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-गंग
नेल ( १४२ )
नोमु उदा० १. घोर लगै घर बाहिरहू डर नूतन नूत। उदा० १. हुक्का बाँध्यो फेट में नै गहि लीन्हो दवागि जरे से ।
हाथ । चले राह में जात हैं लिए तमाकू २. प्राजु गोपाल जु बर-बध सँग नतन नत । साथ ।
-गिरधर कविराय। निकुंज बसे निसि ।
देव
२. किते न औगुन जग करत, नै बै चढ़ती नृत निसान दिसान मनौखर, सान कुसुम्म
बार ।
-बिहारी धरे सर पैना।
-बेनी प्रवीन नैची-अव्य० [हिं० नीचे] नीची, नीचे की नूल-वि० [सं० नवल] नवल, नवीन ।
ओर। उदा० भुवभार उतारन जाँचे विधि ने, तुम जग | उदा० त्यों पद्माकर पाट पै पाय दै नीर निहारक्षा काजै । तब उदित भये जदुकुल में
रत, नार के नेची । सूरज नूल तेज को साजे । - सोमनाथ नैठन-संज्ञा, पु० [हिं० नाटना] भगोड़े, कायर, नेग-संज्ञा, पु० [सं० नैयमिक] बाँट, हिस्सा । | डरपोक । उदा० मन तौ मनमोहन के सँग गौ, तन-लाज ! उदा० राजन की राजरानी डोली फिर बनबन मनोज के नेग परौ।
--द्विजदेव
नैठन की बैठे बैठे भरें बेटी-बहू जू । नेज-संज्ञा, स्त्री० [?] लग्गी, बाँस की वह
लग्गी जिससे पतंग आदि छुड़ायी जाती है। नैत-संज्ञा, स्त्री० [सं० नेत्र] एक प्रकार का उदा० जीवन मूरि सी नेज लिए इनहूँ चितयो महीन रेशमी वस्त्र ।। उनहूँ चितई री।
रसखानि | उदा० दिन होरी खेल की हराहर भरों हो नेठ-संज्ञा, पु० [सं० नष्ट, हिं० नाठ] १.
सुतौ, भाग जागें सोयौ निधरक नैत ढापि नष्ट, ध्वंस, नाश, २. अमाव ।
कै।
-घनानन्द उदा० १. मानत हे प्यास ग्रौ न जानत हे भूख
ओबरि जुड़ि तहाँ सोवनारा । अगर पोति मटू मानत हे संका धाम की न काम नेठ
सुख नेत अोहारा ।
--जायसी की।
-रघुनाथ नैर-संज्ञा, पु० [हिं० नगर] नगर, शहर । नेत-वि० [सं० नियत] स्थिर, अचंचल ।
उदा. मेरे कहे मेरे करु सिवाजी सों बैरि करि, उदा० दोष मैं निहारि गुन दोष कामना करत, गैर करि नैर निज नाहक उजारे तै । या विधि अनुज्ञा बरनत मति नेत हैं।
-भूषण
भहराय भगै धर लोक महामय सून भय नेर -अव्य० [सं० निकट, हिं० निर] निकट, अरि नैर सहू।
-मानकवि पास, नजदीक ।
नैऋत्य-संज्ञा, पु० [सं० नैऋत्य] राक्षस । उदा० कैसे री सुपानन पै नैन किये डेरे जैसे उदा० जार्यो शर पंजर छार करो । नैऋत्यन नॅदनंदन निहारे प्राय नेरे हैं। -पजनेस
को अति चित्त डरो।
--केशव नेव--संज्ञा, पु० [फा० नायब] सहायक, नायब । | नैस-वि० [देश॰ नैसुक नैस] थोड़ा, लेशमात्र। उदा० जहाँगीर को पंजा लेव । राजा कों मिल- उदा० मालम बिहात छिन जानो जात कोटि वी करि नेव ।
--केशव
दिन, कौन रैन की समाई सुरति न नैस नेवर-संज्ञा, पु० [सं० नूपुर] पैर में पहने जाने
-मालम वाला एक भूषण, पैजनिया ।
मोवन-संज्ञा पु० [सं०] चाबुक, बैलों के हाँकने उदा० सुनि के नेवर की धुनि सजनी देवर रिस का कोड़ा। कर धाये।
-बकसीहंसराज उदा० रतिजय लेखिबे की लेखनी सुलेख किंधौं, नेवाती-संज्ञा,पु० [निवात-कवच] कवच धारी,
मीनरथ सारथी के नोदन नकीने हैं। लड़ाई के लिए प्रस्तुत योद्धा ।
-केशव उदा० चाहतें सलाह करि नेवाती-नितंबं प्रव, नोमु-संज्ञा, स्त्री० [सं० नव] एकतिथि, नवलूट्यो लंक पुर चढ़ि बढ़ि तजि त्रास सी । रात्र वाली नवमी,।
दास | उदा० बलिपसु मोद भयो बिलपनि मंत्र ठयो, मै--संज्ञा, स्त्री [फा०] १. हुक्के की निगाली
अवधि की पास गनि लयो दिन नोम हैं। २. नदी [प्रा० नय] ३. नीति ।
--दास
-दूलह
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