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धारि
( १३१ )
धुरकी ३. सूर-सिरोमनि राम इतै, उत रावन धीर
२. ग्रीषम की गजब धुकी है धूप धाम धाम । धुरन्धर धार मैं । -देव
-वाल धारि-संज्ञा, पु० [सं० धार] धार, समूह ।
३. धौरे ही तें धाय धकि आलम अधीन उदा० हिमगिरि, हेमगिरि, गिरत गिरीस गिरि.
करि ।
-आलम और गिरि गिरत गिराए गजधारि के।
४. गंध धकानि धुकी हर सिद्धि, कबंध के -गंग धक्कन सो धर धूके।
-गंग पास सों प्रारत सम्हारत न सीस पट गजब
धुकार-संज्ञा, स्त्री० [अनु० धु] ध्वनि, आवाज, गुजारत गरीबन की धार पै। -पद्माकर ।
नगाड़े की ध्वनि २. बादल की गर्जना ।। धावन-संज्ञा, पु० [सं०] दूत, संदेशवाहक ।
उदा० १. धौसा धुकारन धसमसै घर के धरैया उवा० पाती लिखी अपने कर सों दई हे रघुनाथ
कसमसैं ।
-पद्माकर बुलाइ कै धावन ।।
-रघुनाथ
२. लहकि लहकि सीरी डोलति बयारि और धिगानो-संज्ञा, पू० [सं० डिंगर-शठ] ऊधम
बोलत मयूर माते सबनि लतान में । बाजी वाला खेल ।
धुरवा धुकारे पिक दादुर पुकार बक उदा० धिरिग बैताल ताल खेलत धिगानो मानो
बाँधि के कतारै उडै कारे बदरान में । लोहू की भभक भैरो ऐरो पैरो ह्व रहयो ।
-षटऋतु
काव्य सग्रह। --गंग
धुजाना-क्रि० सं० [सं० घ्वज] हिलाना, प्रकंपित घिराना-क्रि० अ० [सं० धीर] १. कम होना
करना। मंद पड़ना २. डराना धमकाना ३. धैर्य रखना
उदा० पगन धरत मग धरनि धुजावै, धूरि लावै (क्रि० सं०)।
निज ऊपर अतोल बलधारे तो। उदो० जबते बिछुरे कवि बोधा हितू तब ते उर
-चन्द्रशेखर दाह धिरातो नहीं ।
-बोधा
धावत प्रबल दल धूजत धरनि फन फुकरत ३. रितु पावस स्याम घटा उनई लखि के
फूरत फनीस लरजत है। -चन्द्रशेखर मन धीर धिरातो नहीं।
-बोधा धीजना-क्रि, सं० [सं० धैर्य] ठहरना, स्थिर
धुतरी-वि० [सं० धूर्त] दगाबाजिन, धुर्ता, छलहोना २. अंगीकार करना ३. धैर्य रखना ४.
करने वाली, धोखा देने वाली, छद्मवेशी । प्रसन्न होना, संतुष्ट होना।
उदा० कुंज के प्रवास पास भावते के जाइबे को उदा० चाह बढ़यो चित चाक-चढ़यौ सो फिरै तित
देखिके अंधेरी राति ऐसी बनी धुतरी। ही इत नेकु न धीजै। -घनानन्द
-रघुनाथ धीड़ा--संज्ञा, पु० [?] छोटा बच्चा ।।
धुर-संज्ञा, पु० [सं० धुर] प्रारम्म, २. अतिशय उदा० कहा चिड़ी की लात, कहा गाडर का
३. ध्र व अटल ४. प्रधान ५. बोझ भार। धोड़ा।
-गंग
उदा० १. धुरते मधुर मधु रसहू विरस करे मधुरस धुंध-संज्ञा, स्त्री० [सं. धूम्र+अंध] हवा में
बेधि उर गुरु रस फूली है। -देव मिली हुई धूल के कारण उत्पन्न अंधकार २.
२. हैं हम ही धुरकी दुखहाई विरंचि हवा में उड़ती हुई धूल ।।
विचारि के जाति रची ती। -घनानन्द उदा० धूर धुंध धू'घर धुवात धूम धुंधरित धुंधर
३. हाथ गह.यो ब्रजनाथ सुमाव ही छूटि गई सुधंधरित धुनि धुखान में।
धुर धीरजताई।
-देव -पजनेस | धुरकी-वि० [हिं० धुर-सीमा] १. अत्यधिक, धुकना-क्रि० प्र० [बुं०] जलना, प्रज्वलित होना | बहुत अधिक, चरम सीमा की २. धुकधुकी, २. झुकना, टूट पड़ना गिर पड़ना, ३. दौड़ना, जुगनू नामक गले का एक भूषण [संज्ञा, स्त्री झपटना। ४. हट जाना, नशे आदि का उदा० कोऊ एक रजक सु धोवत हो वस्त्रनि की. उखड़ जाना।
तहाँ गंग वासी पायो लीन धूर धुरकी। उदा० कीनो कहा मोसों कहौ स्याम हौं बलाइ
--सूरति मिश्र लेउँ, जात धकधकी उर अनल धुकति है।
धुरकी लगन लगी अति गाढ़ी बाढ़ी चोप -पालम
चटक जो प्यारी । नवल नेह रस झर
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