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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उलदना ( २६ ) - उसारनी उपदमा १० स. ह. उलटना] अला. २८ जबलि चुदाई की । उलवना-क्रि० स० [हिं० उलटना] उँडेलना, उवनि लुनाई को लवनि की सी लहरी । उलटना, ढालना, बरसाना । -देव उदा० उलदत मद अनुमद ज्यों जलधि-जल, उवारे-संज्ञा, पु० [हिं० ओहार] पर्दा, पालकी बल हद भीम कद काहू के न प्राह के । या रथ पर ऊपर से लगाया जाने वाला वस्त्र । -भूषण उदा० चारि ढाक के थंम निवारे, लै तुम्बा सरजू जल पानी। घर तें बांई ओर उवारे। -सोमनाथ उलदत मुहरै सब कोई जानी। उवाहना-क्रि० स० [सं० उद्वाहु ] हथियार -रघुराज उठाना, चलाना । उलरना-क्रि० अ० [सं० उद्+लव"=डोलना] उदा० झुक झुक उवात खग्ग मुंड बरषत वर्षा झपटना, टूटना ।। इम । -बोधा उदा० कह गिरिधर कवि राय बाज पर उलरे उसटाना-क्रि० स० [सं० उद् + सरण] उखाड़ना धुधकी । समय समय की बात बाज कहूँ हटाना, भगाना । घिरवै फुदकी। -गिरिधर उदा० बह ढाल ढक्कन सों ढकेलि अरिंद उसटाए उलहना-क्रि० अ० [सं० उल्लंघन] हरा-भरा भले । -पदमाकर होना, प्रफुल्लित होना, फूलना, प्रस्फुटित होना । उसरना-क्रि० अ० [सं० उद्+सरण] निकउदा० देवजू अनंग अंग होमि के भसम संग अंग लना, उद्भूत होना २. हटना, दूर होना, अंग उलयौ अखैबर ज्यों कुंड मैं । स्थानान्तरित होना । -देव उदा० उसरि उरोज गिरि हरिद्वार हिरदै तें उलाक-संज्ञा, पु० [? ] संदेश वाहक, हर राख्यौं जिहिं सागर गहीर नाभि झपिकै। कारा, पत्र ले जाने वाला । -देव उदा० उरज उलाकनिहूँ आगम जनायो पानि, बसन सँभारिबे की तऊ न तलास सी । उसलता-क्रि० अ० [हिं० उसरना] हटना, स्थान भ्रष्ट हो जाना, स्थानांतरित होना। -दास उदा० ऐल-फैल खैल मैल खलक में गैल गैल उलाहित-क्रि० वि० [बुं०] शीघ्र, जल्दी । । गजन की ठेल पैल सैल उसलत हैं। उदा० १. देव दुहँ करि के सुख संग उलाहित ही -भूषण उठि अंग अंगौछे । ---देव २. देवरानी जिठानी सबै जगतीं उसल फुसल-संज्ञा, पु० [हिं० उथल-पुथल ] खड़को सुनि हैं न गहौ बहियाँ । उथल-पुथल, उलट फेर । हमैं सोवन देउ उलाइत का उदा० ऐरे दसकंध, बीस प्रांखिन सौं अंध देखि, हरि धीर धरी हिरदय महियाँ ।। एक कपि लंका कीनी उसल-फुसल है । -ठाकुर -सूरति मिश्र उलीचना--क्रि० स० [हिं० उल्लुंचन] फेंकना, उससना-क्रि० स० [सं० उत् + सरण ] १. खिसकना, टलना २ सांस लेना। डालना, छोड़ना, उलचना । उदा० १. वैसिये सु हिलिमिल, वैसी पिय संग उदा० रंग सौ मांचि रही रस फागु पूरी गलियाँ त्यों गुलाल उलीच में । -ठाकुर अंग, मिलत न कहूँ मिस, पीछे उससति जाति । -रसकुसुमाकर उलेखना--क्रि० स० [हिं० उरेखना] उरेखना, २. एक उसांस ही के उससे सिगरेई सुगंध खींचना, चित्र बनाना, अंकित करना । विदा करि दीन्हें । -केशव उदा० ताहि कहै बस आन बधू के, सु तू बिन मीतिहिं चित्र उलेखै। -कुमारमणि उसारना-क्रि० स० [सं० उत्सारण] १. हटाना, तोड़ना, दूर करना २. निमूल करना, उखाड़ना उवनि-संज्ञा, पु० [सं० उदय प्रा० ऊपन ] ३. निछावर करना, बरसाना [हिं० पौसाना] उदय, निकलना, प्रकट होना । उदा० १. आनंदघन सों उघरि घुसँगी उसरि उदा० चन्द से बदन भानु भई वृषभानु जाई, | पैज की पाजै । -घनानंद For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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