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रगट
अलंक
उदा० गाज अरगजा लागे चोवा लागे चहकन अरावा-संज्ञा, पु० [फा० अराबः] गाड़ी, शकट
-देव । वह गाड़ी जिस पर तोप लादी जाती है, २. तोप अरगट-संज्ञा, पु० [हिं० आड़+सं० गात्र] उदा० धौंसा धुनि छूटत, अराबे तरपति देव, विपरदा, चूंघट ।
कट कटक, देव घटा भट जुरिगे।। उदा० बाल छबीली तियन में बैठी पापु छिपाय,
-देव अरगट ही फानूस सी परगट परै लखाय अराना-क्रि० स० [हिं० अड़ाना] अड़ाना
-बिहारी रोकना, टिकाना, अटकाना । परगाई-वि० [बु०] चुप, अलग ।
उदा० भौंहै पराल अरेरति है उर कोर कटाक्षन उदा० ठाकुर गौर करै केहि कारण बैठि रहे मन
अोर अराये।
-देव में अरगाई।
–ठाकुर अरिनी-वि० [सं० अ+ऋणी] ऋण मुक्त परगाना-क्रि० अ० [हिं ० अलगाना] १. चुप्पी उदा० हौं अमरनि के आयु के, वृन्दनि हू हित साधना, मौन होना २. पृथक् होना
छाइ । तुम सौ अरिनी हौंउ नहि, सेवा उदा० बोधा किसू सों कहा कहिये सो विथा सुनि
करि बहुभाइ ।
-सोमनाथ पूरी रहै अरगाइ कै ।
-बोधा प्रहरना-क्रि० अ० [देश॰] लचकना, मुड़ना, झुकी रानि कहि रहु अरगाई ।
बलखाना । --तुलसीदास
उदा० तीखी दीठि तूख सी, पतुख सी अरुरि अंग, अरबीन-संज्ञा, पु० [फा० अरब] अरब देश के
सख सी मरुरि मुख लागत महख सी। घोड़े।
-देव उदा० नैकु थिर धाउ अभिराम गुन सुन्दर हौ नाहि घनस्याम यह काम अरबीन की।
अरूसा-संज्ञा, पु० [हिं० अड़सा] १. एक पौंधा, -सोमनाथ
जिसके फूल और पत्त यदमा, श्वास प्रादि रोग
के लिए अति उपयोगी हैं । २. बिना रूठे । परब्बीबारे संज्ञा, पु० [सं० अर्वन् अरबी
उदा० पीरे पान खाइ नीरै चूकि के न जाइ मान इन्द्र हिं० बारे=छोटे = उप] उपेन्द्र, श्री
खई मिटि जाइगी अरूसे ही के रस मैं । । कृष्ण २. अरब की संख्या ।
-सेनापति उदा० देखती करोरि बारी संगिनी हमारी है, अरबी वारे हम संग संका कत कीजिए।
परेरना-क्रि० अ० [अनु॰] रगड़ना । -दास
उदा० मदन सदन सुख सनमुख नूपुर निनाद रस अरविन्द ठाकुर-संज्ञा, पु० [सं० अरविन्द+
निदरि अनादर अरेरि मारु । -देव हिं० ठाकुर=स्वामी] कमल का स्वामी, सूर्य अरोच-संज्ञा, पु० [सं० अरुचि ] अरुचि, दिनकर ।
विरक्ति, घृणा, नफरत । उदा० देखि कै उजेरी रही ठगि सी गोविन्द उदा० मोच पंचबान को अरोच अभिमान को, . अरविन्द ठाकुरहि औनि आतप उतारे सों। । ये सोच पति प्राण को सकोच सखियन को।
-गोविन्द परस--संज्ञा, पु० [अ० अर्थ] १. अर्श, आकाश | अरोरना-क्रि० स० [बु.] चुन चुन कर लेना, २. स्व र्ग।
छॉट-छॉट कर लेना। उदा० १. सेनापति जीवन अधार निरधार तुम उदा० आनँद अरोरै जे सॅजोगी भोगी भाग भरे, जहाँ को ढरत तहाँ टूटत अरस ते
बिकल वियोगिन की छतियाँ सकाती हैं। -सेनापति
-चातुर परसीली-वि० [सं० अलस] रोषीली, क्रोध अलंक---संज्ञा, पु० [सं० अलक] केश, बाल ।
करने वाली, २. अलसीली, आलस्य से भारी। उदा० सोभा रूप सीउ सी अनप गून भरी ग्रीव उदा० अरसीली ढीली मिलनि मिली रसीली बाल
ऊपर अलंक, रतनावलि फनीन की। -दास
-देव
-देव
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