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बाबस
आजु भावतो करत सौज बाबकी ।
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उदा० १. बोर्यो बंस बिरद मैं जत मेरे बार बार बार जानि ।
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बाबस- - क्रि० वि० [सं० बल + वश, बाबस] बलात्, बलपूर्वक, जबरदस्ती । उदा० दे गए चित्त मैं सोच-विचार, सु लै गयेनींद छुधा बल बाबस । —देव बार - संज्ञा, पु० [सं० द्वार] १. २. कंघी ।
द्वार, दरवाजा
२. बार न कीन्ही पली ग्राह ते बारन बारन कीन्हीं । बारबधुटी - संज्ञा, स्त्री० [सं० ङ्गना, वैश्या ।
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( १६९
Į
बालक
ऐसो काम
- रघुनाथ
प्रा०
बौरी भइ बरबीर कोई पैठो - देव २. बारन बार सँवारि सिंगारत, मोतिन हार धरै तन गोरें । - मतिराम
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बारकसी — संज्ञा, स्त्री० [फा० बारकसी] घोड़े का एक साज, २. भारवाहन; बोझ ढोना । उदा० सबही पर माहिर जटित जवाहिर होती जाहिर बारकसी । बारगाह- -संज्ञा, स्त्री० [फा०] २. ड्योढ़ी । उदा० किंकिनी की धुनि तैसी
पद्माकर
डेरा, खेमा, तंबू,
नूपुर निनाद सुनि सौतिन के बाढ़त विषाद बार गाह की ।
-उदयनाथ
बरना क्रि० स० [सं० बारण] १. मना करना, २ छुड़ाना, मुक्त करना, रोकना 1 उदा० १. वह सुनि हे ऐहै देहे गारि चारि नैकु नूपुरनि बारि नारि नंद के बगर मैं ।
-संज्ञा, पु० [सं०] हाथी का २२
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श्रालम
भरि की हरि, बेनी प्रवीन बारवधू] बारा
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उदा० त्यों न करे करतार उबारक ज्यों चितई वह बारबधूटी । - केशव बारलाक- - वि० [अ० बर्राक] उज्ज्वल, शुभ्र धवल, चमकीला, जगमगाता हुआ । उदा० ताग सो तपासो बारलाक सो लुकंजन सो छिद्र कैसो छन्द कहिबे को छलियतु है । बलभद्र मिश्र बाल - संज्ञा, पु० [सं० बालक] पोच वर्ष का हाथी का बच्चा । उदा० उरभि उरभि गिरि भाँख रहे भाखरनि, बेलिन में बाँधे सृग बाल बिड़ बावरनि । गंग बच्चा २.
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बाहनि
मोथा वा जल पौधे ।
उदा० बालक मृणालनि ज्यों तोरि डारे सब काल कठिन कराल त्यों अकाल दीह दुख को । - केशव
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२. लौंग फूल दल सेवट लेखौ । एल फूल दल बालक देखो | -केशव बाला - वि० [फा०] १. जो ऊपर की ओर हो, ऊँचा २ एक वर्णवृत्त ३. मार्या, पत्नी ४. हाथ में पहनने का कड़ा ५ देवी ६. स्त्री । उदा० १. संग सखी परबीन प्रति प्रेम सों लीन मनि ग्रामरन जोति छबि होति बालाहि ।
५. कोटिक पाप कटे बिकट,
आजु सुफल मानो जनमु लखि
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वासवगीय संज्ञा [स०]धूटी नामक एक बरसाती कोड़ा |
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-दास
सटके दुख अकुलाइ । बाला के
पाइ । - सोमनाथ
उदा० गोपसुता बन बासव गोप ज्यों, कारी घटानि फिरें भटभेरं । -देव
बाह - संज्ञा, पु० [सं०] अश्व, घोड़ा । उदा० कहूँ देत बाह के प्रवाह उदावत राम, कहूँ देत कुंजर धजानि धूरि धूसरे । -गंग बाहकी संज्ञा स्त्री० [सं० वाहक + ई (प्रत्य०)] कहारिन, पालकी ले जाने वाली स्त्री ।
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उदा सजो बाहकी सखी सुहाई । लीन्ही शिविका कंध उठाई | रघुनाज बीसबिसे–क्रि० वि० [देश० ] बीसोविस्वा २. निश्चयपूर्वक उदा खेलिबोई हँसिबोई कहा सुख सों बसिबो बिसेबीस बिसारो । - देव बासा - संज्ञा, पु० [?] एक पक्षी । उदा० बासा को गर्ने न कछु जंग जुरै जुर्रन सों, बाजो-बाजी बेर बाजी बाजहू सौं ले रहे ।
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-पद्माकर
बाहनि संज्ञा, पु० [सं० प्रवाह + हिं०
प्रवाह, धारा ।
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बाहना क्रि० स० [सं० वहन] फेंकना, चलाना, डालना छोड़ना, ढोना, लादना । उदा० बान सी बुंदन के चदरा बदरा बिरहीन पै बाहत श्रावें ।
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- पद्माकर
न प्रत्य० ]
उदा० तकि मोरनि त्यों चख ढोर रहे, ढरि गौ हिय ढोरनि बाहनि की ।
-घनानन्द
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