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नन्द-संज्ञा, पु० [सं०] हर्ष, प्रानन्द [नंदित० | उदा० जाके बिलोकत बेनी प्रवीन, कहै दुति वि . 1
मैनका ह की नखी है। -बेनी प्रवीन उदा० (क) जुहारे जिन्हें इन्द्रानी सुयश बरणे बानी नग-संज्ञा, पु० [सं०] १. वृक्ष २. रत्न, मणि कहानी जिनकी कहि कहो सु को न नन्दत, । ३. पहाड़।
-देव
उदा० १. लाह सौं लसति नग सोहत सिंगार .(ख) जानति हौं नंदित करी यहि दिसि
हार छाया सोन जरद जुही की अति प्यारी नंद किसोर। -बिहारी
-सेनापति नकना-क्रि० स० [हिं० नाखना] लाँघना, पार
मोहे महा पन्नग अनेक नग खग कान दै दै करना, डौंकना।
कोल भील केते रीझि रहे हैं। -देव उदा० पेटनि पेटनि हो भटक्यौ बहु पेटनि की नगी-संज्ञा, स्त्री० [सं० नग+ई (प्रत्य॰)] १. पदवी न नक्यो जू ।
--केशव
। पहाड़ी स्त्री० २. पार्वती। पावनि अटकि मोही तोही सौंह सांवरे की
। उदा० आसुरी सुरी के कहा पन्नगी-नगी के कहा, छोड़ी कुलकानि लोक लोकनि नकन दै।
ऐसे ना परी के हैं सो-जैसे कूबरी के हैं। -ठाकुर
-राम रसिक नकारी-वि० [फा० नाकारा, स्त्रीः नाकारी]
नचैन-संज्ञा, पु० [हिं० न + चैन] अचैन निकम्मी, खराब ।
व्याकुलता । उदा० जूठन की खानहारी कुबिजा नकारी दारी
उदा० मिलत ही जाके बढ़ि जात घर मैंन चैन, करी घरवारी तक ब्रह्म तू कहत है।
तनकौं बसन डारियत बगराइ कै। -ग्वाल
-सेनापति नकीव-संज्ञा, पु० [अ०] चारण, भाट, प्रशस्ति
नछीछ-वि० [सं० अक्षुण्ण? न+छीछे- क्षीण] गायक २. कड़खा गाने वाला व्यक्ति।
अक्षुण्ण, जो क्षय न हो। उदा० छल छल छोभक छपाचर चुरैल आगेपीछे गैल गैल ऐल पारत नकीब से ।।
उदा० लाज की आँचनि या चित राचन नाच
__ नचाई हौं नेह नछीछ । नख-संज्ञा, स्त्री० [फा०] रेशम की डोर।
नजलन-वि० [हिं० न+सं० जल] जल उदा० लोटन लोटत गुली बंद तीरा रेखता की,
रहित, बिना पानी के, सूखा। नख तंग घाघरा न सुतरी बनाई है।
उदा. नज्जलन देखियत सज्जल जलद कारे-बेनी प्रवीन
कज्जल गिरीश कारे उपमा न पावहीं । मखना-क्रि० स० [हि० नाखना ] उल्लंघन
-नंदराम करना, नष्ट करना ।
नजीली-संज्ञा, स्त्री० [अ० नजील, पु०] १. उदा० दीह दुख खानी ते अयानी जे अठान ठानै | अतिथि, मेहमान २. संत्रस्त, भयभीत, [५० __ पति रति रीति की प्रनाली प्रेम नखि के। नजोर, वि.]।
-चन्द्रशेखर | उदा०५. होति न नजीली आँखि सखिन लजीली नखायुध-संज्ञा, पु० [सं०] सिंह, शेर ।
करै ढीली उर आँगी ढीली ढीली उदा० बोल्यो चरनायुध सु तौ, भयो नखायुध
पलकनि सो।
-देव नाद।
-मतिराम नजूम-संज्ञा, पु० [अ०] ज्योतिष विद्या । नखी-वि० [सं० नष्ट] नष्ट हुई, समाप्त । उदा० बैदक पढ़े हो की नजूम को निसारत हो,
-देव
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