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बिसाना
बीर __ शतरंज खेला जाता है।
बिहायस-संज्ञा, पु० [सं० विहायस्] अाकाश, उदा० १. लीनी जब अंक में निसंक परजंक पर, नभ । अकलंक पाई जानि सुख की बिसाति है। उदा० भनत दिवाकर कमल से अमल अति देखि
-सोमनाथ
दुति बिधुने बिहायस मैं मूरी है। साँझ कैसो चंद मोर को सो अरविंद
-दिवाकर स्वाति बिंदु कैसो बादर बिसाति बसुधा | बीच पारना-क्रि० सं० [हिं० बीच = अन्तर+ ही की।
- देव पारना-डालना] मुहा० विभेदकरना, अन्तर २. सोभा की घिसाति चीरै धरत बहुत ___ डालना, परिवर्तन करना ।। भाँति चतुर है मुख गनि गनि डग धारी: उदा० जाके बड़े नयन में समाने मेरे नैन तासों
--सेनापति
बीच पार दीन्हों कैसे धीर गहियतु हैं । बिसाना-- क्रि० प्र. [सं. विष+हिं. ना
--बोधा (प्रत्य॰)] १. बिष का प्रभाव करना, विषाक्त बीछना -क्रि० स० [सं. विचयन] १. चुनना, करना। २. मुहा० बिसाना=सिर पर प्रा - पसन्द करके छाँठना । पड़ना, फट पड़ना।
उदा० होरी के दिवस कहें गोरी राधिका को उदा० १. धौंसही पढ़ाई परचो सो सुधि आई
देखि कान्ह जिय मांझ यों विचारयो बुद्धि कछु और न बिसानों प्रगटे ते कोप टटके ।
बीछेतै ।
-चिरजीवी -रघुनाथ बीजु-संज्ञा, स्त्री० [सं० विद्यत] बिजली । २. गंसी गाँसी नेह की बिसानी झर मेह उदा० बीजु, बिंब, लीने सब ही को मन बंधु है की रही न सुधि तेह की न देह की न गेह
-आलम की।
-दास बींदना-क्रि० सं० [सं० विद्] जानना, अनुमान बिसासी ---वि० [सं० अविश्वासी] कपटी, छली, करना । विश्वासघाती, जिस पर विश्वास न किया उदा० झुकि झुकि झपकौंहें पलनि फिरि फिरि जाय।
जुरि जमूहाय । बीदि पियागम नींद मिस उदा० (क) कबहूँ वा बिसासी सुजान के आँगन
दीं सब सखी उठाय।।
–बिहारी में असुवानहि लै बरसी। -- घनानन्द बीधना-क्रि० प्र० [बु०1 उलझना, फंसना ।। (स) देव दुखहासी निशि काशी करवट उदा० बीधे मों सों ान कै, गीधे गीहि तारि । सेज बासर विसासी परवत पेलियत है।।
- बिहारी -देव
ससकत सांस भर बीधे बहु फाँसै मरें। बि सूरना-क्रि० अ० [सं. विसूरण] चिता करना
- पद्माकर दुखमानना, फिक्रकरना, सोचना ।
बीधि-संज्ञा, स्त्री० [सं० विधि] अवसर, मौका, उदा० झरसि गई धौ कहूँ काहु की बियोग झार २. रीति, विधि । बार-बार बिकल बिसूरति जही तही ।
उदा० ब्याह की बीधि बुलाये गये सब, लोगन -द्विजदेव लागि गये दिन दूने ।
-- देव बिसोक-संज्ञा, पु० [?] बाण ।
बीधी--वि० [सं० विद्ध] फंसी हुई, बद्ध । उदा० बायु बहेगी सुगंध मुबारक लागिहै नैन । उदा० बीधी बात बातन, समीधी गात गातन, बिसोक सो आय के।
-मुबारक
उबीधी परजंक में निसंक अंक हितई । बिसोहैं-वि० [सं० विषाक्त] जहरीले, विष के
-देव प्रभाव वाले, विषाक्त ।।
बीर- संज्ञा, स्त्री० [ब्र०] १. कान का एक भूषण, उदा० आज बादर बिसोहैं बरसोहैं सों बिसोहैं ये । ढार २. सखी, सहेली।
-पजनेस उदा० १. भांजे नैन खाये पान हीरा जरी बीरें बिहराना-क्रि० अ० [सं० विघटन] फटना, कान ।
-पालम विदीर्ण होना।
२. एरी मेरी बीर जैसे तैसे इन प्रांखिन सों उदा० दल के दरारन तें कमठ करारे फटे. केरा
कढ़ि गो अबीर पै अहीर को कढ़ नहीं । के से पात बिहराने फन सेस के।-भूषण
-पद्माकर
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