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कामिनी
किरना कामिनी-वि० [हिं० काम स्वार्थ ] स्वाथिनी,
सुख चीनी स्याम लीला माह काविली वह स्त्री जो बड़ी स्वार्थ रखने वाली हो।
जनाई है।
-बेनी प्रवीन उदा० बामा, भामा, कामिनी कहि बोली, प्रानेस । काहरवा-संज्ञा, पु० [फा० कहरुबा] तृणमणि,
-बिहारी
एक हलका पत्थर जो तृण को अपनी मोर कारकुन-संज्ञा, पु० [फा०] प्रबन्धकर्ता २. खींचता है। करिदा।
उदा० काहरवा को रवाहित बालको खैचे लगे उदा० करि कारकुन पिक बानी चीठी आई जमा
तन दूब लौं बीछे ।
-पजनेस बिरह बढ़ाई छबि रैयति मरोरी है,
काहल-संज्ञा, पु० [सं०] सेना की एक बड़ी
-मालम ढोल, वाद्य विशेष । कारचोबी-संज्ञा, पू० [फा०] जरदोजी, कसीदा | उदा० गुंजत ढोलक रुजक पंज, कारी
कुलाहल काहल नादति तामें । -देव उदा० कारचोबी कीमत के परदा बनाती चारु किमका-संज्ञा, पू० [सं० कणिक] अन्न का टूटा चमक चहंधा समादान जोत जाला में ।। हुआ अंश, करण ।
- ग्वाल । उदा० भोड़र के किनका ये लाल के बदन पर कार्मुक-संज्ञा, पु० [सं०] धनुष ।
निरखि जोन्हाई बीच ऐसे लसै जगि जगि । उदा० भ्रकुटी बिराजति स्वेत मानह मंत्र प्रदभूत
-रघुनाथ सामके। जिनके विलोकत ही विलात अशेष किनाने-वि० [हिं० किनना=खरीदना] खरीदे कार्मुक काम के।
-केशव हुए, मोल लिए हुए, वशीभूत । कालबूत-संज्ञा, पु० [फा० कालबुद] वह ढाँचा
उदा० कूबरी दूबरी जाति न ऊबरी, डूबरी बात जिस पर कोई वस्तु प्राकार शुद्ध करने के लिए । सुसाँची किनाने ।। चढ़ाई जाती है। २. मिट्टी अथवा ईट का वह
| किबला-संज्ञा, पु० [अ०] सम्मान, पादर, ढाँचा जो छत या द्वार का कड़ा जोड़ते समय
प्रतिष्ठा । सहारे के लिए दिया जाता है।
उदा० किबले के ठौर बाप बादशाह साहजहाँ
वाको कैद कियो मानो मक्के आगि लाई उदा० कालबुत दूती बिना जरैन और उपाइ ।
-भूषण फिरि ताकै टार बनै पाकै प्रेम लदाइ ।
किमाम--संज्ञा, पु० [अ० किवाम] शहद के -बिहारी
तुल्य गाढ़ा बनाया गया शरबत, खमीर। कावक-संज्ञा, स्त्री० [फा० काबुक] कबूतरों के
उदा० करि सकों कैसे गोपिकान की बराबरी मैं. रहने का दरबा २. चक्रवाक [सं०] ।
हौं न धारी सीस डाली दही के किमाम के। उदा० १. संग ही बोलि उठे तजि कावक
-वाल लाव कपोत कपोत के सावक । किरकिला-संज्ञा, स्त्री० [सं० कृकल, हिं० किल
--देव किला] मछली खाने वाली एक छोटी चिड़िया । २. चौकहि की चुनरी पहिरै सुनरी
उदा० मन मनभावन को मानो किरकिला, ग्रामन उनरी उई मनौ । पावन में
. सोभा-सिंधु मैं थिरकि चख-झख पै झपटि जावक जनु छबि कावक परगट पावक
परयो। सी जु घनीं ।
-पद्माकर । किरच---संज्ञा, स्त्री० [सं० कृति] काँच आदि कास--संज्ञा, पु० [हिं० आकाश] आकाश, नभ । ___ का छोटा टुकड़ा। उदा० केसर के रंग बहे छज्जन पै छातन पै उदा० कोमल कि कै क्वैलिया कूर करेजनि - नारे पै नदी पै प्रौनिकास में उछाल है।
की किरचें करती क्यों ।
-देव वाल किरना-क्रि० स० [सं० विकीर्ण] बिस्वरना कासनी-संशा, स्त्री० [फा०] एक प्रकार का | फैलना,।
नीला रंग जी कासनी के पुष्प जैसा होता है। उदा० जमुनातट कुंज कदम्ब के पुंज तरे तिनके उदा० चषमति सुमुखी अरद कासनी है । । नव नीर किरें।
-प्रतापसाहि
-देव
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