________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उरबीमुर ( २८ )
उलद उदा० माथुर लोगन के सँग की यह बैठक तोहि । उदा० उमराव सिंह उराव करि अरि-झंड-मंडन अजौं न उबीठी ।
---केशव को हरै ।
--पद्माकर उरबीसुर--संज्ञा, पु० [सं० उर्बीसुर] ब्राह्मण,
अति उराव महराज मगन अति जान्यौ पृथ्वी के देवता।
जात न काला ।
-रघुराज उदा० श्री गुरु को उरबीसुर को कुल के सुर को उराह-संज्ञा, पु० [सं० उपालम्भ ] उलाहना, सुर और गनाऊँ।
- तोष शिकायत । उरबो- क्रि० स० [देश॰] निकलना, अंकुरित
उदा० सुख जीवन काज अकाज उराह । -देव होना।
उड-संज्ञा, स्त्री० [हिं० उरेड़ना, उड़ेरना - उदा० सोन सरोज कलीन के खोज उरोजन को गिराना] प्रवाह, धारा । उरबो जु निहारो ।
--देव उदा० मोद-घन झर लायौ केलि-सिंधु सरसायी उररना- क्रि० अ० [हिं० उलरना ] झपटना,
प्रेम की उरेड़ कुलकानि मैड़ तोरी है । बलात धंसना, कूदना ।
-घनानन्द उदा० मोहन महा ढरारे, सोहन मिठास मारे, उलंक-संज्ञा, पु० [ बुं०] १. बड़प्पन, मर्यादा जोहन उररि पैठि बैठि उर भोरी हौं।
२. नग्न, नंगा ।। -घनानन्द
उदा० १. कवि ठाकुर फाटी उलंक की चादर उरराना-क्रि० अ० [सं० उरु =विशाल ]
देउँ कहाँ कहँ लौं थिगरी । -ठाकुर उमड़ना, निकलना, एकत्रित होना ।
उलंघना-क्रि० स० [हिं० उलंग ] १. नग्न उदा० घहरत गज, फहरत पट बने ।
करना, वस्त्रहीन करना २. उल्लंघन करना, दरसन हित नर बहू उरराने ।
डाँकना, नाँघना।
-नागरीदास | उदा० १. कर जोर झकझोर उलछार जंधै । उरवायगी-संज्ञा, पु० [हिं० बाइगी] सर्प का
लगे बालके चार आंसू उलंघै।
-बोधा विष उतारने वाला, गारुडी। उदा० लोक-लोह रहै नाहिं लाज न लहरि लागै
उलछारना-क्रि० स० [सं० उत्+शालय प्रा० कुल उरवायगी बिलोकही नसत है। अप
उच्छार] उछालना, ऊँचा फेंकना । जस नींब प्राली नेक करुवाय नाहि काकी
उदा० करै जोर झकझोर उलछार जंधै । परवाहि प्रान लैबे की हसत है ।
लगे बाल के चार आँशू उलंघै । --केशव केशवराय
-बाधा उरसना--क्रि० अ० [हिं० उड़सना ] धंसना,
उलझारना—क्रि० स० [हिं० उलटना] उलटना, प्रवेश करना २. उथल-पुथल करना ।
हटाना । उदा० रूप गरबीलो अरबीलो नंद-लाड़िलो सु,
उदा० मृदु मुसकाइ गुढ़ाइ भ्रज घन घंघट उलदृग-मग उरस्यो परत प्राली उर मैं ।
झारि। को धन ऐसो जाहि तूं इकटक रही -घनानन्द निहारि ।
--पद्माकर उरा-संज्ञा, स्त्री० [सं० उर्वी] पृथ्वी, जमीन,
उलथना-क्रि० अ० [सं० उद्=नहीं+स्थल = भूमि ।
जमना] उलटना, ऊपर नीचे होना । उदा० हार उतार हिये पहिरै पुन । पाँव धरै उदा० नीबी के छुवत प्यारी उलथि-कलथि जात लहित्यौ न उराधन ।
-बोधा
जैसे पवन लगे लोट जात बेली ज्यों चमेली उरारा-वि० [सं० उरु] विशाल, विस्तृत ।
की।
-बोधा उदा० रूप भरे भारे अनूप अनियारे दृग कोरनि उलव-संज्ञा, स्त्री० [हिं० उलदना]झड़ी, वर्षण ।
उरारे कजरारे बूंद ढरकनि । -देव उदा० देख्यों गुजरेटी ऐसे प्रात ही गली में जात उराव-संज्ञा, पु० [सं० उरस् + आव (प्रत्य॰)]
स्वेद मर्यो गात भात घन की उलद से । चाव, चाह, उत्साह, उमंग, उल्लास, हौसला ।
-रघुनाथ
For Private and Personal Use Only