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-ठाकुर
धधकौन
धार धधकौमन--संज्ञा, पु० [हिं० धधकना] होलिका | धांधना-क्रि० स० [देश॰] बन्द करना, कैद में आग जलाने वाले, होली खेलने वाले, । करना । होरिहार ।
। उदा, जान न देहुँ कहूँ घर बाहर नैन कोठरियन उदा० धूम धधकौन की धधकी बजत तामे ऐसो
धाँधौं।
- बकसी हंसराज अति ऊधुम अनोखो दरसत है ।
और मैं कहाँ लौं कहौं नाम नर नारिन के, - पद्माकर
दुःख ते निकासि सुख मौन धाँधियतु है। घधाना-क्रि० सं० [हिं० धधकाना] प्राग-दहकाना, प्रज्वलित करना ।।
उरझो सुरझो त्रिबली की बली पुनि नाभि उदा० धावत धधात धिग धीर धम धुंधाधुंध
की सुन्दरता-धधिगो ।
-ठाकुर धाराधर अधर धराधर धुवान में ।
धंधाना- क्रि प्रा० [हि० धूमा] जलन
-पजनेस होना । धनंजय-संज्ञा, पु० [सं० ] अग्नि, पावक, २. उदा० आग सी धंधाती ताती लपटै सिराय गई अजुन ।
पौन पुरवाई लागी सीतल सुहान री। उदा० प्रफुलित निरखि पलासबन परिहरि
-ठाकूर मानिनि मान । तेरे हेत मनोज खलु-लियो धाधना-क्रि० स० [हिं० धाधि-ज्वाला ] धनंजय-बान ।
-दास जलाना, प्रज्वलित करना। धमंकना-क्रि० प्र० [हिं० धमक ] प्रकंपित उदा० चित लाग्यो जित जैये तितही 'रहीम' होना, हिलना, विचलित होना ।
नित, धाधवे के हेत इत एक बार आइये । उदा० चंड सोर चहुँ ओर सुनत धुवधाम धर्मक
--रहीम -चन्द्रशेखर धानी-संज्ञा, स्त्री० [सं०] स्थान, जगह । धमारि-संज्ञा, स्त्री० [अनु० धम] धम धम की उदा० संका ते सकानी, लंका रावन की रजआवाज, बजने की क्रिया २. एक राग ।
धानी, पजरत पानी धूरि-धानी भयो जात उदा. ऐसी भई धुंधरि धमारि की सी ताहि
-सेनापति समय पावस के भोरै मोर शोर कै उठे धाप-संज्ञा, पु० [हिं० टप्पा] दोड़ने का लंबा अपीच ।
-द्विजदेव मैदान। धरनी धरैया-संज्ञा, पु० [सं० धरणीधर ] / उदा० छेकी छिति छीरनिधि छाँड़ि धाप छत्रतर शेषनाग, शेषावतार लक्ष्मण ।।
कुंडलीकरत लोल चाकै मोल लेत हैं। उदा० मनै 'समाधान' गाज्यौ धरनी धरैया सुनि,
-केशव दास ससकि ससंक लंक पतिहू लुठत भो ।
धाम-संज्ञा, पु० [सं०] १. ज्योति, किरण २.
-समाधान गृह । घराधरी-संज्ञा, स्त्री०[सं० धराधर] पहाड़ी। उदा०धाम की है निधि जाके आगे चंद मंद दुति, उदा० उमड़ि अमित दल हय गय पयदल, भूधर
रूप है अनूप मध्य अंबर लसत है। बिदरि दरी भई धराधरी सी। -गंग
-सेनापति धरिहरि-संज्ञा, पु. [हिं० धुर+ह] धैर्य । धामरि-संज्ञा, स्त्री० [हिं० धुमरी] बेहोशी, उदा० अरी हरी अरहरि अजौं धर धरहरि हिय मूच्छी , गश। नारि ।
..- बिहारी उदा० प्राली सों आनँद बातनि लागि मचावति धरू-वि० [हिं० धरुना] कर्जदार, ऋणी।
घातनि घामरि घोल ।
-घनानन्द उदा० रति तो धरू के है, रमासी एक टूक, सो धार-संज्ञा, स्त्री० [सं०] १. सेना २. तलवार
मरू के हो सराहों, हौंस राधे के सुहाग ३. युद्ध, आक्रमण ४. समूह झुंड । की।
उदा० नीके निज ब्रज गिरिधर जिमि महाराज घलकना-क्रि० अ० [हिं० धड़कना] भयभीत
राख्यौ है मुसलमान धार तै बचाइ के । होना, दहल जाना, धड़कना ।
-सेनापति उदा० दास कहै बलकत बल महाबीरन्ह के, धल
दूग लाल दोऊ मुख विसाल कराल करि कत डर में महीप देस देस को। -दास
रिपू धारि में ।
-पद्माकर
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-देव
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