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हिलमा
( २३२
उदा० भकुना मरंगी अरु हिरसो हरामजादे, लाबर दगंल स्यार भांखिन दिखाये तँ । -ठाकुर हिलना- क्रि० प्र० [देश०] मिलना, परचना । उदा० वंशन के बशन सराहै शशि वंशीवर बंशीधर ससो हंसवंश दिनति है।
हिलाक -- स ज्ञा, पु० [फा०] मृत्यु | उदा० मुझ है हिलाक बोच मारना
का ।
हिवाला - संज्ञा स्त्री० [सं०
पाला ।
उदा० हिमकर आननी हिवाला सो ग्रीषम को ज्वाला के कसाला
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हीक संज्ञा, पु० [स ं०] हृदय ] २. हिचकी [स ं० हिक्का ] उदा० . घरकत होक नखलीक प्रजहूँ अलीक झलकति पीक
-देव
क्या मारे आलम
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हिम ] बर्फ..
हो- -सहा० क्रि० [बु० ] थी । उदा० आई ही गाय दुहाइबे कों, सु चुखाइ चली न बछान को घेरति । देव १. हृदय, दिल
होर - - संज्ञा, पु० [ ? ] १. हर्ष, मुख्यांश, तत्व, सार । उदा० १. ठाकुर कहत दुख सुख जान्यौई परत यह कह
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हिये तँ लाय काटियतु है । ग्वाल
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कुच कंदुकनि, पलकनि
- सोमनाथ प्रसन्नता २.
हीरा
संज्ञा. पु० [सं०] हृदय हि० हृदय २. एक बहुमूल्य रत्न | उदा० जोबन बजार बैठयो जौहरी लोगन को होरा वाके हाथ ह्व
हीर पीर जानें कहान्यो री ।
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- ठाकुर
हियरा] १.
मदन सब बिकात है । - देव
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ईर्ष्या,
हाँसल - - सज्ञा, जलन, स्पर्धा ।
स्त्री० [स ं० ईर्ष्या ]
कटितट
उदा० केसोदास मुखहास हीं सख ही छिन हो छिन सूछम छबीली छबि छाई है । - केशव
मुड़ना, पीठ
हटना -- क्रि० प्र० [ हि० हटना ] फेरना ।
उदा- छुटे वार देखे हुटे मोर पाखें । डीठि को गई बृन्द माखें । हुतासनमीत - संज्ञा, पु० [सं० हुताशन: भाग + 'मीत = मित्र ] भाग का मित्र, हवा, पवन ।
बिना
--- -दास
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हूतकार उदा० कान्ह के श्रासन बासनहीन हुतासनमीत को प्रासन कीजे । - केशव हुति श्रव्य ० [प्रा० हितो] लिए, वास्ते, सम्प्रदान कारक की विभक्ति, कारण और अपादान कारक का चिह्न, ओर से तरफ से । उदा० सब दिन तिनसौं लाल, तुम बन जाहुति फिरत हो । किती न बिथा बिसाल, उरनि हमारे होति है | - सोमनाथ हुलकना क्रि० ० [हिं० इलक] वेग से गिरना. उदा० हुलक हुलक्का से सुतुक्का से तरारिन में ललित ललाम जे लगाम लेत लक्का से । पद्माकर
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हुलसना - क्रि० प्र० [सं० उल्लसित] हिलनाडुलना, २. उल्लसित होना । उदा० साँवरे अंग लसै पटपीत, हिये हुलसे बनमाल सुहाई । - देव
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हूँछ संज्ञा, पु० [सं० उंछः ] सीला, फसल कट चुकने पर खेतों में जो अन्न प्रवशिष्ट रह जाता है और जिसे बीन कर मजदूर गुजर करते है, उसे सीला कहा जाता है ।
उदा० हूँछ बृत्ति मन मानि, समदृष्टी इच्छा रहित । करत तपस्वी ध्यान कंथा को श्रासन किए। ब्रजनिधि का मीठा
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हूखनि- -संज्ञा, पु० [ ? ] एक प्रकार
फल ।
उदा० ऊख पियूख मयूखनि लखै सुररुखै । हूटना - क्रि० अ० [सं० हुड् = चलना ] १. हटना, टलना २. मुड़ना, पीठ फेरना । उदा० हूटिगो सुमन संग छूटि गो सहेलिनि को भूलि गयो औौरे बनितान को निदरिबो । -प्रतापसाहि
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हूखनि, लाग श्रहख
-देव
रामनरपाल सों जुरत जंग बजरंग, धीर वैरी-बीरन की हिम्मति इति है । - कुमारमणि हठ्यो देना -- क्रि० स० [हिं० अँगूठा दिखाना ] अँगूठे दिखाना, अशिष्ट व्यवहार करना, गँवरपन दिखाना ।
उदा० मूनि में गनिबी कितौ हूठ्यौ लाहि ।
हुतकार - संज्ञा, स्त्री० [अनु० ] हुंकार, उदा० गरज्जे गयंदी ये जंजीर भारें । मनो हैं हनूमंत की हुतकारें ।
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दं श्रठि- बिहारी गर्जना |
- पद्माकर