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छतना
उदा० गनती गनिबे तैं रहे, छत हूँ अछत समान । - बिहारी [हिं० छत्ता ] १. मधुमक्खियों घाव ३ पत्तों का बना
छतना - संज्ञा, पु० के रहने का घर २. हुआ छाता ।
उदा० १. दै पतियां कहियों बतियां श्रतना छतियां छतना करि डारी ।
— मुरलीधर २. सोहन सचाई बात करत रचाई दोऊ छबि सों, बचाई छीटें प्रोट छतनान की । छतौ वि० [सं० चत, अलक्षित ] अलक्षित, छिपा हुआ ।
-अज्ञात
उदा० छतौ नेहु कागर हिये, भई लखाइ न टाँकु, बिरह त उघय सु अब सेंहुड़ कैसो आंकु । —बिहारी छब - संज्ञा पु० [सं०] १. पत्ता २. पक्ष, चिड़ियों
का पंख ।
उदा० १. बिन हरिभजन जगत सोहै जन कौन नोन बिनु भोजन बिटप बिना छद के । --हजारा से छदन - संज्ञा, पु० [सं० छदि जीवित रहना ] भोजन, खाद्य पदार्थ ।
उदा० पट चाहे तन, पेट चाहत छदन, मन चाहत है धन, जेती संपदा सराहिबी । रहीम छनदे मंज्ञा, स्त्री० [सं० क्षणदा] १. रात्रि, रात २. बिजली ।
उदा० १. कंचुकी कसन देन, छाती उकसन देन, छन्दै गमाउ पिय हिय मैं हियोछन दे ।
-देव
छनभा--- संज्ञा, स्त्री० [सं० क्षरणप्रभा ] बिजली, दामिनि ।
उदा० अम्बर
प्रोट कियें मुख चंदहि छुट छपै छनभा न छपाई । -केशव छनभा छहारी सुघन घहारी घटा, तामें छबि सारी हिमकारी उजियारी है ।
- भुवनेस छनरुचि -- संज्ञा स्त्री० [सं० क्षरण छवि ] बिजली, विद्युत् ।
उदा० छनरुचि सरि चमकति निसिमुख में ।
-दास
छनी - वि० [सं० श्राच्छादन] हॅकी हुई, अच्छादित, छिपी हुई ।
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छरना
उदा० मनी धनी के नेह की बनी छनी पट लाज । - बिहारी छपावन - संज्ञा, पु० [सं० षट्पद] भ्रमर, भौंरा । उदा० पिजर मंजरिका छहराइ रजच्छति छाइ —देव छपाइ छपावन । छबिछोरन - संज्ञा, स्त्री० [सं० छवि = हिं० छोर सीमा ] बहुत बड़ी सुन्दरता, असीम सौन्दर्य । उदा० ग्वाल कवि भाखे छबि छोरन छवैया बेस सुख में सनैया दुख हिय के हरैया तू ।
- ग्वाल
छमा - संज्ञा स्त्री० [सं० क्षमा ] क्षमा, पृथ्वी । उदा० सायक एक सहाय कर जीवन पति पर्यंत तुम नपाल । पालत छमा जीति दुअन बवंत 1 - कुमारमरिण छमाना — क्रि० सं० [सं० क्षमा ] सहन कराना । उदा० को लगि जीव छमावै छपा मैं छपाकर की -देव छबि छाई रहे री । छमी - वि० [सं० क्षम] क्षमतावान, शक्तिशाली । उदा० मदन बदन लेत लाज को सदन देखि,. यदपि जगत जीव मोहिबे को छमी है । - केशव छरकना - क्रि० अ० [हिं० छटकना ] अलग होना, निकलना, हटना, अलग-अलग फिरना । उदा० पातहू के खरके छरके घरकै उर लाय रहे सुकुमारी । - बोधा
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छरकवारे वि० [हिं० छड़] फुरतीले, तेज । उदा० छार भरे छरहरे छग ज्यों छरक वारे, छाए हैं छबिन, छायघन छाइयत हैं ।
गंग छरकी - वि० [सं० छल ] मोहित, प्रवंचित, धोखा खाया हुआ, छला गया । उदा० प्रीति पगी नटनागर की छरकी छरकी फिर चाक चढ़ी सी । - नंदराम खरबी-संज्ञा, स्त्री० [सं० छर्दि] वमन, के, उलटी उदा० छरदी करिकै मर्यो सो नीच । तातें पाई जसवंत सिंह
महा कुमीच । छरना- क्रि० प्र० [हिं० उछलना ] २. छलना ३. चूना, टपकना [सं० उदा० परे परंजक पर परत न पीके छुवत बिछौना पै छरति है । ३. दरि दरि चंदन कपूर चूर छरि छरि भरि भरि हिम मही महल लिखाइयत ।
- देव
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१. उछलना चरण] कर थरहरे -देव