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आतताई
उदा० झिझकत भूमत मुदित अंचल को छोर दोऊ
मुसुकात गहि, हाथन सो प्राढ़ों है ।
- पद्माकर
बतलाई, पृ० [सं०] आततायिन] १. आग लगाने वाला २. विष देने वाला । उदा० बरनि बताइ, छिति ब्योम की तताई जेठ आयौ श्रातताई पुटपाक सौ करत है । --सेनापति प्रातमभूत – संज्ञा, पु० [सं० प्रात्म भू] कामदेव, मदन, रतिपति, काम-वासना ।
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उदा० सुन्दर मूरति आतम भूत की जारि धरीक में छार कियो है । -केशव बहु भांतिन हारि सिखाय सबै सखि, श्रातम भूत के दूत घने । --द्विजदेव श्रासन मारे बैठ सब जारि प्रातमाभूत
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प्रातस - संज्ञा स्त्री० [फा० श्रातिश] अग्नि, आग । उदा० ज्यों छिन एक हो में छुटि के लगे आतसबाजी ।
( १६ )
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-जायसी पावक,
जाति है प्रातस
- पद्माकर
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आदर्श]
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श्रावरस - संज्ञा, पु० [सं० शीशा, दर्पण | उदा० दोइ सौते ठाढ़ी जहाँ तहाँ प्राणप्यारो प्रायो आपु आदरस एक लीन्हे बड़े प्रोज को । - रघुनाथ आनक --संज्ञा, पु० [सं०] नगाड़ा, दुंदुभी, डंका । उदा० श्रानक की झनक अचानक ही कान परी देव जू सुनत बसही के सुध काज सों
-देव
श्रामा - संज्ञा, पु०, [सं० अ ] जल, पानी । उदा० दशरथ के राम, श्रौ स्याम के समर जैसे, ईस के गनेस श्री कमल पत्र आना के ।— गंग आबरखोर संज्ञा, पुं० [फा० आवरखोरा ] गिलास, २ प्याला, कटोरा । उदा० आबरखोरे छोर के जमाये बर्फ चीर के, सु बंगले उसीर के, भिजे गुलाब नीर के ।
ग्वाल
आप
-संज्ञा, पु० [सं०] १. रस २. जल । उदा० १. अच्छर हैं विशद करति उ आप सम जातें जगत की जड़ताऊ बिनसति है ।
-सेनापति
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-दास
श्राभासमनि -संज्ञा, स्त्री० [सं० प्रभास = असत्य + मनि = मरिण रत्न ] नकली रत्न । उदा० जाकी सुभदायक रुचिर, करते मनि गिरि जाइ । क्यों पाए आमासमनि होइ तासु चित चाइ । आमिर संज्ञा, पु० [अ०] हुक्म चलाने वाला । उदा० नव नागरि तन- मुलुकु लहि जोबन आमिर जौर । - बिहारी आयसु — संज्ञा, पु० [सं० आयस] १. लोहे का कवच २. प्रदेश, आज्ञा ।
उदा० श्रायसु को जोहैं आगे लीन्हे गुरुजन गन, बस में करति जो सुदेस रजधानी -दास आर संज्ञा, स्त्री० [हिं० आड़,] तिलक, टीका उदा० केशर आर दिये सुकमारिय । मैन मई झलक नवनारिय । --बोधा श्रारबी संज्ञा, पु० [सं० प्रारव] भीषण शब्द, गर्जना ।
उदा० कोट गढ़ गिरि ढाहें जिनकों दुरंग ना हैं बलकी अधिक छवि आरवी सहित है । -सेनापति -संज्ञा, स्त्री० [सं० प्रालि ] पंक्ति, समूह । उदा० रतिहू तें नीकी प्यारी प्यारे कान्ह जाके पाछे बेनी की बनक डोलें मानो अलि आलसी ।
श्राल
- आलम
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बारे
श्रालमतोग - संज्ञा, पु० [फा० आलम = झंडा + तोग, पताका ] झंडा और पताका । उदा० श्रानि लियो उन मरंगो लोग । आरम्भ - संज्ञा, पु० उदा० रंभाऊ न भाव सोभित सरीर आरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० प्राला] ताक, ताखा, अरवा २. ओर, तरफ [सं० आर ] उदा० विछवाए पौरिलौ बिछौना जरीबाफन के बखाये दीपक सुगंध सब आरी में ।
आलम तोग भाजे लाज - केशव [सं०] प्रथमोत्थान, उठान । ऐसे रुप को प्रारम्भ देखि, मधि आभा आभरन की । - - आलम
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—रघुनाथ
श्रारे-संज्ञा, पु० [हिं० श्राला] ताखे, आले । उदा० श्रारे मरिण खचित खरे, बासन बहु वास भरे, राखित गृह गृह श्रनेक, मनहु मैन साजै । -केशव