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उसारनि
(
३०
)
ऊखिल
२. द्विज गऊ पालहि, रिपु उसालहिं सस्त्र उसीती-वि० [प्रा० उस्सिय] १. उन्नत, ऊँची धावहि तन सहै ।
-पद्माकर २. गर्वित, उद्धत [प्रा० ऊसित्त]। ३. गोल ग्रीव की सोभा ऊपर कंबू अनेक उदा० १. सूती सी नाक उसीती सी भौंह सुधारे उसारे ।
-सोमनाथ
से नैन सुधारस पीजै । उसारनि--संज्ञा, पु० [हिं० उसारना ] उगला
-केसव केसवराय हुआ पदार्थ ।
उसीस-संज्ञा, पु० [सं० उत् + शीर्ष ] १. उदा० एक पियति चरणोदकनि, एक उसारनि सिरहाना २. तकिया । खाति ।
-केशवदास उदा० ताहि तू बताइ जोई बाँह दै उसीसैं सोई. उसालना-क्रि० स० [सं० उत् + सारण ]
ऐसे अनुबादन के अनुवा घनेरे हैं । -गंग उखाड़ना, हटाना ।।
उसुमासन-संज्ञा, पु० [सं० उद्बासन] खुचड़, उदा० दीनन कौ पालै गाढ़े गढनि उसाले तब - दु:ख, घर से निकालने का कष्ट, परेशानी । सज्जै करबालै ऐसो कौन बरबंड है।
उदा० देवर की त्रासनि कलेवर कॅपत है, न -सोमनाथ
सासु-उसुप्रासनि उसास लै सकति हौं । उसासना-क्रि० स० [हिं० उसास] उभाड़ना, - सांस को बढ़ाना ।
उहँडे-संज्ञा, स्त्री० [बुं०] सेंध, नकब । उदा० फिरि सुधि दै, सुधि धाइ प्यो, इहिं । उदा० कब काहु की चोरी कीनी कब उहँडे मुंह निरदई निरास । नई नई बहरयौ, दई ।
पाये।
---बक्सी हंसराज दई उसासि उसास ।
-बिहारी उहारी लगना-क्रि० प्र० [ देश० ] वाणी की उसीजना-क्रि० अ० [हिं० उसनना], उबलना, अनुध्वनि करना । गरम होना ।
उदा० कोइल अलग डारि बोलति उहारी लगे, उदा० अन्तर-आँच उसास तचै अति, अंग उसीजै
डहडही जोन्ह जी में दाह सी लगति है। उदेग की आवस । --घनानन्द
--गंग
-दास
उदा० 'द्विजदेव' ज ऊक औ बीक हिये मैं, गुपाल के फंद भयोई चहैं ।
-द्विजदेव ऊकना-क्रि० स० [ हिं० ऊक ] जलाना, दुख
देना। उदा० कवि 'ग्वाल' डरा बछरा के छटै.
छरा टूट परो क्यों ऊकती हैं।
ऊँटकटारा-संज्ञा, पू० [सं० उष्ट्रकंट ] एक प्रकार की कंटीली झाड़ी जिसे ऊँट बड़े चाव से । खाते हैं। उदा० खारक-दाख रुवाइ मरौ कोउ ऊँटहि ऊँटकटारोई भावै ।
-केशव कक-संज्ञा, स्त्री० [सं०=उल्का ] लुगाठ,
जलता हुमा अंगारा । २. टूटता तारा । उदा० १. ऊक भई देह बरि चक है न खेह भई. हुक बढ़ी पैन बिबि टूक भई छतिया ।
–पालम २. तीनिहू लोक नचावति ऊक मैं मंत्र के सूत अभूत गती है।
-देव ऊकबीक-संज्ञा, पु० [सं० उद्विग्न] उद्विग्नता, बेचैनी, घबराहट ।
-ग्वाल
ऊखिल--संज्ञा, पु० [ब्रज०] किरकिरी २. पराया,
अपरिचित, अजनबी । उदा० १. ऊखिल ज्यौं खरके पुतरीन मैं, सूल की मूल सलाक भई है ।
--घनानन्द २. भोर लौं अखिल भीर अथाइन द्वार न कोक किंवार भिरैया ।
--देव
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