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-देव
-भूषण
बाछेइ
बाब बाछेइ-वि० [सं० वांछित] चाहा हुआ, मुहा० बाढ़ धराना-शाण पर तलवार आदि अमीष्ट ।
के धार को तेज करना । उदा. कहै पद्माकर विमोह बस बिप्र तो, | उदा० ठाढ़े उरोजनि बाढ़ई की दृग, काम लोम बस लुब्धक तरयो सो बान बाछई।
कुठारिन बाढ़ धराये। -पद्माकर
बाथ-संज्ञा, पु० [राजस्था०] अंकमाल, गोद, बाजी-संज्ञा, स्त्री [फा० दगाबाजी] दगाबाजी, अंक। धोखा ।
उदा दृग मींचत मृगलोचनी धर्यो उलटि भुज उदा० चाहत हे तुमसों हम बाजी कियो उचित बाथ।
-बिहारी जो दियो हमै बाजी ।
- रघुनाथ बादला-संज्ञा, पु० [?] सोने चाँदी का तार, बाजीनदार-वि० [फा० बाजिदः] धूर्त, चालाक, कामदानीतार। वंचक ।
उदा. सेत सेत तोसक चेंदोवा चहँ ओर तने, उदा० मन बाजीनदार अनहद धुनि बाजे उलटि
सेत बादला ते सुखमा सी चारु च्वे रही । ___ बजावै । -बकसी हंसराज
-ग्वाल बा -अव्य० [सं० वर्जन] बिना. बगैर।
बादवान--संज्ञा, पु० [फा०] पाल । उदा० आलम ए अलि नैन अली मुख बारिज उदा। छूटे बादबानन बलंद जे जहाज मानो बाझ रहै नहिं तैसें ।
-आलम
मावत ढिलत नित नेह नदवारे से । बाटना-क्रि० सं० [हिं० बाट या बट्टा] सिल
-पजनेस आदि पर किसी चीज को पीसना ।
बान-संज्ञा, पु० [सं० वर्ण] वर्ण, रंग । उदा० काँच से कचरि जात सेष के असेष फन | उदा० केलि को कलपतरू सोभा ही को रतिपति, कमठ की पीठी पै पीठी सी बाटियतु है।
काम को पियूष ऐन काम ही के बान है ।
-आलम बाटन वारे को लगै ज्यों मेंहदी को रंग। बानक-संज्ञा, स्त्री० [हिं० बनाना] रूप, शोभा,
-रहीम छटा २. वेश । बाट पारना क्रि० स० [सं० बाट+हिं० उदा० १. कैसो मनोहर बानक मोहन सोहन पारना] लूट लेना, मार्ग में डाका डालना।
सुन्दर काम ते प्राली।
- रसखानि उदा० घाट पर ठाढ़ी बाट पारति बटोहिन की,
२. यहि बानिक मों मन बसौ सदा बिहारी चेटकी सी डीठि मन काको न हरति है।
लाल ।
-बिहारी -देव बाना-संज्ञा, पु० [सं० बाण] भाले के आकार बाठी-संज्ञा, पु० [बुं०] १. शरारती २. पथिक का हथियार, जिसमें झंडा भी बाँध देते हैं। उदा० १. अति बलबन्त गुनीले गरुवे गायें गेरत उदा० बाने फहराने घहराने घंटा गजन के नाहीं बाठी।
-बकसी हंसराज ठहराने राव राने देस देस के। -भूषण २. कह गिरधर कविराय सुनहु हो दूर के बाना बाँधना-क्रि० स० [बु० मुहावरा] जिम्मेबाठी ।
-गिरधर कविराय दारी लेना, किसी काम का बीड़ा लेना। बाडि-संज्ञा, स्त्री० [सं वाट, हिं० बाढि] उदा० ठाकुर कहत याकी बड़ी है कठिन बात शाण, तलवार आदि की धार ।
याको नही भूलि कहूँ बाँधियत बानो है। उदा० हरि बिन फेरत आइ व्रज गरजि गरजि
–ठाकुर ललकार । ये असाढ़ घन तड़ित की बाडि बानो-संज्ञा, स्त्री० [सं० वर्ण] १. चमक, धरी तलवार ।
--रसलीन
प्रामा २. वाणी, सरस्वती ३. वणिक । बाड़क-वि० [हिं० बार-किनारा, छोर] उदा० १. सेनापति बानी सौं न जाति है बखानी. किनारेदार ।
देह कुंदन ते अधिकानी बानी सरसति है। उदा० घूम घुमारिय घांघरिया सजि बाड़क
-सेनापति ओढ़नि प्रोढ़ चलै लजि ।
-बोधा बाब संज्ञा, पु० [फा०] १. सम्बन्ध २. योग्यबाढ़-संज्ञा, स्त्री० [सं० वाट] शाण, तलवार । लायक ३. द्वार, दरवाजा ४. परिच्छेद । आदि शस्त्रो की धार ।
उदा० १. तासों मिलबे को एहो कबि रघुनाथ
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