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चुवा ( ७६ )
चोखोजाना चुवा० वि० [देश॰] कोमल, मुलायम ।
| चूहरी-संज्ञा, स्त्री० [हिं० चूहड़ी] मंगी की स्त्री, उदा० अपने हाथन खूब चुवा सी लै लै दूब चराऊँ मंगिन, सफाई करने वाली ।
-बक्सी हंसराज | उदा० फल से भरत रंग भर लागे झारू देत चुंहटी-संज्ञा, स्त्री० [देश॰] चुटकी ।
चूहरी चतुर चित चोरति चमकनी । उदा० गुलचि बनाय नचाय चहटियन छांडि देहि
-देव करि अधिकाई।
-घनानन्द ज्यों कर त्यों चुहँटी चलै ज्यौं चुहँटी त्यों
चेटका-संज्ञा, स्त्री० [?] चिता ।। नारि ।
-बिहारी
उदा० जरे जूहनारो चढ़ी चित्रसारी, मनो चेटका चुहुटिनी-संज्ञा, स्त्री० [देश॰] घु घची, गुजा ।
में सती सत्यधारी।
-केशव उदा० राखति प्रान कपूर ज्यौं वहै चुहुटिनी माल । चेटकी-संज्ञा, पु० [हिं० चेटक] जादू करने वाला,
-बिहारी
जादूगर, कौतुकी। चूंटना-क्रि० सं० [सं० चयन] चुनना, तोड़ना। उदा० चेटकी चबाइन के पेट की न पाई मैं । उदा० मन लुटिगो लोटनि चढ़त चूंटत ऊँचे फूल ।
-ठाकुर -बिहारी चंप--संज्ञा, पु० [अनु॰] चिड़ियों के फँसाने का चक-संज्ञा, पु० [सं०] १. अत्यन्त खट्टी वस्तु लासा। २. गलती, भूल [फा०]
उदा० दृग खंजन गहि लै चल्यो चितवनि चेपु उदा० तेरे मुख की मधुरई, जो चाखी चख
लगाय ।
-बिहारी चाहि । लगत जलज जंबीर सों, चंद चूक सो ताहि ।
- मतिराम
लासा है सनेह को न छूटै चंप चपकन । चून - संज्ञा, पु० [सं० चूर्ण] १. माणिक्य या
-ग्वाल रत्न का छोटा टुकड़ा, २. सितारा।
चेपना-क्रि० प्र० [हिं० चिपचिप] समझना, उदा० दूनरी लंक लखे मखतून री चूनरी चारु चुई विचार करना । परै चूनरी।
-रामकवि उदा० भेद फुरै मीलित बिष उन्मीलित चित चेप। चुनी-संज्ञा, स्त्री० [सं० चूर्ण] मानिक या
-पदमाकर रत्न का छोटा टुकड़ा।
चै-संज्ञा, पु० [सं० चय] समूह, झुड । उदा० चूनरी सुरंग अंग ई गुर के रंग देव, बैठी
उदा० ठाकुर कुंजन पुजन गुजन भौरन को चै परचूनी की दूकान पर चूनीसी ।
चुपैबो चहैना ।
-ठाकुर -देव चूब-संज्ञा, स्त्री० [फा० चोब] शामियाना खड़ा |
चैतुवा-वि० [बु.] स्वार्थी, मतलबी ।
उदा० कवि ठाकुर चूक या नैनन की हमसों उनसों करने का डंडा । उदा० दिशा बारहों द्वारिया चूब खोलै । हरीलाल
नव नेह बढ़े जू । हम जानती ती हरि मीत पीरी उरी भर्प डोले ।
ह्व हैं न कढ़े हरी चैतुवा मीत कढ़े जू ।
-बोधा चूरन-संज्ञा, पु० [सं० चूर्ण] मंत्रित भभूत,
-ठाकुर पवित्र राख ।
चोई—वि० [प्रा० चोइन, सं० चोदित] प्रेरित,
डूबी हई उदा० चखरुचि चूरन डारि कै ठग लगाय निज
उदा० ठाढ़ी ही बाग में भाग भरी मानो काम
साथ । रह्यो राखि हठ, लै गयो हथाहथी मन
भुजंगम के विष चोई।।
-देव हाथ ॥
चोखरे-वि- [देश] चालाक, धूर्त । -बिहारी
उदा० नीके धर्यो दधि दूधु सीके ते उतारि चूचना-क्रि० सं० [सं० चुम्बन] चूमना, चुम्बन
खायो, ऊँचे को न गौन जहाँ चोखरे बिलैया करना।
-देव उदा० रूप के लालच, लाल चितौत चित मुख | चोखीजाना--क्रि० सं० [देश॰] बछड़े से दूध चीकन, चूवन चाहों।
-देव पिलाया जाना।
की।
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