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वाल
छुहो
छोटै वनी की, हित तेरे सुमाल पुहावनी है।
द्रवित आनंदघन निरंतर परति नाहिन छति ।
- घनानन्द छुही- वि० [हिं० छुवना] १. सिंचित २. रंगी छरथा-संज्ञा, पु० [प्रा० छेड़ी] १. छेड़ी, गली, हुई रंजित।
छैला, सजीला, बाँका, शोकोन । उदा० त्यौं त्यौं छुही गुलाब सी छतिया प्रतिसिय- उदा० .. माजु बधावन, सून्दर बन घनस्याम राति ।
-- बिहारी
पियरवा अइली मोरे छेरवा । -घनानन्द कवि देव कहौ किन कोई कछू, तब ते उनके छेव-संशा, पु० [सं० छेद, प्रा० छेव] १. वार, अनुराग छही ।
-देव चोट, २. घाव ३. नाश, छेद ४ भावी कष्ट टूटा--- संज्ञा, पु. प्रा० छाडिया] पोत की कंठी ।
। या दुख । उदा० तिनके बीच बिचौली चमक अरु छूटा छवि
| उदा. तहीं मेव करि छेव तुरंगम ते गहि ारी। छाई। -बक्सी हंसराज
-सूदन दून-वि० [प्रा० छुन्न, सं. क्षुण्ण] शक्ति हीन, २. अरिन के उर माहिं कीन्ह यो इमि छेव शून्य, बेसुध २. क्लीब, नपुंसक ।
-भूषण उदा० ऊजरी सी छतिया की तिया बतिया करिक ३. कोसहीन जाको कुलभेव । ताको होय वेगि करि डारति छून री।
-तोष कुलछेव ।
केशव छूम-संज्ञा, पु. [हिं० छोम खोम] १. टोटका,
४. सूरति कहत गनती न मेरे औगन की. टोना, छोम, २. चिकना, कोमल [वि० सं०
बिनती यहै है सनं राखी इहि छेव जू । क्षोमा
-सूरति मिथ उदा० द्रोपदी की लाज काज द्वारिका तें दौरि छेहना-क्रि० अ० [सं० क्षय] क्षय होना, नष्ट पाए, छूम छल छाइ रहयो अचंभो अघाइय होना, समाप्त होना ।
-गंग
उदा० छहै कलेस सबै तनके मनके चहे हहै छूरि- संज्ञा, स्त्री० [प्रा० छुरिया] मृत्तिका, मनोरथ पूरे ।
- बेनी प्रवीन मिट्टी। .
छेहरा- संज्ञा, पु[प्रा० छा=अन्त-+-हिं० रा. उदा० डारि दै दूरि कपूर को रि में ढारि दै
प्रत्य 1 अन्त । बीजनो पीर को वार दै।।
-तोष
उदा० ब्रजमोहन नवरंग छबीले तिहारी बातनि छेक-संज्ञा, पु० [हिं० छेद ] '. कटाव, खंड,
घातनि कौन छेहरा।
- घनानन्द २. नोक ३. छेद सुराख ।
छैया - संज्ञा, पु० [हिं० छवना] १. पुत्र २. पशुओं उदा० पायो ना सहेट मैं छबीली वा छबीलो छैल
का बच्चा । छोलि गई छाती मैं छुरी को छेक ह्न गयो। उदा. १. बलि को बलैया, बलभद्र जू को भैया,
- नंदराम
ऐसो देवकी को छैया, छाड़ि और कौन छेटी-संज्ञा, स्त्री० [सं० क्षिप्त, हिं० छेटा] बाधा
ध्याइये।
-गंग परेशानी।
२. हाथी कैसो छैया भई डोलति है दैया, इह उदा० चाल अटपेटी जात सखि लखि लेटी जात
कहा भयो मया या सयान कब प्राइहै। सकुचि सुझेटी जात छेटी जात सान की।
-सुन्दर -'हजारा, से छोई-संशा, स्त्री० [प्रा. छोइया]". छिलका, छेडी-संज्ञा, स्त्री० [देश.] १. छोटी गली २. ईख आदि की छाल २. दास, नौकर । बकरी [सं० छेलिका]
उदा० १. धोई ऐसी सूरत बिसूरत सी सेज बीच उदा० छेड़ी में घुसौ कि घर ईधन के घनस्याम पर
पड़ी वह बाल देखी छोई सी निचोई सी। घरनीनि पहँ जात न घिनात जू। -केशव
-बोधा छेत-संज्ञा, पु० [सं० विच्छेद] विच्छेद, वियोग । | छोटे-संशा, स्त्री० [हिं० चोट] घाव, व्रण, उदा. हिंडोरे भूलनि को रस पायी अंग-संग | चोट, आघात ।
सुख लेत । गौर स्याम जोबन माते सहि न । उदा. कह खींचि कम्मान को बान मारें, मृगा सकत छिन छेत ।
-घनानन्द । जात भागे लगीं पूर छोट। -चन्द्र शेखर
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