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कलुखी
कसूमी कलुखी-वि० स्त्री० [सं० कलुष] दोषी, कसबाती-वि० [अ०] कसबे के रहने वाले, कलुषित ।
शासक से मिल जाने वाले । उदा. बैरी इहि बंधु देव दीन बंधु जानि, हम उदा० सिमुता-अमल-तगीर सुनि भए और मिलि बंधन में डारे, तुम न्यारे कलुखी भये ।
मैंन । -देव
कहौ होत हैं कौन के ए कसबाती नैन, कलोरी-संज्ञा, स्त्री० [सं० कल्या] वह गाय
-बिहारी जो बरदाई या व्याई न हो ।
ऐसी कसबाती तू तो नेक न डराती उदा० लाड़िली लीली कलोरी लूरी कहें लाल
काहू छाती ना दिखाउ कोऊ छाती मारि लुके कहे अंग लगाइ के।
-केशव मरिहै।
-द्विजनन्द कल्प-संज्ञा, पु० [सं०] तन, शरीर ।
कसबी - संज्ञा, स्त्री० [म. कसब -- वैश्यावृत्ति] उदा० कल्प कलहंस को, कि छीरनिधि छवि
वेश्या, रंडी, कुलटा । प्रच्छ हिम गिरि प्रभा, प्रभ्र प्रगट, पुनीत उदा० आप चढ़ो सीस यह कसबी सी दीन्ह प्रौ
- केशव
हजार सीस वारे की लगाई अटहर है। कल्हार-संज्ञा, पु० [सं कलार] श्वेत कमल ।
----पद्माकर उदा० कुल कल्हार सुगंधित भनौ । सुभ सुगंधता । कसाउ- संज्ञा, पु० [हिं० कसना] चोली का बंद, के मुख मनौ।
-केशव कंचकी की डोरी। कवनी-वि० [सं० कमनीय] कमनीय, सुन्दर ।
उदा० झीनी प्रांगी झलक उरोज को कसाउ उदा० कछनी कटि स्वछ कछे कवनी बरही बर कसे, जावक लगायें पाउँ पावक तें गोरी है। पुछ को गुछ बनो।
-मालम कवनी भुज स्याम के कंघ धरे
कसा-संज्ञा, स्त्री० [सं० कशा] चाबुक, सोंटा रवनी मनी प्रीति की रीति बढ़ी। -पालम कोड़ा। कहिये कहा महारुचि रवनी। कवनी निपट उदा० काम कसा किधी राजति हैं कल कीधौं नंद-ब्रज प्रवनी ।।
-घनानन्द शृगार की बेलि सुधारी।
-रधुराज कवि-संज्ञा, पु० [सं०]१. शुक्र २. काव्यकर्ता ।
कसाकी-संज्ञा, स्त्री० [हिं० कसक] कसक, उदा० कवि कुल विद्याधर, सकल कलाधर राज
पीड़ा, वेदना । राज वरवेश बने ।
- केशव उदा० कहै नंदराम बावरी सी ह बिहाल मई कवित्तःन-संज्ञा, पु० [हिं० कवि] कविगण, कवि
ऊची सी उसासन कसाकी उठी पासुरी । लोग ।
-नंदराम उदा० १. कैंधो रतिनायक के पाट पै सिंगार लीक
कसार--संज्ञा, पु० [सं० कासार] छोटा तालाब । देखि कवितान की सुमति भटकति है ।
उदा० काम के कसारन की कूलन की कूपिका की --श्रीपति
असित तिलक के सिगार के सदन हैं। २. देव कवितान पुण्य कीरति बितान तेरे
-बलभद्र सुमृति पुराण गुणगान श्रुति भरिये ।-देव कसीस-संज्ञा, स्त्री० [फा० कशिश] १. कृपा, दया कस-संज्ञा, पु० [फा०] १. बल, जोर, २. कष्ट, पीड़ा, वेदना ३. खिचाव ।। काबू २. खींचातानी ३. अँगिया कसने की डोरी उदा० १. तुम्हैं निसि द्योस मनभावन असीसै । रस्सी [हिं० कसन, स्त्री०]
सजीवन ही करौ हम पै कसीसैं । उदा० हौं कसु कै रिस के करौं ये निसुके हंसि
- घनानन्द देत ।
-बिहारी ।
२. सेखर इहाँ लौं सहै काम की कसीसे रहि न सक्यौ कस करि रहयो बस करि
हाय देखे को हिये की कठिनाई मौन लीन्ही मार ।
-बिहारी घर की।
-चन्द्रशेखर ३. अंगिया सित झीनी फुलेल मली तरकी कसूमी-वि० [हिं० कुसुमी] लाल, कुसुम के ठीर ठौर कसी कस री।
-आलम रंग का ।
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