कपड़ा मोटी छीट, वह कपड़ा जिसमें बेल बूटे उदा० छाल कों उढ़ाइ जल छोटै छिरकाइ नेक, छपे हों। नाग को छुवाइ याकी छिरद मिटाइदै । उदा० हा हा हमारी सौं साँची कही वह को हुती
-पद्माकर छोहरी छीबरवारी । छिरहरे-वि० [हिं० छरहरा] हलका, थोड़ा, छोर-संज्ञा, पु० [सं० छीर] पानी। कम ।
उदा० नल छोर छींट बहाइयो ।
-केशव उदा० छिरहरे जल जैसे दरी कमदकली. ऐसे छीव -वि. [?] उन्मत्त, मस्त । उरोजनि दीनी सुरुचि दिखाई सी।
उदा , छपद छबीले छीव पीवत सदीव रस, लंपट -गंग
निपट प्रीति कपट ढरे परत । ---देव छिहरना-क्रि० अ० [सं० क्षरण] छिछकारना
छुटना-क्रि० प्र० [हिं छूटना] चमकना, दीप्त छितराना, सींचना, पानी की छीटें देना।
होना, दिखाई पड़ना । उदा० मोहिलगी गरमी प्रति ही अति सीत उपाइ
उदा.-बीजु छुटै उछटै छबि देव छटै छिनु नाहि थकी करिकै हौ । को जल कोठरी मै
कटै दिन कैसे। छिहरै कवि तोष तही महि सीतल पैहौं । हरना--क्रि० अ० [हिं छुटना] छूटना,।
-तोष उदा. घूघट के घटकी नटिकी सुघुटी लटकी लटकी छीक--संज्ञा, स्त्री० [सं० क्षय] नाश, क्षय ।
गुन गूंदनि । केहूँ कहूँ न घुरै बिळूरे बिचरै न 'सेख' व्यारे श्राजु कालि पाल चाल देखो आइ,छिन जुरै निचुरै जल बूंदनि ।
-देव छिन जैसी तन-छीजन की छीक है। -पालम
सुथरे छुरि केस छवानि लगें । छीजन। --क्रि, अ० [सं० क्षयरण] घटना, कमजोर
भृकुटी जुग चाप विसाल जगें। होना, दुर्बल होना ।
-सोमनाथ उदा० सखि जा दिन तें परदेस गये पिय ता दिन
छुइना-क्रि० सं० [हिं० छुवना] रँगना, रंजित ते तन छीजत है। -सुन्दरीसर्वस्व होना, छू जाना। छोड़ना-क्रि० सं० [सं० क्षीण] १. नष्ट करना उदा. कहि देव कहौ किन कोई कछू तबते उनके हटाना २. छीनना ३. छूना, स्पर्श करना ।
अनुराग छुही ।
-देव उदा० खेलि हैं ना हम फागुअली पै छली बली है छुहावनी- वि० [हिं० छोह =प्रेम, स्नेह] प्रिय, सिर के पट छीडै ।
--बेनी प्रवीन __ अच्छी, प्यारी। छीत--वि० [प्रा० छित्त] १. स्पृष्ट, स्पर्श किया उदा. यह लात चलावनी हाय दैया, हर एक कों हुमा, छुपा हुमा, २. प्रभावित ।
नाहिं छुहावनी है । सुनी तेरी तरीफ मिला
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