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औ
--देव
मौकना-क्रि० अ० [देश॰] उदास होना, उचट पोदेर-सज्ञा, पु० [बुं०] बाधा, विघ्न, दिक्कत, जाना, विरक्त होना।
परेशानी। उदा० कापि उठी कमला मन सोचत मोसों कहा उदा० जो हम तुम बसबी इत लालन तो परहै हरि को मन प्रौंको । -नरोतमदास
पीढ़ेरो।
-बकसीहंसराज मोंछना-क्रि० स० [बं०] गूंथना, बनाना । प्रोपरी-वि० [हिं० उथला] उथला, कम गहरा, उदा० कब धौं तेल फुलेल चुपरि के लामी चुटिया छिछला। औंछों ।
-बकसीहंसराज उदा० अति अगाध, अति औथरो, नदी, कूप, भाँडना-क्रि० प्र० [हिं० औंड़ उमड़ना ।
सर वाय।
-बिहारी उदा० जाइ जड़ी जड़ सेस के सीस सिंची दिनदान प्रौवकना-क्रि० प्र० [हिं० उदकना=कूदना ] जलावलि श्रीडी ।
-केशव उछलना, कूदना, चौंकना। भोड़ी-वि० [स० कुंड] १. गहरी २. तिरछी,
उदा० चूसि हौं जो निचुरौ सो परै रसु ज्यों, वक्र।
हटकावत औदुकै ऊठा। -बेनीप्रवीन उदा० १. ऊधौ पूरे पारख हौ. परखे बनाय तुम.
श्रीद के साहि औरंग अति, राण सबल पारिही पै बोरो पैरवैया धार पौंडी को।
राजेस बर।
-मानकवि
प्रौनिवास- सज्ञा, पु० [सं० प्रवनि+बाल ] २. पौंड़ी चितौन कहँ उड़ि लागत बंदन | पृथ्वी का पुत्र, मंगल ।
प्राड़े जो आड़ न होती। -देव | उदा० जावक सुरंग मै न, इंगुर के रंग मैं न, बोचकना-क्रि० अ० [हिं० उचकना-कूदना ] |
इंद्रबधू अंग मैं न, रंग औनिबाल मैं। उछलना, कूदना ।
-गंग उदा० सटकारे बारनि के भार लंक लचकति, औनो-सज्ञा, पु० [?] गृह, घर । .औचकि परी है सुनि बोल धुनि भारी को ।
उदा० मंडप ही में फिरै मड़रात न जात कहूँ -सोमनाथ तजि नेह को औनो।
-पद्माकर मौछकी-वि० [हिं० औचक] चौंकी हुई, घबराई औम-सज्ञा, स्त्री० [अवम] वह तिथि जो पत्रा हुई, भ्रम में पड़ी हुई, भ्रमित ।
में लिखी जाती है, पर उसकी गणना नहीं उदा० छकी सी घुमति क पीछकी सी बात होती। करै, चकी सी चितौनि मनीमदन हथ्यायो
उदा० गनती गनिबे तें रहे छतह प्रछत समान । -गंग
अब अलि ये तिथि औम लौ परे रही तन भौजस-स ज्ञा, पु० [स० अपयश ] अपयश,
प्रान ।
-बिहारी निंदा, बदनामी, कलंक ।
औरना-क्रि० स० [बुं० 1 उपाय या युक्ति उदा० जहाँ जहाँ जाउँ गनै न कूठाउँ ठाउँ एक सूझना । भाँति को है गाउँ डरों औजसनि सों ।
उदा० सुधि बुधि भूलि गई तन मन की मोहि -सुन्दर ___ कछु नहिं औरै।
-बकसीहंसराज पौझकना-क्रि० अ० [हिं० उझकना ] १. श्रौलाष--सज्ञा, स्त्री० [स० अभिलाष] अभिचौकना २. उछलना, उचकना, कूदना ।
लाष, इच्छा, कामना । उदा० १. हो तो रही देखि भेष अनसुनें अनदेखें
उदा० जोई जोई औलाष सोई भाखि हारी सबै, नाउ लियें ऐस' कोऊ श्रीझकि परति
साख बैसाख हमरी न राखी। ----सुन्दर
-सूरति मिश्र
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