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निबाधि
भीजे तन दोऊ कँपैं
न ।
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क्योंहूँ जप निबरै - बिहारी बाध] सुखद, सुख किसी को कष्ट न
१३६)
निबाधि-सं० पु० [सं० नि + पहुँचाने वाला, निर्दोष, जो दे | उदा० नाधि - उपाधि
को नित दुःख दियो तै । निवारन - संज्ञा, पु० अवरोध, ठहराव । उदा० कारन कौन निवारन न बालम प्रायौ । निबाल-संज्ञा, पु० [हिं०
का पुष्प । उदा० बकस्यौ फूल निबाल कौ मोहि भई परतीत हाथनि ही ते जानिये उर अन्तर की प्रीति । — मतिराम निबीत - वि० [निवृत्त ] मुक्त, राग रहित । उदा० गुननि अतीत, परिबीत बीतरागनि मैं, बाहरहू, भीतर निबीत रूप रावरो । --देव
निबाधिहि तू गन सौतिन -देव [सं० निवारण] रुकावट,
कौं कवि भूषन बेगि - भूषण निबाला ] एक प्रकार
मिबुकना - क्रि० अ० [सं० निर्मुक्त] छुटकारा पाना, छूटना, बंधन मुक्त होना । उदा० पीछे जसोमति श्रावति है कहि तोष तबै हरि जू डरि ऊठो । ऐसे उपाइ गई निबुकाइ चितै मुसकाइ दिखाइ अँगूठो । -तोष निबेरना- क्रि० स० [सं० निवृत्त] १. सुलझाना समझना २ छाँटना चुनना । ३. विचारना [बुं०] ।
उदा० १. कहीं कहा तोसों में सजनी अद्भुत गुन इन केरे । सिव बिरंचि सनकादिकहू सों नाहिन जात निबेरे । —बकसी हंसराज ३. ब्रज में यह रीति कुरीति चली, यह न्याउ न कोऊ निबेरत है । -ठाकुर निबेरा -- संज्ञा, पु० [बुं०] निर्णय, फैसला । उदा० बोधा नीति को निबेरो याही भाँति अहै आप को सराहै ताको आपहू सराहिये । - बोधा निबेस - - संज्ञा, पु० [सं० निवेश] १. घर २. डेरा खेमा । उदा० १. ब्रजसि व्रजेस के निबेस 'भुवनेस' बेस, चक्षुकृत चकृत विबकृत भृकुटि बँक
- भुवनेस कान्ह ही की कृपा धन धरम निबेस है ।
—दुलह
निरंभ
निबोधना- क्रि० स० [सं० नि + बोधन] अच्छी तरह जानना, विशेष जानकारी होना । उदा० जीव सौं जीवन, जीवन सों धन, सोधन — देव जीवत नाथ निबोधो । निबोनें -संज्ञा, पु० [हिं० नीबू ] नीबू | उदा० राखी रोकि भवन के कोने । एक भामिनी सोमनाथ उरज निबोन | निभालना-क्रि० स० [सं० निम प्रकाश, प्रभा ] प्रकाशित करना, उद्घाटित करना, खोलना । उदा० शंभु बसी करिबे को सुरेसहि काम पठायो है काम महा कौ, भाल के नैन निभालत ही, जरि पावक पावन भौ तनु ताकौ । - कुमारमरिण निभीची - वि० [देश०] निडर, निर्भय । उदा० आली दरीची की नीची उदीची की बोची निमीची ह्र ल्याउरी लालहि । निम्र ] नम्र, सुशीला,
--दास
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निमानी - वि० विनीता ।
[सं०
उदा० सुबरन तनवारी नारिनवारी बिछुरी प्रिया निमानी । -बोधा निमिखा -- संज्ञा, पु० [सं० निमिष] निमि नामक ऋषि जिनका वास पलकों में बताया गया है । २. निमेष, पल, क्षरण ।
उदा० खंजन मीन मृगीन की छोनी दुगंचल चंचलता निमिखा की । - देव नियेता - संज्ञा, पु० [सं० नेता ] नेता, नायक । उदा० देव सदा नरलोक के जेता । देवनि के नर —केशव नाहि नियेता । निरंग -- संज्ञा, पु० [सं०] एक प्रकार का बढ़िया लोहा । प्राचीनकाल में दो प्रकार का लोहा शस्त्र बनाने के कार्य में आता था, साँग और निरंग २. अंग रहित, कामदेव । उदा० अंग ही अंग अनंग के बान, निरंग ही रंग -देव रची रुचि रोचिनि । निरंध - वि० [सं० निर् + अंध ] १. अत्यधिक अंधकार से युक्त, २. अज्ञानी ।
उदा० अंध ज्यों अंधनि साथ निरंध कुर्वी परि - केशव न हिये पछितानौ । निरंभ - वि० [सं० निः + हिःमवा ] बिना रोस, बिना किसी प्रकार की आवाज किए, नीरव,
शान्त ।
उदा० प्रात अरंभ की खंभ लगी निरदंभ निरंभ
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