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दायो
( १२५ )
दिवान
उदा० दायल दगा के देत हाय जिन्हें गाइये।
-ठाकुर J उदा. जटाजूट सोहत सिरहिं त्रिदसन पावत दायो-संज्ञा, पु० [हिं० दांव] बैर, दुश्मनी ।
भेव । सदा बसत कैलास पर दिग-दरिआई उदा० सूरति कहत सब जग ही कों ऐसो यह,
देव ।
-कुमार मणि किंधौं याकी हम ही सों पूरबलौ दायो है। दिति-संज्ञा, स्त्री॰ [सं० अदिति] अदिति, देव
-सूरतिमिश्र ताओं की माता । वारी-संज्ञा, स्त्री० [सं० दारिका] १. वैश्या, उदा० मोहति मूढ अमूढ, देव संग दिति सों रंडी २. दासी, लौंडी।
सोहै।
-केशव उदा० जूठन की खानहारी कुबिजा नकारी दारी, दिनरी संज्ञा, पु० [देश॰] राग विशेष ।। करी घरवारी तऊ ब्रह्म तू कहत है।
उदा० कोऊ दैना देन परस्पर कोऊ दिनरी गावै। -पवाल
-बकसी हंसराज दारू-संज्ञा, स्त्री० [फा०?] बारूद ।
दिनाई-संज्ञा, स्त्री० [बुं०] बिष प्रयोग की वस्तु, उदा० गढ़ मैं सोधि-सुरंग लगाई । सत सहस्त्र मन बाघ की मूंछों के बाल जो विषाक्त होते हैं। . दारू पाई।
-चन्द्रशेखर उदा० लगी मिम को अतुल दिनाई । तुरतहि दारो-संज्ञा, पु० [सं० दाडिम ] दाडिम,
मीच समै बिन पाई।
-लालकवि अनार ।
सो तौ देत ब्याधै बिष दुख्खन दिनाई देत उदा० चुम्बन की हौसै उपजावति हसत-मुख
पापन के पुंज के पहारन को ठीक ठाक । सारो सी पढ़ति बैन दारो दुति दन्त की।
-पद्माकर -देव विप्प-क्रि० प्र० [सं० दीप्ति] झलकना, दिखाई दार्यो-संज्ञा, पु० [सं० दाडिम ] दाडिम, पड़ना।
अनार नामक एक फल जो खाने में कसैला होता है। उदा० छुटे सब्ब सिप्पे कर दिग्ध टिप्पे-सबै सत्र उदा. दाड़िन के फूलन मैं दास दार्यो दानो
छिप्पे कहूँ हैं न दिप्पे ।
-पद्माकर भरि चूमि मधु रसनि लपेटत फिरत है। । विब-संज्ञा, पु० [सं० दिव्य] प्रमाण, सौगंध,
- दास
कसम । वाव-संज्ञा, पु० [सं०] बन, जङ्गल ।
उदा. जैसे अब चाहो तुम तैसे बावन दिब मैं उदा०-नील घन धम पै तड़ित दुति घुमि-घूमि,
देहों।
-बकसी हंसराज धू धरि सों धाई दाव पावक लपटि सी। दिमाकदार-वि० [अं० दिमाग+दार फा०]
- देव | १. बुद्धि वधंक, मस्तिष्क को शीतल रखने वाला, बावन - संज्ञा, पु० [फा० दामन] कुरते या दिमाग बढ़ाने वाला, २. अमिमानी। अगरखे का वह भाग जो नीचे लटकता रहता उदा० १. आई मैं अकेली, या कलिदंजा के कूलन है, अंचल ।
पै, न्हाई लाय केसन दिमाकदार सोंधे ये । उदा० दावन खचिकै भावन सो कहती तिय मो
-ग्वाल __ मन यौं प्रनकै पर्यो ।
-तोष दिलगीरी-संज्ञा, स्त्री० [फा० दिलगीर] दुख, बावनगीर-वि॰ [फा० दामनगीर] दामनगीर, - पीड़ा, संताप । दामन पकड़ने वाला।
उदा० यह दिल में दिल गीरी लखतु न आन । के उदा० सदा सुखदायक जे लखिबीर, भये इहि
दिल जाने मापनो के दिलजान । श्रावन दावनगीर। -बोधा
-बोधा विगति-संज्ञा, स्त्री० [सं. दिग्गति (दुग-गति)] । विषक-संज्ञा, पु० [सं० दिव्यक] एक प्रकार जहाँ तक नेत्रों की गति है सुदूर।
का सपं, शेषनाग । उदा० धीर धुनि बोले डोलैं दिगति-दिगंतनि लौं, | उदा चिक्करि दिक्करि उठहि दिवक भुवमार न ओज भरे अमित मनोज-फरमार ए।
थंहिं ।
-पद्माकर -द्विजदेव [विवान-संज्ञा, पु० [अ० दीवान] दरबार, राजदिग-दरिन ई-संज्ञा, पु० [सं० दिग् । फा. समा, कचहरी। दाराई -एक प्रकार का रेशमी-वस्त्र] दिन्वसन। । उदा० केसव कंस दिवान पितान बराबर ही
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