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निजर
नालकी
( १३७ ) किरचें उचट कलधौत के नालन की।
२. साँझ समैं बीथिन मैं ठानी दुगमीचनी -गंग
भोराई तिन राधे को जुगुति के निखोटि २. माने क्यों कनौड़ी बाल कीन्हों तुम ऐसो
खोटि। ख्याल भोड़िन के नाल लाल भटकि निगार-संज्ञा, पु० [फा०] १. चित्र, प्रतिमा, मटकि जू।
-तोष बुत, २. प्रेमपात्र, प्रेमिका। नालकी-संज्ञा, स्त्री० [सं० नाल-डंडा] खुली उदा० आनंद होय तबै सजनी, दर सोहबते यार हुई पालकी जिस पर मेहराबदार छाजन होती
निगार नशीनम् ।
-गंग
निग्रह- संज्ञा, पु० [सं०] त्याग, मुक्ति, छोड़ना, उदा० कंचन रंजित सुभग टुटीं अरु लुटी नालकी। उदा० अघ निग्रह संग्रह धर्म कथान, परिग्रह
-सूदन साधुन को गनु है।
-केशव पालकी मैं चढ़ि मति भूल मूढ़ नालकी निघट्टना-क्रि० सं० [हिं० निघट] समाप्त करना, मैं ।
-ग्वाल नष्ट करना। नासर-संज्ञा, पु० [सं० नाश नाश, ध्वंस ।। उदा० ठठ्ठ मरहट्टा के निघट्टि डारे बानन सौं, उदा० लोक चतुर्दश को करता कर तेरे रहै
पेसकसि लेत हैं प्रचंड तिल गाने की। उतपात औ नासर । -बोधा
-सोमनाथ नावक-संज्ञा, पु० [फा०] १. शिकारी २. एक निघरा-वि० [हिं० नि+घर] वह व्यक्ति प्रकार का छोटा बाण।
जिसके घर-बार न हो, खाना बदोश, निगोड़ा, उदा० सतसैया के दोहरे ज्यों नावक के तीर । २. निर्लज्ज ।
-अज्ञात उदा० देव तहाँ निघरे नट की बिगरी मति को नासी-संज्ञा, स्त्री० [सं० नाश] दुःख, विषाद ।
सगरी निसि नाच्यो ।
-देव उदा० जा मुख हाँसी लसी घनानंद, कैसें सुहाति निचल-वि० [सं० निः+चल] स्थिर, अटल । बसी तहाँ नासी ।
-घनानंद उदा० यह जीव नाच नाना करत निचली रहत नि कासि-संज्ञा, पु० [हिं० निकसना] मैदान,
न एकदम ।
-ब्रजनिधि रणक्षेत्र ।
निचली-वि० [सं० नि+चल] स्थिर, अचल । उदा० देखत न पीछे की निकासि कैयौ कोसन से, उदा० खिचली भुजा सों लाल पिचली हिये सों लैक करवाल बाग लेत बिलसत हैं।
लाय निचली रहे न डोले विचली पलंग पर। --सेनापति
-ग्वाल निकुंभिला-संज्ञा, स्त्री०[सं०] लंका की पश्चिम निचोर-संज्ञा, पु० [हिं० निचोल] स्त्रियों की दिशा की एक गुफा जिसमें मेघनाद देवी के ओढ़नी या चादर। समक्ष यज्ञादि क्रियाएँ करके रणस्थल के लिए | उदा० ग्वाल कवि कहै ऊन अंबर निचोरै जहाँ, प्रयाण करता था।
सूती बसनन तें तो बहे सात घोरा से । उदा० साधे करबालिका चढ़ाई मुंडमालिका,
-ग्वाल निकुंभिला में कलिका की मालिका जपतभो। | निछर–वि० [हिं० निछल, सं० निश्छल] निश्छल,
-समाधान
निष्कपट। निखसमी-वि० [सं० नि=बिना+अ० खस्म = उदा० रोगनि में सोगनि में, विपति में, कैसे लहै, पति] बिना पति के, रांड़, विधवा ।
ऐसे निछरे में मन राधा कृष्ण कहिरे । उदा० दीपमाला साधुन प्रसाधुन अमावस सु.
-सूरति मिश्र मानति संराध बैरी बधु ह्व निखसमी ।
। निछौरी-संज्ञा, स्त्री० [हिं० निछावर निछावर,
-देव बलिहारी। निखोट-क्रि० वि० [हिं० नि+खोट]-१. उदा० माता बरदायनि हौ दीन सुख दायनि हौ बेधड़क, निस्संकोच २. निर्दोष ।
गिरिजा गोसायनि हौ पग पै निछौरी मैं । उदा० निपट निखोट करें चोट पर चोट, लौटि
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-नंदराम जानत न, जुद्ध जुरै उध्धत प्रवाई के निजर-संज्ञा, स्त्री० [नजर] दृष्टि, निगाह ।
-पद्माकर । उदा० हाथी निजर संत मैं दीनी । सूड पसारि फा०-१८
एस
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