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को ।
ढपना-क्रि० स० [हिं० ढाँपना] ढाँपना, ढकना, । ढार–क्रि० वि० [हिं० ढाल] ढाल से, सुंदर चाल छिपाना।
ढाल से । उदा० केहू चली छुटि के लुटि सी, अंग कंपत उदा० ढरकि ढार दुरि ढिग भई ढीठि-ढिठाई _ ढंपत सीस किये नत। -बेनी प्रवीन
प्राइ ।
-बिहारी बई-संज्ञा, स्त्री० [हिं० ढहना - गिरना] धरना | ढारना-क्रि० स० [हिं० ढालना] १. झुकाना देना, आग्रह।
२. ढालना । उदा० सुख मूल गये दुख मूल लये पुनि पापरु उदा० १. ढारै निज कंधनि, नवल सुगंधनि अरु पुण्य छड़ाइ दई । कबौं काम ना क्रोध भी
मनि-बंधन-कनक करें।
-सोमनाथ लोभ गहे समुझे सपने की बदी की ढई । ढिग-संज्ञा, स्त्री० [बुं०] १. गोटा, संजाफ २.
-बोधा पास, निकट ।। ढगरना-क्रि० अ० [हिं० ढाल] ढलना, बहना, | उदा० १. लांक की लचक लसै लहँगा की ढिग नष्ट होना।
दुरै चूरी ही में चाहि चूर भयो वाही घरी उदा० औरन सौं बतराइ सकै न, छुधा अरु-नींद
-मालम तृषा ढगरी है।
-सोमनाथ ढिरना-क्रि० अ० [हिं० ढरना] १. गिरना, हरारा-वि० [हिं० ढार] चंचल, लोल, हिलने चू पड़ना २. ढलना। वाला ।
उदा० १. भने समाधान अभिमानी हनुमान मैं मैं, उदा० केसरिया पट, केसरि खीर, बनी गर गुंज
पीन-चक्र फेरा लगि ढेरा सो ढिरत भो । ___ को हार ढरारो। -रसखानि
-समाधान हरारे-वि० [हि० ढलना] ढलने वाले, किसी
ढीलना-क्रि० स० [हिं० ढीला] बंधन मुक्त को ओर शीघ्र ही द्रवीभूत या आकर्षित होने
- करना, छोड़ना, एक स्थान से दूसरे स्थान जाने वाले।
के लिए मौका देना । उदा० नीके, अनियारे, अति चपल, ढरारे, प्यारे,
उदा० बिसवासिनि सासु निगोड़ी ननंद न गेह सो ज्यों-ज्यों मैं निहारे त्यौं त्यौं खरी ललचात
नेकऊ ढीलतु है।
- बेनी प्रवीन -सेनापति | ढुकना-क्रि. अ. [देश॰] किसी बात को सुनने हलत-संज्ञा, पु० [हिं० ढाल+ऐत(प्रत्य॰)] ढाल के लिए पाड़ में छिपना, २. प्रवेश करना । मु० लेने वाले, सेना, रक्षक ।
ढंका देना-छिपकर सुनना । उदा० चोर सों छिपि हौं चल्यो यह जानि चित्त- उदा० दुखहाइनि चरचा नहीं पानन प्रानन आन । लजाइ । देखि द्वार ढलैत गण तब रहे मोह
लगी फिरति ढूंका दिये कानन कानन कान । चढ़ाइ। -गुमान मिश्र
-~-बिहारी ढांगन-संज्ञा, पू० [हिं० डंग] छहारा, खजुर ।
२. देव मधुकर ढक ढकत मधूक धोखे, उदा० ढाँगन के रस के चसके रति फूलनि की
माधवी मधुर मधु लालच लरे परत । रसखानि लुटाऊँ। -रसखानि
-देव ढानी-क्रि० स० [हिं० ढाहना] प्रवाहित करना, हुरकी - संज्ञा, स्त्री० [हिं० ढरकी] जुलाहों का बहाना, करना।
एक मौजार, जिससे बाने का सूत फेंका जाता उदा० जानै न बात तिन दै मन बांछित श्री जिन सों हित ढायौ।
----सोमनाथ उदा० देव कर जोरि कर मंचर को छोर गहि,
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