SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चौखटा ( उदा० १. मनि सोभित स्याम जराइ जरी अति चौकी चल चल चारु हियें । केशव २. चौकी बँधी भीतर लोगाइन की जाम जाम बाहिर प्रथाइन उठति अधरात है । -दास चौखटा--संज्ञा, पु० [?] १. दरवाजा, ड्योढ़ी २. कोठा, श्रट्टालिका, ची मंजिला मकान उदा० २. चढ़ी चौखटा नार नवेली । निशिदिन जे प्रीतम सँग केली । —बोधा चौखड़ा - संज्ञा, पु० [हिं० चौ + सं० खण्ड ] चारों ओर की सैर, चारों तरफ । उदा० चलिकै घरिक चौखड़ा देखौ जहँ फूली फुलवारी । —बक्सी हंसराज चौखाने - संज्ञा, पु० [फा० चारखाना] चारखाना, एक प्रकार का कपड़ा जिसमें रंगीन धारियों से चोखूंटे घर बने रहते हैं । उदा० श्री सकर बिलंदी दूरि घरन्दी मानिकचंदी चौखाने । -सूदन चौगान - संज्ञा, पु० [फा०] गेंद का वह खेल जो मध्यकाल में घोड़ों पर सवार हो कर खेला जाता था । उदा० गोय निबाहे जीतिये प्रेम खेल चौगान । —बिहारी चौधर - संज्ञा, पु० [देश०] १. लाल रंग के घोड़ों में लक्षित होनेवाला सफेद रंग २. घोड़े की चाल, चौपाल । उदा० चौघर बर सज्जत छवि निज छज्जत बचत न भज्जत हरिन हरें । —पद्माकर चौचंद -संज्ञा, पु० [हिं० चौथ + चंद] बदनामी की चर्चा, कलंक, निन्दा | उदा० आइगे तहाँ ही पद्माकर पियारे कान्ह श्रानि जुरे चौचंद चबाइन के वृन्द वृन्द । —पद्माकर चौंडेल --संज्ञा, स्त्री० [हिं० चंडोल = सं०= चन्द्र + दोल] एक प्रकार की पालकी २. हाथी के हौदे के आकार की पालकी । ८ १ ) चौहरी उदा० चित चौंडेल चढ़ाय लड़िहरी तनपुर राछ फिराई । — बक्सी हंसराज २. उरजात चँडोलनि गोल कपोलनि जी लौ मिलाप सलाहकरी । - दास चौधर संज्ञा, पु० [१] घोड़े की चाल विशेष । उदा० चौधर चालि चाभु की चारू । चतुर चित कैसो अवतारु । - केशव चौबिसमहीना - [हिं० चौबिसमहीना: == दो साल ] Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुशाला । उदा० कंज घर घेरा पर्यो चन्द पर डेरा पर्यो ऊपर बसेरा पर्यो चौबिस महीना को । - देवकीनंदन चौरासी - संज्ञा, पु० [सं० चतुर शीति] १. आभूषण विशेष जो हाथी की कमर में पहनाया जाता है । २. नाचते समय पैर में पहने जाने वाला घुंघरू उदा० १. चौरासी समान, कटि किंकिनी बिराजति है, साँकर ज्यौं पंग-जुग घुंघरू बनाई है । — सेनापति चौरे वि० [हिं० चौड़ा ] विशद, विस्तृत, व्यापक उदा० चौरे चक्रपानि के चरित्रन को चाहिये । - पद्माकर चौसर — संज्ञा, स्त्री० [ चतुः + सृक] चार लड़ियों की माला, चार लड़ी । उदा० चाँदनी के चौसर चहूँघा चौक चाँदनी में चाँदनी सी आई चंद चाँदनी चितै चितै । —पद्माकर चौहट संज्ञा, पु० [हिं० चतुर + हाट] नगर, चौक । उदा० चौहट कौ मिलिबौ तो रह्यो मिलिबौ रहयो प्रौचक साँझ सबेरो । -ठाकुर चौहरी - वि० [हिं० चौहर] चार घेरे वाला । उदा० चौहरी चौक सो देख्यो कलामुख कढ़यो आवत है री । पूरब ते --दास For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy