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चोज
चौकी
उदा० च.खी जाति गैया कोऊ और न दुहैया । चोये-संज्ञा, पु० [प्रा. चोय] छिलका, त्वचा, देव देवर कन्हैया कहा सोवत सबारेई ।
अन्न की भूसी, छाल
-देव उदा० प्रथम दरे दरि फटकि, टकि-दलमलितन चोज-संज्ञा, स्त्री, [१] .. सौन्दर्य, रंग, दीप्ति धोए । उज्जल पानि पखारि किये दूरन पुनि २. सुभाषित ३. व्यंग्य, ताना ४, पानंद, विनोद
चोये।
-गंग ५. चमत्कार पूर्ण उक्ति
चोराबोर करन - वि० सं० [देश॰] अच्छी तरह उदा० १. कंचन में नहीं चोज इती कि जु वाकी
से किसी वस्तु को दुबाना ।। गुराई समान कहावै । -कुलपति मिश्र
उदा० चोर चोराबोर के गुलाब छिरकाइ लै ।। ३. किहिं के बल उत्तर दीजै उन्हें सो सूने
---पद्माकर बनै चोज चवाइन कै। -प्रतापसिंह
चोल-संज्ञा पु० [ [ मंजीठ ।। ४. चोज के चंदन खोज खुले जहूँ ओछे
उदा० चटक न छांड़त घटतह सज्जन नेह उरोज रहे उर में घिसि । -देव
गंभीर। फीको परै न बरु फटै रँग्यो चौथना-क्रि० सं० [अनु॰] नोचना, किसी वस्तु
चोल ₹ग चीर । - - बिहारी
चोला-संज्ञा, पु० [सं० चोल] कुर्ता, खोल । को बुरी तरह से नोचना।
उदा० छोड़ हरिनाम नहीं पैहे बिसराम अरे निपट उदा० चौथते चकोरन सों भले भये भौंरन सों चारों
. निकाम तन चाम ही को चोला है। प्रोर चम्पन पै चौगनी चढ़ो है पाब।
-पद्माकर -द्विजदेव चोली-संज्ञा, स्त्री, [बु.].. पान रखने की चोटमा-क्रि० स० [सं० चुट: काटना] तोड़ना, | पिटारी.. अँगिया । नोचना ।
१. फिरि फिरि फरणनि फणीश उलटतू ऐसे उदा० मन लुटिगो लोटनु चढ़त, चैटत ऊँचे फूल ।
चोली खोलि ढोली ज्यों तमोली पाके -गिहारी पान की।
--गुमान मिश्र चोटही-वि० [सं. चुट] प्राघात करने वाला, २. चोली जैसी पान तोको करत सँवारि स्पर्धा करने वाला
---- केशव दास उदा० उज्जल अखंड खंड सातएँ महा, मंडल
3. धर दीन्हीं यादर कर प्रागे भर पानन सँवारो चंद-मंडल की चोटहो । - देव
की चोली।
-बक्सी हंसराज चोढ़-संज्ञा, पु० [हिं० चोप या चाव] उमंग,
चोव-संज्ञा, पु० [फा० चोव] शामियाना खडा उत्साह
करने की बड़ा खंभा २. सोने या चाँदी का मढ़ा उदा. गंज गरे सिर मोर-पखा 'मतिराम हो गाय
हुप्रा डंडा । चरावत चोढ़े।
-मतिराम उदा. चाँदनी है चौवन पै, परदे दरीपन पै, हरे चोप-संज्ञा, स्त्रो० [देश॰] उमंग, उल्लास
दुलीचे हैं, गलीचे गोल गट्टी में । -ग्वाल उदा० चोप सी चटक पीतपट की निहारि छबि
चैत को रुचिर चंद चाँदनी सी चांदनी में मैटि बनमाल मिल्यो मुरली की धोर में ।
चाँदी सो चॅदोबा चामीकर चोब चारि -सोमनाथ को।
-देव घोपी-वि॰ [हिं० चोप] १. मोहित, मुग्ध २. | चोवा - संज्ञा, पु० [हिं० चुमाना] चंदनादि कई इच्छा रखने वाला, उत्साही।
सुगंधित पदार्थो से निर्मित एक सुगंधित द्रव उदा० चोपी अति तुम सों प्रवीन बेनी गोपी रहै, पदार्थ । उर प्रोपी तरुनी ते नजरि हमारी हैं। उदा० कंचुकी में चुपर्यो करि चोवा लगाय लियो
-बेनी प्रवीन
उर सो अभिलाख्यो । चोंब-संज्ञा, पु० [हिं० चोप] उमंग, उत्कट ___ कहै पद्माकर चुभी सी चारु चोवन में । अभिलाषा ।
----- पद्माकर उदा० दुगन चकोरन को चोंब यह कहुँ देखो, चंद चौकी-संज्ञा, स्त्री [सं० चतुष्की] १. गले में सो बदन दुख कदन को चहिए।
पहनने का एक भूषण २. पहरा, रखवाली, -रसलीन खबरदारी
बोई।
-देव
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