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ऊगना
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ऊगना
- क्रि० प्र० [सं० उदय ] प्रकाशित होना धूमिल वस्तु का प्रकाशित होना । उदा० पंच रंग- रँग बेंदी खरी ऊठे जोति ।
ऊगि मुख- बिहारी ऊजा - वि० [सं० ऊ ] १. शक्तिमान, बलशाली २. बेग |
उदा० एक लीन्हे सीस खाय, वेष ईस एकन को, एकन को उपमा निहारी मन ऊजा से । -दुलह कवि उजाड़, उजड़ा
ऊझड़ -- वि० [हिं० उजाड़ ] हुआ ।
उदा० नरकन के रखवारे भाखें । ऊझड़ नरक हम
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कहाँ राखें । — जसवन्तसिंह
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ऊटना-क्रि अ० [हिं० प्रोटना] १. उमंगित होना, उल्लसित होना, जोश में आना २ कहना, किसी बात को बार-बार कहना या रटना । उदा० १. काज मही सिवराजबली हिंदुवान बढ़ाइबे को उर ऊटै । - भूषण २. रास में लेवाइ गयो मोंहि मनमोहन के मोहन के मोहिबे को ऐसे आप ऊट गयो । - रघुनाथ आवतो हमारी गैल सोई ब्रज छल फेरि, बैर घर बाहेर की ऊटती तो ऊटती । —बेनी प्रवीन
ऊठ--- -संज्ञा, पु० [देश०] बहाना, मिस । उदा० कवि देव सखी के सकोचन सों, करि ऊठ सुमीसर को बितवे । -देव बैठी हुती ढिग आई अली सुदई सब ऊठ महीसों उठाय के । -कृष्ण कवि -संज्ञा, पु० [हिं० [उठना] उठान, जोम, जोश, उमंग | उदा० चूसि हों जो निचुरो सो हटकावत श्रीदुकं ऊठा ।
ऊठा
पर रसु ज्यों —बेनी प्रवीन
ऊठी
-संज्ञा, स्त्री० [सं० उत्थान] १. उठाने की विधि, लेने का ढंग २. हौसला, उमंग, उत्साह उदा० १. चोरी मैं कि जोरी में कि रोरी मैं कमोरी मैं कि भूमि झकझोरी मैं कि भोरिन की ऊठी मैं । २. मुठी बाँधे पासे नैन ऊठी बँधी भावते की गरे बँधी स्वास श्री निरास देह तिय की । —रघुनाथ
ग्वाल
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] १. भूत,
प्रेत २.
ऊत - संज्ञा, पु० [ देश ० जंगली, बेवकूफ, मूढ़ । उदा० १. भूतनाथ भूतनाथ पूतना पुकारै उन्हें ऊतरो न देत ऊत रोन लगे संग के । - देव २. है जमदूत सो ऊत कपूत या भूत के संग सो राम छुड़ावै ।
-अज्ञात
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ऊतरु
-संज्ञा, पु० [सं० उत्तर ] स्वीकृति । उदा० बिनती रति विपरीत की करी परसि पिय पाइ । हँसि अनबोले ही दियौ ऊतरु, दियो बताइ । - बिहारी
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ऊमर
तलवार
ऊन संज्ञा, पु० [सं० ] एक छोटी जिसका व्यवहार प्रायः स्त्रियां करती हैं । उदा० सैफन सों, तोपन सों, तबल रु ऊनन सौ दक्खिनी दुरानिन के माचे झकझोर है ।
- कवीन्द्र ऊनरी - वि० [हिं० उनये ] घिरा हुआ, छाया हुआ, झुका हुआ ।
उदा० ऊनरी घटा मैं वह चूनरी सुरंग पैन्हि, दूनरी चढ़ाय रंग करि गई खून री ।
ग्वाल
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ऊनो-वि० [सं० न्यून] १. कठिनं २. व्यर्थ । उदा० ऊनो भयौ जीबो अब सूनो सब जग दीस, दूनो दूनो दुख एक-एक छिन मैं सहौं ।
-घनानन्द
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ऊबट
-संज्ञा, पु० [सं० उद् ( बुरा ) + वर्त्य (मार्ग) कठिन मार्ग, खराब रास्ता २. ऊबड़खाबड़ वि०] ।
उदा० ऊबट लुटाऊ बटपारन बटाऊ लुटान नट कपट माखन चोर । ऊभना- - क्रि० प्र० [सं० उद्गवन] खड़ा होना, उठना २. ब्याकुल होना । उदा० अनि उभी जे खुभी श्रंखियान,
लुभी ललचानि, चुभी चितही में । -देव नेकु चले चिते छांह ऊभी ह्र' के ऊभी बाँह बार-बार अंगराय, पाँगुरीनु जोरि के ।
- आलम
पट. लंपट - देव
ऊमक
-संज्ञा, स्त्री० [सं० उमंग ] उठान, वेग । उदा० इक ऊमक अरु दमक सँहारे । लेहि साँस जब बीसक मारे । -लालकवि ऊमर — संज्ञा, पु० [सं० उदुम्बर ] गूलर, एक
फल ।