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कलकी
कुहकि कुहकि कान कलकान करी है ।
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कलकी- -संज्ञा पुं० [सं०
तार ।
उदा० कलकी हु राखे रहें हिंदूपति पति देत, म्लेच्छ हति मोक्षगति 'दास' ताको दास है । -दास कलत्थना- -क्रि० प्र० [हिं० कलथना ] कलथना,
छटपटाना ।
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( ४३
-श्रालम
कल्कि ] कल्कि श्रव
उदा० उलत्थै पलत्थ कलत्यें सोक सिंधून था । कलप - संज्ञा, स्त्री [सं० दुख । उदा० राखी न कलप तीनो काल विकलप मेटि, कीनो संकलप, पैनं दीनो जाचकनि जोखि । - देव कलपना- -क्रि० ० अ० [सं० कल्पन] १. गिनना, विचार करना २. कलपना, चीत्कार करना, दुखी होना, विलाप करना । उदा० पल कलपै कलप पिय प्यारो ।
सोभित घन बन लसत तिहारो ।
कराहैं न पावैं कहूँ
- पद्माकर
कल्पन] विलाप,
पदमाकर
निसि कैसी कोकी हों कलपि कलकान भई, अब प्रति विकल बिलोकी अलबेली मैं । - बेनी प्रवीन कलबंकी - संज्ञा, पु० [सं० कलविंक] गौरैया पक्षी, चटक । उदा० कलबंकी कों कैसे भाव जदपि मुकुत है जगत प्रसंसी । संसारं नीको लागे पै अनकन कव चुगति नहीं हंसी
दास
कलबसन- -संज्ञा, पु० [तु० कलाबतून ] कलाबत्त ू, सोने चाँदी श्रादि का तार जो रेशम पर चढ़ा कर बटा जाता है,
उदा० कबि 'ग्रालम' ये छबि ते न लहे जिन पुज लये कलबत्तन के ।
-प्रालम कबूतर २.
कलरव- -संज्ञा, पु० [सं०] १.
कोयल । उदा० १. ललित लता, तरुवर कुसुम, कोकिल कलरव मोर । बरनि बाग अनुराग स्यों, भँवर भँवत चहुँ ओर । - केशव कलंरौ– संज्ञा, पु० [सं० कलरब] कोकिल, मधुर ध्वनि बोलने वाले पक्षी । उदा० सखि चैत हैं फूलनि को
करता करने सु
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श्रवेत अर्चन लग्यो । कहिये कल रोहि जु लग्यो ।
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कलिदे
कहि दास कहा बोलन बैकल बैन
-दास
कलाद
-संज्ञा, पु० [सं०] स्वर्णकार, सोनार । उदा० जा दिन तैं तजी तुम ता दिन तैं प्यारी पै कलाद कैसो पेसो लियो प्रधम अनंग हैं । -द्विजदेव कलाकन्त- -संज्ञा, पु० [सं०] कलाधर, कलापति,
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चन्द्रमा ।
उदा० जारि ले रे कुटिल कलंकी कलाकन्त ग्राजु मारि लै री सुरभि समीर मंद गति की । चन्द्र शेखर कलापात -संज्ञा, पु० [?] उपद्रव, बदमाशी । उदा० कूकि कूकि कोयल करेंगी कलापात त्योंही कोकिल कलाप के अलाप अनुसारि है । -चन्द्रशेखर कलाबर संज्ञा पुं० [सं० कला + बरः = = पतिः ] कलाधर, चन्द्रमा ।
दास
उदा० वर बागे लला अनुरागे अलौकिक लागे कलाबर ते बन मैं । -चन्द्र शेखर कलामुख संज्ञा, पु० [सं०] चन्द्रमा, कलाधर । उदा० चौहरी चौक सों देख्यो कलामुख पूरब तें कढ़यो श्रावत है री । कलामिनी - वि० [अ० कलाम] बोलने वाली भाषिणी उदा० कानन करन फूल, कोमल कपोल, कंठ कंबुक, कपोत कीर कोकिल कलामिनी । - बेनी प्रवीन कलाल - वि० [सं० कराल ] कराल, भयंकर । उदा० निर्मलता गुन मोती बिधाइ छिप्यौ कुटिलाल, कलाल फनिंद सों । कलालि संज्ञा, स्त्री० [हिं० कलाछ] बेचैनी से इधर उधर घूमना ।
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- देव
उदा० पालिक तें भुव भूमि तें पालिक श्रालि, करोरि कलाल करें जूं । -केशव कलाव - संज्ञा, [सं० कलापक] हाथी के गले की रस्सी ।
ताव ।
उदा०पीत कांछ कंचुक तियन, बाला गहे कलाव, जाहि ताहि मारत फिर, अपने पियके -रहीम कलिंदे संज्ञा पु० [सं० कालिंदी] तरबूज । उदा० ताँसों बड़ाई करौ, कोई जान न, काल्हि के जोगी, कलिंदे के खप्पर । -देव
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