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बैट
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( १७५
पुनि करहु बिजे बैकुंठ चित्र |
केशव
बैट -संज्ञा, स्त्री० [?] पंक्ति, कतार, समूह | उदा० कोटि फोरि, फौज फोरि, सलिता समूह फोरि हाथिन की बैट फोरि, कटक बिकट - केशव
राज्य की ओर
बर ।
बैठक -- संज्ञा, स्त्री० [?] जागीर, से प्राप्त भूमि या प्रदेश । उदा० बीर सिंघ को वृत्ति के बैठक दई बड़ौन ।
-- केशव बड़ौन - बैठकै लई जलाल साहि की मही । --केशव बैठक, गोष्ठी
[हिं० बैठक ]
बैठें - संज्ञा, स्त्री० मण्डली, समाज । उदा० राजन की राज रानी डोली फिर बन बन, नेठन की बैठें बैठे भरें बेटी-बहू जू ।
गंग बैंड़ा - वि० [हिं० बेड़ा ] कठिन टेढ़ा, तिरछा । पैंड़ों सम सूधो बैंड़ो कठिन किंबार द्वार, द्वारपाल नहीं तहाँ सबल भगति है ।
उदा०
- श्रालम
बेन संज्ञा, पु० [सं० बदन, प्रा० बयन ] मुख, बदन २. वाणी ।
उदा० १. जद्यपि बिहारी और मंदिरतें आए मोर उरज की छाप उर और छवि पावहीं। तद्यपि सुचैन वाहि प्रीतम को बैन चाहि सुधा सों लपेटे बैन श्रावत सुभावही बेनु बैन तज्यो उनि, बेन तें बोलौ न । - भूषरण बोल बिलोकत बुद्धि भगी है । -- केशव बैन सिकासी संज्ञा, पु० [फा० शिकस्तः जबां, हिं० बैन == वाणी + फा० शिकस्त = खंडित, भग्न ] |
१. खंडित वाणी ।
२. टूटी फूटी वाणी बोलने वाला, तुतला, अटक अटक कर बोलने वाला ।
उदा० नैन मिले मन को मिलवे पे मिले न कबौं करि बैन सिकासी । - तोष बेयर – संज्ञा, स्त्री [सं० बधूवर, प्रा बहुधर] १. स्त्री, बधू २. सखी ।
उदा० १. बैयर बगारन की श्ररि के श्रगारनि की लांघती पगारनि नगारन की घमकै ।
२. सब्द सत्य न लियो कबिन्ह न प्रयुक्त सो ठाउ । करै न बैयर हरिहि भी, कैंदरप के
सर घाउ
- दास
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बोहनी
बैरख – संज्ञा, स्त्री० [?] १. यश, कीर्ति २. ध्वजा [तु० बैरक ] |
उदा० १. काल गहें कर डोलत मोहिं कछू इक बैरख सी कर पाऊँ । गंग
बैरागर - संज्ञा, स्त्री० [?] खानि, राशि | उदा० गुरणमरिण बैरागर, धीरज को सागर । - केशव बैलती - संज्ञा, स्त्री० [हिं० ओोलती ] श्रोरी, श्रीलती । किनि बरसौ ये बरुनी
उदा० श्रानंदघन कितहूँ वैलतियाँ |
बैसंदर – संज्ञा, स्त्री० [ सं आग, अग्नि ।
उदा० वादिन बैसुंदर चहूँ,
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बन में लगी प्रचान । जीवत क्यों बृज बाचतो जौ ना पीवत
कान ।
—दास
बोइन -संज्ञा, स्त्री० [फा० बू] सुगन्ध-प्रवाह | उदा० भीतर भारे भंडार निजे भरि, मीज सुगंध की बोइन हो मैं । - देव
बोक - संज्ञा, पु० [हिं० बकरा ] बकरा, उदा० देवी के बोक लौं लोक लडात, हरा सिर नारि कटैगी । बोजागर - संज्ञा, पु० [फा० बोजः = शराब + गर - प्रत्य० ] चावल से बनी हुई शराब बेचने
वाला ।
- घनानन्द
वैश्वानर ] वैश्वानर,
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अज । पै डारि — देव
उदा० बोजागरनि बजार में, खेलत बाजी प्रेम देखत वाको रस रसन, तजत नैन व्रत नेम | -रहीम बोडर — संज्ञा, स्त्री० [सं० वोण्ट ] टहनी, पेड़ की डाल ।
उदा फूलो फली भली आली काहू सुरबाटिका की मानो बाल बोडर में बेलि परि रही है ।
- बेनी प्रवीन
बोह - संज्ञा पु० [हिं० बोझ] १. बोझ, मार २. डुबकी, गोत [हिं० बोर] ३. जागृत, उबुद्ध [ सं . बोध ]
उदा० १ हार छुट्यो पेन्हिबो प्रहार छोड़यो पान चित्रसारी को बिहार छोड़ यो बिरह के बोहते । रघुनाथ बोहनी - संज्ञा, स्त्री० [सं० बोधन- जगाना ] - जगाने वाली, उबुद्ध करने वाली । उदा० बाग में बिलोंकी अनुराग की सी बोहनी, सु सोहनी, सुधर, मन मोहनी मलिनियां । - देव