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बैकुंठ
बोरनारी
( १७४ ) बोरनारी-संज्ञा, स्त्री० [सं० बारबधूटो] एक बेझा-संज्ञा, पु० [सं० वेध्य लक्ष्य शिकार प्रकार का बरसाती लाल कीड़ा, बीरबधूटी। निशाना । उदा० रङ्ग पाल भूषण विभूषित अरुण जीते उदा० पालम, सुकबि प्राई बातनि रिझाय मनु, पदुम-पवारी बीरनारी के बरण हैं।
मुरझानो मोहन मुरी है बेझा मारि सी । -रंगपाल
-आलम बुंदी-संज्ञा, स्त्री० [सं० बुंद] एक प्रकार का | बेट-वि० [देश॰] व्यर्थ, बेकार । मिष्ठान, बुंदिया।
उदा० पेट के बेट बेगारहि में जब लौं जियना तब उदा. बतराते बँदी बतासा हँसते बरफी रंच
ली सियना है।
-पद्माकर रुखाई की।
-बोधा बेड़िनी-संज्ञा, स्त्री॰ [?] नट जाति की स्त्रियां बुटंती-वि० [हिं० बूटना] दौड़वाली।
जो नाचने गाने का काम करती हैं। उदा० भली भाँति के अस्व एकै भुटती। उदा० कहूँ लोलिनी बेड़िनी गीत गावै ।। फबै फाल में चाल चल्नै बुटती।
--केशव -पद्माकर बेबहा-वि० [बं०] अत्यधिक, प्रचुर ।। बुवरिया-संज्ञा, स्त्री० [बु 1 पतली छड़ी।
उदा० भूमि हरी भई गैल गई मिटि नीर प्रवाह उदा. अपने हाथ न लिये बुदरिया अति सुन्दर
बहा बेबहा।
-ठाकुर सटकारी ।
--बकसी हंसराज बेर-संज्ञा, स्त्री० [देश॰] वापी, छोटा जलाशय, बूक - संज्ञा, स्त्री० [देश॰] मूठी, मुठ्ठीभर पिसी बावली । हुई वस्तु ।
उदा० बन, गिरि, बेरनि करेरे दुख कैसे करि उदा० दादुर को हक घाय करत अचकै उर,
कोवरे कुमार सुकुमार मेरे सहि हैं । कोकिला की कूक तापै बूक देती लोन की।
- पालम -'हजारा से बेह-संज्ञा, पु० [सं० वेध] छेद, छिद्र । बकना-क्रि स० [देश॰]१. प्रलाप करना, बताना उदा० हौं तो बलि बेसरि के बेह बेधिमारी हो । २. विस्मृत [वि०, प्रा० बुक्क] ।
-पालम उदा० १. कौतुक विलोकन सरोवर सरवीन संग बेहड़-संज्ञा, पु० [सं० विकट,] जंगल, अरण्य जात बिन बूके परमात परखति है।
विकट ऊबड़, खाबड़ ।
-प्रताप साहि उदा० बेहड़ काटत चल्यौ सुमाउ । रहयौ, पानि बूटना-क्रि० प्र० [देश॰] चले जाना, प्रस्थान
खम्हरौली गाँउ।।
-केशव करना।
बेला-संज्ञा, पु० [सं०] कटोरा। उदा० माया के बाजने बाजि गए, परभात ही उदा० बेला बेली लुटै तमहड़ी लुटिया झारी । भातखवा उठिं बूटे ।
---देव बटा - संज्ञा, पु० [सं० विटप] छोटा वृक्ष २. चने बेलि--संज्ञा, स्त्री० [सं० बेला] इत्र आदि रखने का हरा पोधा ३. चने का हरा दाना।
का पात्र, बेला, चमड़े की एक प्रकार की छोटी उदा० १. पै कहि पी हैं कहा सठ तही, बई _कुल्हिया जिससे तेल दूसरे पात्र में भरा जाता
उर मेरे बिसास को बंट। --द्विजदेव है। २. कटोरी।। बढ--संज्ञा, स्त्री० [देश॰] बीरबहूटी, एक प्रकार , उदा. पाछी-तिलौनी लसे अंगिया गसि चोवा की का बरसाती लाल कीड़ा।
बेलि बिराजति लोइन । ---घनानन्द उदा० रसके से रुख ससिसुखी, हँसि हँसि
२. बेला बेली लुटै तमहड़ी लुटिया झारी । बोलति बैन । गूढ़ मान मन क्यों रहै, भये
-सूदन बूढ़ रंग नैन ।
-बिहारी | बै--संज्ञा, पु० [हिं० बया] बया पक्षी। बृदा-संज्ञा, स्त्री० [सं० वृन्दा] १. राधिका का उदा० सामाँ सेन, सयान को सबै साहि के साथ । एक नाम २. तुलसी।
बाहुबली जयसाहित, फते तिहारै हाथ ।। उदा० चंद्र मल्ली-पुंज की नव कुंज बिहरत पाय,
-बिहारी जहाँ बृन्दा अति भली बिधि रची बनक बैकुंठ-संज्ञा, पु० [सं० वैकुंठ] विष्णु, रामचन्द्र । बनाय ।
- घनानन्द । उदा० अब सकल दान दे पूजि बिप्र ।
-सूदन
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