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-गंग
निरजासं ( १४० )
निषेवी सम्हारै न सासुनि ।
-देव । उदा० यौबन ज्योति अनूप जगी ब्रज ऊपर रूप निरजोस-संज्ञा, पु० [सं० निर्यास] निचोड़,
की राशि निरी तू ।।
-देव सार २. वृक्षों से प्राप से आप निकलने वाला निरै-संज्ञा, पू० [सं० निरय] नरक । रस ।
उदा० छिति छोड़ि के राजसिरी बस पाय निरैउदा० कृस्न परम रस को निरजास । कृस्न-कृपा
पद राज बिराजत जैसे ।
-केशव तें यह बिसवास।
-घनानन्द
सूक्षम उदर में उदार निरै नाभी कूप, निक२. बोलत न पिक, सोई मौंन ह रही है,
सति ताते ततो पातक अतंक की। -देव पास पास निरजास नैननीर नीर बरसितु निरठी-वि० [देश॰] मस्त, मुग्ध ।
-सेनापति उदा० रूप-गुन-ऐंठी सूअमैठो उर पैठी बैठी निरजोस-संज्ञा, पु० [सं० निर्यास] निर्णय, __ लाड़नि निरैठी, मति बोलति हरै, हरी । २. निचोड़।
-घनानन्द उदा० बुझि समौ ब्रज लाडिली सों, हरि बोझ | निलत्तल-संज्ञा, पु० [सं० नीलोत्पल] नीलकी बात कहो निरजोसे ।
-देव कमल । निरवंग-वि० [सं० निः+दंभ] दम्भ रहित, उदा० लीले दुकूल दवाइ तहीं ललना ललना स्वाभाविक, शान्त, बिना किसी प्रदर्शन के।
कहि आज भले थर । मानो निलत्तल के उदा० प्रात प्रारंभ की खंभ लगी निरदंभ निरंभ दल को कन लै उड्यो भौंर बधू बिधु के सम्हारै न सासुनि ।
-देव
पर। निरवकी-वि० [सं० निः+ रद] बिना रद का, निलय-संज्ञा, पु० [सं०] मकान, गृह २. बिना दाँत का, अबोध ।
स्थान । उदा० पाप करिबे मैं सक्ति तरुनी ज्यौं राखी उदा० गतिनि के हार की बिहार के पहरू रूप अरु, पुन्य करिबे मैं जैसे बालक निर
किधौं प्रतिहार रतिपति के निलय के। दकी। -सूरतिमिश्र
-केशव निरसंचय-वि० [सं० निर् + संचय ] सारा
निवान-संज्ञा, पु० [राज० निमाण, हिं० निम्मन] संचय, सर्वस्व ।
तड़ाग, जलाशय । उदा० निरसंचय दाता सब रस ज्ञाता सदा साधु
उदा० रूप रति आनन ते चातरी सुजानन तें संगति प्यारी ।
-दास
नीर लै निवानन तें कौतुक निबेरो है। निरोट-वि० [हिं० निराल] १. निपट, सर्वथा,
-ठाकुर निरा, बिलकुल २. निराश।
निवेद-संज्ञा, स्त्री० [सं० निः+वेदना] वेदना उदा० १. पुनि निराट कलियुग जब आवै । तब
मुक्त, शांति, आराम, चैन । को पीर कौन की पावै ।
-बोधा
उदा० नारि गहो किन कान्हर नैक, कहौ किन २. मैं कीन्ही तोसों हँसी तू कत करी
औषद, व्याधि बताऊँ । बेदन प्राइ, निवेनिराट ।
-बोधा
द न देव, रहै दिन रैनि सु बैद न पाऊँ। निराटक-वि० [सं० निर्+हिं० अंटक] बिना
-देव किसी रोक या बाधा के निर्भय, निधड़क । उदा० साधति देह सनेह निराटक है मति कोऊ
निशंक अंक-संज्ञा, पु० [सं० निशंक-निर्भय+ । कहूँ अटकी सी।
-देव
अंक=हृदय] निर्भय हृदय, अत्यंत निर्भीक । निरास-संज्ञा, पु० [सं० नीर+अशनभोजन]
उदा० वायु पुत्र बालि पुत्र जामवंत धाइयो लंक १. नीर ही जिसका भोजन है अर्थात् पपीहा ।
में निशंक अंक लंकनाथ पाइयो। २. निराश ।
-केशव उदा० फिरि सुधि दै, सुधि द्याइ प्यो, इहिं निर- निषेवी-वि० [सं० निषेवक,] १. अनुसारिणी,
दई निरास । नई नई बहुर्यो दई ! दई २. निवासिनी, रहने वाली। उसासि उसास ।
-बिहारी | उदा० रलि गई रलकि झलक जलकन नीकी निरी-वि० [सं० निराश्रय] विलकुल, सर्वथा, अलक अराल छूटी नागिनि निषेवी सी। एकदम ।
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