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देव
धुरन्धर ( १३२ )
धौसा आनंद घन लाग्यौइ रहत सदा री ।
ग्रीष्म ऋतु, गर्मी का समय ।
-घनानन्द उदा० धूपकाल चंदन सी बरषा में बुंदन सी २. इंदिरा के उरकी धुरकी, अरु साधुन के
सीत काल सीतरच्छा कासमीरी साल सी । मुख की सुख की सज।
-गंग धुरन्धर--संज्ञा, पु० [सं०] बैल, वृषभ, भार- धूमधुज-संज्ञा, पु० [सं० धूमध्वज] आग, पावक । वाहक ।
उदा० काढ़े तेग सोह यों सेख । जनु तनु धरे धूमउदा. एक बिना न चल रथ जैसे धुरन्धर सूत कि
धुज देख ।
- केशव चक्र निपातै ।
-दास धैसो~संज्ञा, पु० [सं० दंश हि० धौंसा] त्रास, धुरलीक-संज्ञा, स्त्री० [सं० धुर+हिं० लीक] भय । आर्य मर्यादा, श्रेष्ठ रीति, उत्तमरीति ।
उदा० एक दिन ऐसो जामें दुस्मन को धसो है । उदा० मुरली सुनत बाम, कामजुरलीन उठि धाई
-गंग धुरलीक तजि, बीधी विधुरनि सौं।
धोकना- क्रि० प्र० [हिं० धुकना झपटना, टूट
-देव पड़ना। धुरवा-संज्ञा, पु० [?] घटा।
उदा० बीच बीच बाम, बीच बीच स्याम, सुन्दर १. धुरवा होंहि न अलि इहै धुंपा धरनि
ज्यों बीजु दाम स्याम घन देव धरि धोकि चहुँ कोद । जारत आवत जगत को पावस
के ।
-देव प्रथम पयोद।
--बिहारी धोप-संज्ञा, स्त्री० [सं० धूर्वा] तलवार, खङ्ग । कारे कारे धुरवा चिकूर चारु चमकत उदा० करि करि चित चौ4 रन पग रोपै धरि चंचला बरंगना सुप्रति अलबेली है।
धरि धोएँ धूम करें।
-पद्माकर -शिवदास
भीरन के अवसान गये मिलि धोपनि सों धुरीन-संज्ञा, पु० [धुरीण] बैल, वृषभ ।
चपला चमकें ते ।
-भूषण उदा० भार चलाइहि आये धुरीन भलेन के अंग धौनी-संज्ञा, स्त्री० [सं० धमनी] नाड़ी। सुभावै मलाई ।
उदा० हिये धकधकी है न धीरजु है धोनी मैं । धुरेटी-वि० [हिं० धूर+एटी (प्रत्य०] धूल
--पालम युक्त, मिट्टी में सनी हुई।
धौरा--संज्ञा, पु० [सं० धौरेय] भारवाहक, उदा० जाके सुख पेटी जात चन्द्र छबि मेटी जात बैल । छबिहू धुरेटी जात टेटी जात मान की। | उदा० कष्ट मांहि छूटे जब प्रान । धौरा को तन
-'हजारा' से धरयो निदान ।
-जसवंत सिंह धंधरि-संज्ञा, स्त्री० [देश॰] ढोलक ।
धोरे-अव्य० [देश॰] निकट, पास । उदा० ऐसी भई धूंधरि धमारि की सी-ताहि समय उदा० धौरे ही तें धाय धुकि आलम अधीन करि। पावस के भोरे मोर शोर के उठे अपीच ।
-आलम -द्विजदेव | धौवा-संज्ञा, पु० [हिं० धाई] धाई के वंशज । धूकन-संज्ञा, स्त्री० [हिं० अनु.] गड़गड़ाहट उदा० तजि सबै नात मात तात की न बात कहै की आवाज, गर्जना, घोर शब्द ।
धौवा धाइये कहाय केहूँ विधि जीजिये। उदा० कूकन मयूरन की धुखा के धूकन की भूकन
-आलम समीरन की खसन प्रसून की। -नाथ धौसा-संज्ञा, पु० [हिं० धौंसना] बड़ा नगाड़ा धूकना-क्रि० अ० [अनु० धुकधुक] काँपना, डका, सामथ्यं । हिलना।
उदा० दादुर दमामें झांझ झिल्ली, गरजनि उदा० गंग धकानि धुकी हरसिद्धि कबंध के
धौंसा, दामिनि मसालै देखि दुरै जग जीव धक्कन सों धर धूके। -गंग
-देव धूपकाल-संज्ञा, पु० [हिं० धूप+सं० काल] |
-दास
से।
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