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-दास
दुपंच-स्यंदन ( १२७ )
दुहुप लगी तन की चटक चारु सोने सी। —दास | दुरुह--वि० [सं० दुरुह] प्रगाढ़, दुरुह, अतयं दुपंच-स्यं वन-संज्ञा, पु० [सं० द्विपंचदश+ । २. सघन, मोटा। स्यंदन=रथा दशरथ 1
उदा० १. बढ़े बियोग दशा दुरुह मान बिरह सो उदा० है दुपंचस्यंदन सपथ, सौ हजार मन तोहि ।
जान ।
-दास
२. डोलति है जहँ काम लता सु लची कुच दुबाले--संज्ञा, पु० [हिं० दुमाला] फंदा, पाँश ।
गुच्छ दुरुह दुधा की।
-देव उदा० इक मीन बिचारो बिध्यो बनसी फिरि जाल के जाइ दुबाले पर्यो ।
दुरेषा-वि० [हिं० दूर] दूर का, दूरी से सम्ब -पद्माकर
न्धित । दुभीख-संज्ञा, पु० [सं० दुभिक्ष] अकाल, दुर्मिक्ष उदा० प्यो चरचानि परै नहिं चैन भरै नहि भीख
उदा० पाली दुरेधे को चोटनि नैम कहौ अब कौन दुमीख की भूखै।
उपाय बचैगो ।
-रसखानि -देव दुमची-संज्ञा, स्त्री० [देश॰], झूला झूलते समय
दुरोवर-संज्ञा, पु [सं० दुरोदर] १. जुआ, पेंग बढ़ाकर झोंका देने की क्रिया ।
२. जुआ का दॉव । उदा. टूटत कटि दुमची मचक, लचकि लचकि ! उदा. बाहनि के जोर काय कंचन के कोट गयो बचि जाइ ।
-बिहारी
पोट ह दमोदरु दुरोदरु को दाम् सो । दुमात-संज्ञा, स्त्री० [सं० द्वि+मातृ] दूसरी
-देव माता, सौतेली मा ।
सह-वि० [स० द्विदश+फा० हजार] बारह उदा० मात को मोह न द्रोह दुमात को, सोच न हजारी सेना। तात के गात दहे को।
-श्रीपति उदा० नौरंगसाह कृपाकर भारी मनसब दीन्हो दुमाला-संज्ञा, पु० [फा० दुमंजिल:] दुमंजिला
दुसह हजारी।
-लालकवि घर, दो मालावाला घर। उदा. ऐसी तो न गरमी गलीचन के फरसों में है
दुसार-वि० [सं० द्वि.+शल्य दोनों भोर छिद्र न बेसकीमती बनात के दुमाला में ।
वाला, पारपार, दो टुकड़े, जिसके दोनों ओर
छेद हो ।
-ग्वाल दुरंत-वि० [सं०] १. भारी, बहत बड़ा... उदा० रहि न सक्यौ कस करि रहयौ बस करि कठिन ।
लीन्हो मारि, भेदि दुसार कियौ हियो तन उदा० पाइये कैसिक सांझ तुरन्तहि देखुरी द्यौस दुति भेदै सार।
-बिहारी दुरन्त भयो है।
-देव
उदा० बेधि कौं होय दुसार कियो तउ ताही की दुर-संज्ञा, पु० [फा॰] मोती मुक्ता ।
मोचित चाह भरी है।
-ग्वाल उदा० दीन्हो दुर लुरुक में गुलाब को प्रसून गौस । साखा-संज्ञा, पु० [हिं० दो+शाखा] शमाभूलत झुकत झुलि झांकति परी सी है । दान, मोमबत्ती रखने का प्राधार ।
पजनेस उदा० ले चल्यो दुसाखा सुनि दीपक जगाइबे को दुरजो-वि० [सं० दुर्जय] अजेय, दुर्जेय, जिस
जोबन महीपति के आगे अनंग है। पर जल्दी विजय न प्राप्त की जा सके।
-कालिदास उदा०हैं उमगे उरज्यों उरज्यों दुरजो दुरजोग
बुहाग-संज्ञा, पु० [सं० दुर्भाग्य] अभाग्य, बुरा दुहूँ सर काढ़यो।
-देव
भाग्य । दुरजोग-संज्ञा, पु० [सं० दुर्योग] गाढ़े समय, संकट का समय।
उदा० प्रब ही की घरी ऐहै घरी कि पहर ऐहै. उदा० हैं उमगे उरज्यो उर, ज्यों दुरजो दुरजोग
कत पीरी जाति तेरो केतक दुहागू है। दुहूँ सर काढ़यो। - देव
-बालम दुरवा-वि० [सं० द्वि+रद] १. दो दाँतों वाला | दुहुप-वि० [सं द्वि०] दोनों, दो, द्वि । २. हाथी, [सं० द्विरद] ।
उदा० मोहे मुनि मानव बिलोकि मधु-मधुबन उदा. गज्जत गज दुरदा सहित बगुरदा गालिब
पान बुधि होत देव दानव दुहुप की। गुरदा देखि परे।
-पद्माकर |
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