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नाका
नाल
लखे नीक नाकंद जे हैं अमोलें ॥
खंडि के तारिका नाथी ।
-मालम -पद्माकर नादर-वि० [अ० नादिर] १. श्रेष्ठ, उत्तम २. नाका-संज्ञा, पु० [हिं० नाकना] प्रवेश-द्वार, अद्भुत, अजीव । अन्दर जाने का रास्ता, फाटक ।
उदा० आदर कै राखौं प्रान कैसे हक्म नादर लै उदा० ऐसो राज रसा महँ करै।
जम के बिरादर ये बादर उनै रहै। भुमिया के नाके भुव धरै ॥ -केशव
-नन्दराम नाकाधीस-संज्ञा, पु० [सं० नाक=स्वर्ग+ | नादौट-संज्ञा, स्त्री० [?] विशेष प्रकार की आधीश=स्वामी] स्वर्ग के स्वामी, इन्द्र।
तलवार । उदा० सोने की सलाका सी सुनीं है हम साका । उदा. असिबर नादौ घलत न लौट मुंडनि मोट ऊधो, काम की पताका किधी नाकाधीस
काटि करें।
-पद्माकर परी है। -'हफीजुल्लाखाँ के हजारा' से
जाफा--संज्ञा, पु० [फा० नाफा] कस्तूरी की माखना-क्रि० सं० [सं० नष्ट, प्रा० नंख]
थैली, यह थैली कस्तूरी वाले मृगों की नाभि में छोड़ना, डालना २. रखना, पहनना ३. नष्ट
मिलती है। करना ।
उदा० ग्यानिन को ध्यान, अरु ध्यानिन को ध्यान, उदा० भई हौ सयानी तरुनाई सरसानी प्रीति
मान मानिन को मान, फार्थी मृगमद प्रीतम पत्यानी दूरि लाज उर नाखियों।
नाफा सौ।
-ग्वाल -मतिराम
नायक-संज्ञा, पु० [सं०] पदिक, माला के मध्य २. गैयन की भीर हूँ जै संगबलवीर मेरे,
का भूषण, हार के मध्य का रत्न । देखी तहाँ वीर चीर चंपक से नाखे
उदा० नन्द-मन्दिर कान्त कौतुक बनि रह्यौ भरि चुन । -ग्वाल
माव। मागबेलि-संज्ञा, स्त्री० [सं०] एक प्रकार का
मनहु मधिनायक विराजत अति प्रभूत लोहा ।
जराव ॥ उदा० पाउँ पेलि पोलाद सकेलि रसकेलि किधौं
-घनानन्द नागबेलि रसकेलि बस गजबेलि सी ।
नाय -संज्ञा, स्त्री० [सं० नायिका] स्वामिनी,
-देव नागा-वि० [सं० नग्न] १. दूषित, बुरा २.
लक्ष्मी, भगवान की पत्नी । अंझा,
उदा० एक होत इन्दु, एक सूरज औ चन्द, एक उदा० नागा करमन कौं करत दुरि छिपि पीछे,
होत है कुबेर, कछु बेर देत नाया के।
-देव हरि मैं परत कै वे सूली मैं परत हैं।
-सेनापति
| नारि-संज्ञा, स्त्री० [सं० नाल] १. गर्दन, नाजिर-संज्ञा, पु० [अ० नाजिर], देख-भाल
ग्रीवा, गला २. एक प्रकार की तोप ३. समूह,
खानि । करने वाला, सरदार २. अन्तःपुर का प्रबन्ध
उदा० सोचतें हिये में लाल लागी नारि है नई । करने वाली मुख्य परिचारिका [संज्ञा स्त्री०] उदा० १. नाजिर आनि दियो कर कागद भाजू
आलम
२. नारि कमान तीर असरार । कही उठि देर न लावै। - चन्द्रशेखर २. हाजिर पास खवास जे, जे नाजिर सब
चहुँ दिसि गोला चले अपार ॥
-केशव धाम । सब मिलि देति, ममारषी, झुकि-झुकि
३. अति उच्च अगारनि बनी पगारनि जनु करें सलाम ॥ चिन्तामणि नारि ।
-केशव -चन्द्रशेखर नाल-संज्ञा, पु० [अ०] १. तलवार आदि के नाथना-क्रि० सं० [सं० नाश], नष्ट करना, भ्यान की साम जो नोक पर मढी रहती है २. समाप्त करना २. नत्थी करना ३. बैल आदि पास, निकट (पं०) की नाक छेद कर रस्सी डालना ।
उदा० दसहूँ दिसि जोति जगामग होति, अनूपम उदा० १. राघवराइ को दूत बली जिहि दूखन | जीगन जालन की। मनोकाम चूम के चढ़े
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