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औली
अमराना
औली-सज्ञा, स्त्री० [हिं० ओल ] अंचल, उदा० जब जानी कान्हैया इनकी प्रोसेरंगी माई । पल्ला २. गोद ।
करि मनुहार बारि भरि लोचन तब घर मु० औली अोड़ना=आँचल पसार कर याचना
को पठवाई ।
-बक्सीहंसराज करना ।
औहठी - वि० [स० अव+हठ] बुरे हठ वाले । उदा० जब क्योंहू करि ग्रीवा छोड़ी। तबै पाहुनी
उदा० औहठी हठीले हने बदर जहांन रिपु, औली ओड़ी।
---सोमनाथ
कौतुक कों बिबिध बिमान छिति छ वै रहे । मौसेरमा-क्रि० स० [ ? ] चिन्ता करना।
-गंग
अं
अंक-सज्ञा, पू० [स० अंग] १. शरीर, अंग, उदा० देखत मदंध दसकंध अंध धंध दल बन्धू सों देह २. चिह्न, निशान ३. लिखावट ४. गोद ।।
बल कि बोल्यो राजाराम बरिबंड। उदा० १. जैसे भूमि अंबर के बीच में न कोऊ
-दास खंभ, तैसे लोल लोचनी के अंक में न लंक
अंबर-सज्ञा, पु० [अ०] एक प्रसिद्ध बहुमूल्य -ग्वाल
सुगंधित पदार्थ ।
उदा० ग्वाल कवि' अंबर-अतर में. अगर में न अंकिनि--वि० [स० अंक=पाप] पापिनी, पाप
उमदा सबूर ह में, है न दीपमाला में । करने वाली। उदा० कूबरी कलंकिनी वा अंकिनी को अंक लाय अंस-सज्ञा, पु० [स० अंशु] १. अंशु, किरण कीन्ह भलो कुल को कलंक तै लगायो है।
२. अंश, भाग । -ग्वाल
उदा० सित कमल बंस सी सीतकर अंस सी, अंगी-वि० [स० अंग] अंगवाला, सगा, सच्चा।
बिमल बिधि हंस सी-हीरबर हार सी ।
-दास उदा० माय न बाप को अंगी भयो सो हमारो कहो कब संगी भयो ।
अंसुक--सज्ञा, पु० [स० अंशुक] बारीक रेशमी -ग्वाल
वस्त्र। मंझा--सज्ञा, स्त्री० [स० अनध्याय, प्रा० उदा० जी में धोखो लाइ किंधौ अंसुक हैं आँग अनज्झा] नागा, छुट्टी, गायब ।
के ।
--गंग उदा० १. सोवै सुख मोचै शुक सारिका लचाये
अंकोर--सज्ञा, पु० [ देश० ] घूस, रिशवत, चोंच, रो चैन रुचिर बानि मानि रहै।
उत्कोच । अंझा सी।
--देव | उदा० विचौ न फेरि मन मेरौ रिझवार आली, २. अंझा-सी दिन की भई संझा सी सकल
लाज दै प्रकोर चुभ्यो नैनन की कोर में । दिसि, गगन लगन रही गरद छवाय
-सोमनाथ -भूषण अँगराना-क्रि० अ० [हिं० अँगड़ाई ] अंगड़ाई अंधाधुष-वि० [हिं० अंधा+धुंध] १. बहुतलेना, उन्मत्तता का भाव प्रकट करना । बड़ा, विशाल २. घोर अंधकार (सज्ञा) ३. उदा० बैठि झरोखन मैं अँगरै उझकै दुरिके अन्याय ।
मुरिक मुसुकाते।
--सुन्दर
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