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पाह
आरौ
( २० प्रारौ-संज्ञा, पु० [सं० आरव] पारव, शब्द, | उदा० १.दीरघ मत सतकबिन के अर्थाशय लघुतर्ण आहट ।
कवि दुलह याते कियो कबि कुल कंठाभरणं उदा० दूरितें आय दुरै हो दिखाय अटा चढ़ि जाय
-दूलह गयौ तहाँ आरौ ।
-रसखानि
प्राशीविष-संज्ञा, पु० [सं०] सर्प, सांप । मालकस-संज्ञा, पु० [सं० आलस्य] सुस्ती, उदा० पाशीविष दोषन की दरी । गुरण सत पुरुषन पालस्य ।
कारण छरी ।
--केशव उदा० जम्माह को जानिये. सात्विक भावन माह होत पालकस आदिते, बरनत हैं कबि
आस--संज्ञा, पु० [सं० असु] असु, प्रारण, जीव नाह।
उदा० मनो कर जोर पाँचो तत्व एक ठीरह के -बेनी प्रवीन
पास लेने आपने को धाये चहुँ ओर तें माला--वि० [अ] १. उत्तम, बढ़िया, श्रेष्ठ २.
-रसलीन गौखा, ताखा । उदा० सोने की अँगीठिन में अगिन अधम होय.
प्रासा-संज्ञा, पु० [अ० असा] डंडा, सोने चाँदी
का डंडा जिसे बरात आदि में चोबदार शोभा होय धूम धार हू तो मृगमद पाला की ।
के लिए ले कर चलते है। -वाल
उदा० आप कहूँ आसा कहूँ तसबी कहूँ कितेब । आली-संज्ञा, स्त्री० [पहा०] क्यारी, चार विस्वा
-बिहारी के बराबर खेत ।
माँगत है भीख मौ कहावे भीख प्रभु हम उदा० प्राली चंदन की न क्यों पाली माली कूर ।
धरे याकी पासा याकों प्रासा धरे देखिये -दीनदयाल
-दास आले-वि० [सं० आर्द्र] १. गीला, पा, २.
प्रासार-संज्ञा, पु० [सं०] वृष्टि, वर्षा २. चिह्न उत्तम, अधिक [अ०] ।
लक्षण [अ०].. उदा० १. आड़े दै प्राले बसन जाड़ेह की रात,
उदा० पानँद पयोद सु बिनोद प्रासार बल मधुर साहस के के नेह बस सखी सबै ढिग जात
रसनिधि तरंगनि बिराजत उगचि । प्राबज--संज्ञा, पु० [हिं० आबझ] बाजा विशेष,
-घनानन्द ताशा । उदा० बहबंदी जन पढ़त बिरद बज्जत पावज
प्रासिलो-संज्ञा, पु० [अ० वसीला] जरिया, साज घन । तिहि समैं मुहूरत जानि के
बहाना । लग्यौ सिंहासन पै चढ़न । ---सोमनाथ
उदा० कहि धौं कछू पासिलो भयौं । कै काहू बन जीवन हयौ ।
-केशव प्रावरे-वि० [?] दीन, शिथिल । उदा० औसर न सोचें घनानंद बिमोचै जल लोचैं
पासना-संज्ञा, स्त्री० [फा० प्राशना] प्रेमिका,
नायिका । वही मूरति अरबरानि आवरे ।।
-घनानन्द
उदा० मध्य रस सिंधु मानौं सिंहल त पाई वह
तेरी पासनाउ गुन गहौ तीर पाई है। ऊषमा विषम विषमेखु स्वेद विदु चुवै अधर
-सेनापति न पावरे सुमन सर साधी सी । -देव
आहन-संज्ञा, पु० [फा०] लोहा।। प्रावस-संज्ञा, स्त्री० [हिं० औस] प्रौंस, माप । उदा० पाहिन जाति अहीर अहो तुम्हें कान्ह कहा उदा० अन्तर-पाँच उसास तचे प्रति, अंग उसीज
कहौ काहू की पीर न ।
-देव उदेग की आवस ।
-घनानन्द
पाहु-संज्ञा, पु० [सं० पाहव] साहस, हिम्मत । प्राशय-संज्ञा, पु० [सं०] १. कोष्ठागार, विभव उदा० रहयो राहु अति प्राहु करि मनु ससि सूर २. तात्पर्य ।
समेत ।
-बिहार
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