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दीद
दुनाना पहिरावनि पाई।
-केशव | दुचंद-वि० [फा० दो चंद] दुगना २. उत्तम, दीद-संज्ञा, पु० [फा०] दीदार, दर्शन ।
बढ़िया । उदा० तिहारा दीद हम पावें । दिलदार दर्द बिस- उदा. गुल गुलकंद को सुमंद करि दाखन कों, रावें
-बोध
देखहु दुचंद कला कंद की कमाई सी । दीपवृक्ष--संज्ञा, पु० [सं०] वृक्ष के प्राकार की
मन्द दुचंद भये बुध नहिं -पद्माकर बड़ी दीवट, जिस पर दीपक रखे जाते हैं।
भाषि सकै कबहू कबितान न । -द्विजदेव उदा० राजमौन आस पास, दीपवृक्ष के विलास, दुचिताई-संज्ञा, स्त्री॰ [हिं० दुचित्त] चिन्ता, जगत ज्योति यौवन जनु ज्योतिबंत पाये । अस्थिरता, खटका, आशंका ।
-केशव | उदा० और की और कहै सुनै देव महा दुचिताई दंदुज-संज्ञा, पु० [सं० द्वंद्वज] द्वंद्व से उत्पन्न
सखीन के बाढ़ति ।
-देव दशा, राग द्वेष से उत्पन्न-स्थिति ।
हित न हितैये मति मौसर बितैये दुचितैये उदा० दुंदुज असेष सहि लेइ सब बिपदादि संपदादि
बल सौतिन चितये बन चैत को। -देव अभिमान जी के मन मानिये । केशव गई-संज्ञा, स्त्री० [.] दालान प्रोसारा । दं वव-संज्ञा, पु० [सं० दुंदुभि] दुंदुभि, नगाड़ा। उदा० अति प्रभुत थमन की गई। गजदंत उदा० कहै पद्माकर त्यों करत कुलाहल न
सुकंचन चित्रमई ।
-केशव किंकिन कतार काम दुंदव सी दे रही ।
गामा-संज्ञा, स्त्री० [१] घोडे की एक चाल ।
-पद्माकर उदा० चहैं गाम चल्लै चहैं तौ दुगामा चहैं ये बिया दुबर-वि० [सं० दुर्बल] दुबल, कमजोर ।
चाल चल्लै भिरामा।
-पद्माकर उदा० अंबर एक न दुंबर हाथ, फिरै हर रातो- सुचोवं-संज्ञा, पु० [फा० दुचोबः] दो बाँसों वाला अडम्बर बाँधे ।
--बेनीप्रवीन खेमा । दुआनल-संज्ञा, पु० [सं० दावानल] दावाग्नि- उदा. विविध बनातें कीमखाप की कनातें तामें आग।
दीरघ दुचोवै हैं, सिचोवे हक्क हद्दी में । उदा० त्यों जम आवत आज कै नीठिह पाऊ के ओर दुभानल टूटे ।
--मालम दुजाति-संज्ञा, पु० [सं०] द्विज, , ब्राह्मण । दुकति-संज्ञा, स्त्री० [सं० द्विरुक्ति] दो बार उदा० गंग को नीर कियो प्रसनान दियो बहुदान कथन, द्विरुक्ति ।
दुजातिन ही को।
-चन्द्रशेखर उदा० जाने जे न जानं ते यों गोपनि तें कही बात बुजान-संज्ञा, पु० [सं० द्वि+जानु] दो जंघाएँ । जानत जे जान जानै तिनकी दुकति है। उदा० नासा लखे सुकत्तुंड नामी पै सुरस कुंड, रद
--सुन्दर है दुरद-संड देखत दुजान के ।
-दास दुकाना-क्रि० स० [देश॰] लुकाना, छिपाना । बुधा-वि० [सं० द्वि०] दोनों मोर वाली, दोनों उदा०-बन बन के तुम होहु फिरौ हथियार तरफ की २. दो प्रकार से [सं० विधा] । दुकावत ।
-बोधा उदा० डोलति है जहँ काम लता सु लची कुच दुकौंहीं-वि० [सं० द्वि] दूसरे।
गुच्छ दुरूह दुधा की।
--देव उदा० तिहि पैंडे कहा चलिये कबहूँ जिहि काँटो
२. एकहि देव दुदेह दुदेहरे देव दुधा यक लगै पग पोर दुकौंहीं।
-केशव देह दुहू मैं ।
-देब दुखहाइन-संज्ञा, स्त्री० [सं० दुख+हती= दुनाली-संज्ञा, स्वी० हिं० दो.+नाल] दो मारी हुई] दुख से हती हुई, दई मारी, निन्दा मलों वाली वह बंदूक जिसमें दो गोलियां एक करने वाली।
साथ मरी जाय । उदा० दुखहाइन चरचा नहीं पानन भानन पान ।। उदा० दमके दसौ दिसा दुनाली ड्योढ़ दामिनि के लगी फिर ढका दिए कानन कानन कान ।।
घन के नजारे मारे उर उलझन के। --बिहारी
-'हपीजुल्ला खां के हजारा से' सुगैंची--वि० [सं० द्विगुणित] दुहरी, दुगुनी। । दुनौना-क्रि० प्र० [सं० द्विनमन] झुकना, उदा० ह्व रस रीति सरीति जनावत नेह की गेह लचना । की देह दुगैची।
-पद्माकर | उदा० लंक नवला की कुचमारन दुनौने लगी, होन
-ग्वाल
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