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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निसंत निसंत-संज्ञा, पु० [सं० निशांत] गृह, रहने । पाचोप, निहनहु बिधु अथवा प्रहै इत का स्थान । चंदन को लेप । -पद्माकर उदा० बन म कूलन पै मौर झौर झूलन पै | निहायत-संज्ञा, स्त्री० [अ०] १. अवस्था, भूग रस फूलन पै पजन निसंत की। दशा २. अंत, ३. अत्यन्त, बहुत [वि.] । -पजनेस | उदा० १. याते बिधि की भूल अनैसी। जोपै निसा संज्ञा, स्त्री० [फा० निशा] इच्छा, २. करत निहायत ऐसी।। -बोधा संतोष, प्रबोध, मुहा०-निसाभर-जीभर नीजन-वि० [सं० निर्जन] सूनसान, एकान्त, तृप्ति । निर्जन । उदा० १. प्राजु निसा भरि प्यारे ! निसाभरि उदा० घोर तरुनी जन बिपिन तरुनी जन ह' कीजिए कान्हर केलि खुसी मैं । निकसी निसंक निसि आतुर अतंक मैं । -ठाकुर -देव २. दास निसा लौं निसा करिये दिन- नीठि-क्रि० वि० [ब्र०] मुश्किल से, कठिनाई बूड़त ब्यौंत हजार करोंगी। -दास के साथ। निसासिनि-वि० सं० निःश्वास] निर्दय, उदा० बैंची खयून खरी खरके नहि नीठि खुले कठोर। खुभि पीठि धसी क्यों। -देव उदा० किये काम-कमनैत दृढ़ रहत निसानो, नीधन-संज्ञा, पु० [सं० निः+धन्या] १. बिना मोहि । अहे निसा तोहूँ नहीं निसा __ स्त्री के, योगी, साधु, सन्यासी, २. निर्धन, निसासिनि तोहि । -दास गरीब । निसिमुख-संज्ञा, स्त्री० [सं० निशा+मुख] | उदा० १. सेनापति सदा जामैं रूपौ है अधिक गोधूलि बेला, सन्ध्या। गुनौ, जाहि देखि नीधन की छतियाँ हैं उदा० छनरुचि सरि चमकति निसि मुख में । तरसी। -सेनापति -दास | नीबी-संज्ञा, स्त्री० [सं० नीवि] स्त्रियों के निसके-वि० सं० निरवक = निजसंपत्ति | अधोवस्त्र बंधन, फफंदी। विहीन] दरिद्र, रंक, निर्धन, संपति विहीन, उदा० तापर पकरि नीबी जंघन जकरि बड़े जिन्हे अच्छे बुरे की चिन्ता न हो। ढाढ़सनि करि दास श्रावति उद्धंग में । उदा० हौ कसु कै रिस के करौं, ये निसुके हँसि -दास देत । -बिहारी निसोती-वि० [सं० निः संयुक्त ] विशुद्ध, नीमा- संज्ञा, पु० [फा०] नीचे पहनने की कुर्ती २. एक पहनावा जो जामा के नीचे पहना पवित्र, जिसमें किसी भी प्रकार की मिलावट जाता है। न हो। उदा० स्वांस चंड आगे मारतंड की भभकै कहा उदा० दारिम-कुसुम के बरन झीने नीमा मधि. तन-ताप जैसी तैसी अनल निसोती ना। दीपति दिपति सु ललित लोने अंग की -नंदराम -घनानन्द नि हंग-वि० [निःसंग] १. एकाकी, अकेला, नीरो-अव्य० [हिं० निर] नजदीक, समीप, न एकमात्र २.अनासक्त ३.नंगा ४. बेशर्म। निकट । उदा० १. स्वांग सो नाग निहंग जटी लपटी, उदा० जीवन को जीवन-सलिल समसीरो सदा प्रवली अहि भांगहि खाइके। कहूँ नीरो दूरि निरमल धूरि धूसरो । -बेनी प्रवीन -देव २. अंग बोरि गंग में निहंग ह्रकै बेगि नुकरा-वि० [अ०] १. सफेद रंग का २. घोड़ों चलि पागे पाउ मैल धोइ बैल गैल लाइ का सफेद रंग [संज्ञा, पु.] ३. चांदी। लै। -आलम उदा० हरे नीले नुकरा सुरंग फुलवारी बोज, निहनना-क्रि० स० [सं० निहनन] मार डालना, रंगे रंग, जंग जितवैया बित्त बेस के। मारना । -सोमनाथ उदा० करब निषेध सु उक्ति को यहै प्रथम | नूत-संज्ञा, पु० [?] प्राम, आम्र । For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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