________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
--देव
-पालम
कसौनी
कामपाल उदा० चाले की चूदरि चारु कसूमी सुगंधसनी । काबली-संज्ञा, पु० [हिं० केचुल] केंचुल, दमकै तन गोरें।
-ग्वाल निर्मोक । कसौनी-संज्ञा, स्त्री० [हिं० कसनि] कंचुकी, उदा० कुबरी ह्वकारो कान्ह द्वारिका निकारि गयो, चोली ।
देव ब्रज क्वारिका निकरि गयो काचली । उदा० एके लिये करमें बिरी तेह बनै नहिं खात
एक लिये कर में कसौनी सो कसी नहि कार--संज्ञा, पु० [सं० कक्ष] नृत्य करते समय जाय ।
-बोधा की वेशभूषा । कस्त-संज्ञा, पु० [अ० कस्द] इरादा, दृढ़, उदा० काछ नयो इकतौ बर जेउर दीठि जसोमति निश्चय ।
रांज करयोरी।
- रसखानि उदा० यह कस्त करि पाए यहाँ के रन हथ्यारन का, क्रि० वि० [सं० कक्ष] समीप, पास । भेटबी।
-पदमाकर उदा० कान्ह प्रिया बनिकै विलसै सखी साखि कहकहा - संज्ञा, स्त्री० [सं० काकली] काकली, सहेट बदी जिहि काछै ।
कोयल की ध्वनि। उदा० देव केलि कानन में कहकहा कोकिल की. काजरि-संज्ञा, स्त्री० [हिं० कजरी कजरी गाय सुने धूनि लहलहा महामोद माधुरी ।। उद० काजरि के हित सों कवि 'पालम' प्रावत
-देव
लै बछरू धरि कांधे । कहर- संज्ञा, पु० [अ०] आफत, संकट, आपत्ति,
-मालम उदा० देखत ही मुख बिष लहरि सी पावै काती-संज्ञा, स्त्री० [सं० की] १. छोटी -लगी जहर सौं नैन करै कहर कहार की। तलवार, कत्ती २. चाकू, छुरी ३. कैची ४.
- देव
सुनारों की कतरनी। कहलाना क्रि० अ० [हिं० कहल] १. गरमी से उदा० १. बिरह- कतल-काती किधौं पाती व्याकूल होना २. कसमसाना।
पानंद कंद । उदा० कहलाने एकत बसत अहि मयूर मृग बाघ ।
-दास -बिहारी कानीन-संज्ञा, पु० [सं०] कुमारी से उत्पन्न काँचरी-संज्ञा, पु० [हिं० केंचुल] साँप का जारज पुत्र । केंचुल, निर्मोक।
उदा० आप कुंड, गोलक पिता, पितृ-पिता कानीन । उदा० काँचरी सो चीर काच काँचन की प्रोप
लखो मु 'नागर' भक्ति, जस पांडव नित्य मांग, काच की चुरी की जेब जग मोहियत
नवीन ।
-नागरीदास काबिली--संज्ञा, स्त्री० [अं० काबिलीयत] चतु
- गंग राई, योग्यता, पांडित्य । काँधना--क्रि० स० [हिं० काँध] स्वीकार करना, उदा० चषमति सुमुखी जरद कासनी है सूख चीनी अंगीकार करना २. भार लेना।
स्याम लीला माह काविली जनाई है। उदा० १. पाग है आई अनेक इहाँ मन मैलो करौ
-बेनी प्रवीन कछु ना हम काँध।
काबिस---संज्ञा, पू० [सं० कपिश] काला और
- बेनी प्रवीन पीला मिश्रित रंग, एक रंग जिससे रंग कर कापा-संज्ञा, पु० [सं० कंपा] हाथी के दाँत । मिट्टी के बर्तन पकाए जाते हैं। उदा० मेह लौं गरजि मदधार बरसै, घनी | उदा० काबिस तिहारे अंग ठहरि गयो री बाल, काँति बहु भाँति काँपाति दाँते ।
___ काबिस को रंग तेरे तन में छहरि गो। --देव
-नन्दराम काकनी-संज्ञा, स्त्री० [सं० कंकण] कंकण, कामपाल संज्ञा, पु० [?] बलराम, श्री कृष्ण कलाई में पहनने का एक भूषण, चूड़ी, बलय । के बड़े भाई । उदा० झाँकनी दे कर काकनी की सुने, उदा० ह है कामपाल की बरसगाँठि वही मिस काननि बैन, अनाकनी कीने ।
अब मैं गोपाल की सौं पालकी मैं ल्याइहौं । -देव ।
-दास
For Private and Personal Use Only