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अभेव
अरगजा
उदा०
| अमीकला-संज्ञा, पु० [सं० अमृत+कला = स्वाधीनपतिका उत्कला, वासक शय्या नाम । किरण] चंद्रमा, शशि। . अभिसंधिता बखानिये, और खंडिता नाम ।। उदा० अभुत अमी कला आनंदघन सुजस जोन्ह
-केशव रस वृष्टि सुहाई।
-घनानन्द अभेव-संज्ञा, पु० [सं० अभेद] अभेदता, अभि- अमुद-वि० [सं० प्र+हिं० मुंदना]-खिला न्नता, एकत्व ।
हुमा, विकसित ।। उदा० मलय को खीरिभाल, उरमाल मालती को, उदा० हाँसी बेलि बैन धुनि, कोकिल कपोल चारु एहो रघुनाथ राज रंगनि प्रभेव को ।
चिबकु गुलाब नाक चम्पक अमुंदरी । -रघुनाथ
-सोमनाथ अम्भ-संज्ञा, पु० [सं० अम्बू] जल, अथु ।
अमेजना-क्रि० स० [फा० आमेजन] मिलना, उदा० मित्र अमित्रन की अँखियान प्रवाहु सौ,
मिलावट होना । प्रानन्द सोक के अम्म को। टूटि गयी
उदा० कधी अलि मालती सुमन पै समन दै कैइकबार, विदेह महीप को सोच, सरासन
रीझि रहयो थकित सुगंधन अमेजे मैं। संभु को। -देव
-रसकुसुमाकर अमनैक-वि० [? ] बदमाश, शरारती, ढीठ ।
मोतिन की माल, मलमलवारी सारी सजें उदा० बाल गोपाल सबै अमनैक हैं, फागुन में
झलमल जोति होति चाँदनी अमेजे मैं । बचिहौब कहाँ ते । -बेनी प्रवीन
–बेनी कवि दौरि दधि दान काज ऐसो अमनैक तहाँ,
प्रमोव-संज्ञा, पु०[सं०ग्रामोद] सुगंध, सुरभि । प्राली बनमाली आइ बहियाँ गहत है।
उदा० धागे मागे तरुन तरायले चलत चले,:। -पद्माकर
तिनके प्रमोद मंद मंद मोद सकस। ममनी-संज्ञा, स्त्री० [सं० अवनि ] अवनि,
-भूषण पृथ्वी ।
प्ररंग-संज्ञा, पु० [देश॰] सुगन्ध का झोंका । उदा० जब पहुँची द्वार बरात प्रकास्यौ अमनी उदा० रुप के तरंगनि बरंगनि के अंगनि तेओर अकासौ ।
-सोमनाथ
सोधो के अरंग लै तरंग उठ पौन की । अमरन की-संज्ञा, स्त्री० [सं० अमर-देवता
-देव + हिं० को-कन्या] देव कन्या, देवता की अरकना-क्रि० प्र० [हिं० अटकना] अटकना, पुत्री।
फँसना, अड़ना २. परराकर गिरना, टकराना। उदा० अमर-मूरति कबि 'पालम' है मेरे जान, । उदा० १. सरक्यो मन मेरो मंजीरन मैं, कोऊ अमरावती तें पाई अमरन की।
मुरवा की जंजीरन मैं अरक्यो। -मालम
-ग्वाल अमान-वि० [सं०] १. अपरिमित, बहुत, २.
परकस-संज्ञा, पु० [हिं० अलकसाना]- आलस्य निरभिमान ।
सुस्ती, काहिली। उदा० १. मोहे महा महिमा वै कहैं, ये भरी रहै उदा० ग्वाल कवि कहै तै न पाप मैं बिलोक्यौ मान अमान अमोही।
बेनी प्रवीन
ब्रह्म, जुदो ह न जान भज्यो भ्रम्यो-भरकस अमायस-संज्ञा, पु० [? ] भोग-विलास, उपमोग।
परकसी-सज्ञा, पु० [सं० आलस्य पालस्य । उदा० अब यह गुसामाफ करि दीजै। चलिये उदा० बीती बरस सी आप पातीह कौंबहुरि अमायस कीजै ।
-बोधा
परकसी ऐसी चित बसी तो हमारी कहा अमारी-संज्ञा, स्त्री० [अ० ] हाथी के ऊपर
. बस है।
-सेनापति रहने वाला हौदा जिस पर एक छतरी रहती है। अरगजा--संज्ञा, पु० [हिं० अरग-+जा] एक सुगंउदा० ऊलर अमारी गं ग भारी बंब धौं धौं होत। धित पदार्थ, जो केशर, चंदन और कपूर आदि
-गंगा को मिला कर बनाया जाता है।
तें
।.
-ग्वाल
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