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हूनों
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हूनी-संज्ञा, पु० [सं० हूण] १. अशरफी, मोहर २. स्वर्ण ।
उदा० इसी वासते आपने मोहिं भेजा, उसे दीजिए बेग मंगाये हूनी । —चंद्रशेखर
हूल - संज्ञा, स्त्री० [सं० शूल ] बरखी की घोंप । २. पीड़ा, शूल ३. हर्ष,
१. तलवार या
. उल्लास ।
उदा० १. उर लीने प्रति चटपटी सुनि मुरली धुनि धाय । हौं हुलसी निकसी सु तौ गयो हूल सो लाय । -- बिहारी २. फूलनवारी मनोज की हूलन भूलनवारी मई यह को है । चातुर कवि हलना- क्रि० स० [हिं० हूल ] ढकेलना, भाले आदि की नोक का ठेलना, गड़ाना | उदा० फैलि- फैलि, फूलि - फूलि, फलि-फलि, हलिहुलि, झपक झपक भाई कुंजें चहूँ कोंद ते ।
--देव हे - सहा० क्रि० [ ब्रज०] थे । उदा० हे निपट सगबगे, हिये प्रेम सों, जाहर सजी रुखाई । सोमनाथ हेट्ठट्ठाणे अव्य० [हिं० हेठा नीच, निम्न + ठाणे (सं० स्थाने ) ] निम्न स्थान, नीचे । उदा० पढमं गुरु हेट्ठट्ठाणे लहुआ परिवेहु ।
- दास
हैडो - संज्ञा, पु० [ ? ] मोज, विरादरी का
भोजन ।
उदा० हेडो कियो हितू किधौं गान महि बूड़यो चित्त सुन्दर कवित्त माँहि कहा जी में घरी है । --सुन्दर हेति--संज्ञा, स्त्री० [सं०] १,
भाग की लपट,
प्रकाश ।
उदा० १. मदन की हेति, डारं रेति, मोहे मन लेति, कहे की ।
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ज्ञान हू के कन देति बात हिय — सेनापति हेबा - संज्ञा, स्त्री० [अ० हैबत] भय, दहशत | उदा० कहत ही बातें की गोपाल लाल जू सों बाल सूने खरिका में खरी माधुरी लसनि सों । इतने में माइ गई भौचक कहें सों एक गाउँबासी गोपबधू हेवा की हसिनि सों । - रघुनाथ हेरो -संज्ञा, स्त्री० [सं० हे + हि० री] पुकार, आवाज । मुहा० हेरा देना--जोर से पुकार, आवाज देना ।
होसना
कूदत भावत कोऊ गावत -- बकसी हंसराज हेलना -- क्रि० प्र० [सं० हेलन] १. क्रीड़ा करना, विनोद करना २. हँसी करना ३. प्रवेश करना, घुसना । उदा० १. कंचन सरोज से उरोज उमगोहे भोज खोज से मनोज के मनोज हेलियत है ।
- देव २. मोहिं न भावत ऐसो हँसी दिजदेव सब --द्विजदेव तुम नाहक हेलति । ३. सीतल समोर प्रति फूंक सी लगत तन, कोकिल की हूक हिये हूक हेलियत है ।
-गंग
हेला -- संज्ञा, पु० [हिं० हल्ला ] हाँक |
शोर, प्रकार, उदा० पारावार हेला महामेला में महेस पूछें, गौरन में कौन सी हमारी गनगौर है ।
--पद्माकर
[सं० हे + अलि ] सखो,
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उदा० कौऊ मटकत हेरी ।
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हेली -- संज्ञा, स्त्री० सहेली । उदा. कोटि जतन करि हारी हेली दिल की बात न खौलै । -- बकसी हंसराज हैकले - संज्ञा, पु० [सं० हय + हिं० गल ] घोड़े के गले का आभूषण । उदा० सारवत पेसबंद थरु हैकलै दूजी ।
हैफ - संज्ञा, पु० [अ०] खेद, अफसोस । उदा० हैफ मान जीव बसुधा के जसुधा के जसी टेर टेर तोंहि नोर पीर सो पिरत हैं । —चातुर हो—स० क्रि० [देश०] था, भूत कालिक सहायक क्रिया । उदा० बैर कियो सिव चाहत हो तब लौं अरि बाह्यो कटार कठैठो ।
- भूषरण
होरिहारन - संज्ञा, पु० [हिं० होरी] होली खेलने वाले, रंग डालने वाले । उदा० बोर जो द्वार न देहुँ केवार तो मैं होरिहारन हाथ परोती । ठाकुर होल - संज्ञा, पु० [अ० हौल ] भय, डर । उदा० धरकि धरकि हिय होल सो मभरि जाता ।
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पूंजी । होरन जटित - चन्द्रशेखर
- ग्वाल
होसना - क्रि० प्र० [अ० हवस ] उल्लसित होना, उमंगित होना ।
उदा० रावने के लीन्हें तयो गली बन बाग.