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डाटना
डौल
-ग्वाल
डाटना-क्रि० स० [हिं० डाट] संतुष्ट करना,
कहा।
-देव बुझाना, २. कसकर भरना, खूब पेट भर
डुंड-संज्ञा, पु० [सं० दण्ड] ढूंठ, वह पेड़ जो खाना।
सूख गया हो। उदा० ग्वाल कवि सुन्दर सुराही फेर, सोरा मांहिं. उदा० देव जू अनंग अंग होमि के भसम संग, अंग पोरा को बनाय रस प्यास डाटियत है ।
अंग उलह यो प्रखैबर ज्यों डुंड मैं ।
-देव डाढ़-सं० पु० [सं० दंष्ट्र] दाँत, चौभड़। Jइंडि-संज्ञा, पु० [सं० द्वंद्व] झगड़ा, लड़ाई । उदा०-धंसिक धरा के गाढ़े कोल की कड़ाके | उदा० चंडि नचत गन मंडि रचत धुनि इंडि डाढ़े पावत तरारे दिगपालन तमारे से
मचत जहँ ।।
-भूषण -भूषण डेल-संज्ञा, पु० [हिं० ढेला] ढेला, कंकड़ । . डाढे-वि० [सं० दग्ध०] जले हए, संतप्त ।
उदा० डेल सो बनाय आय मेलत सभा के बीच उदा० गोरस लै सब गोप चले सिगरे बृज लोग
लोगन कवित्त कीबो खेल करि जानो है । बियोग के डाढ़े। -देव
-ठाकुर डाबर--संज्ञा, पू० [सं० दभ्र] तलैया, गड़ही २.
डोंगर-संज्ञा, पु० [सं० तुंग] पहाड़ी, पर्वत २. गंदा पानी ।
टीला। उदा० अग्नि होत जल रूप सिंधु डाबर पद ! उदा० कोपि कुंवर मधुसाह हनिय हथ्थी मतवापावत । होत सुमेरह सेर स्यंघ ह स्यार
रिहु । कटिय दंत जुर बांह डील डोंगर से कहावत।
-ब्रजनिधि डारिह।
-केशव डावरी-संज्ञा, स्त्री० [सं० डिंब] लड़की, डोडा-संज्ञा, पु० [सं० तुंड] बड़ी इलायची के नवोढ़ा ।
प्राकार का फल । उदा० तरुनी की डग कहाँ मुनही डुलावै सुर, | उदा० कामरी फटी-सी हुती डोंडन की माला, मुरली के सुनत डुलावै डावरी। आलम
ताक, गोमती की माटी की न सुद्ध कहूँ डासन--संज्ञा, पु० [सं० दंशन] . दंशन,
माटकी।
-नरोत्तमदास काटने की क्रिया २. बिछौना ।
डोरै- संज्ञा, स्त्री० [बुं०] बूंदें।। उदा० बासन बास भये विष केसव डासन डासन
उदा० डोरै जलधरन की सरन हिलोरें आजु, की गति लीने ।
- केशव
घनन की घोरै धरा फोरें कढ़ी जाती हैं। डिढ--वि० सं० दृढ़] दृढ़, अटल ।
- चातुर कवि उदा० कैयो देस परिबढ़ कैयौ कोट-गढ़ी-गढ़ कीन्हे डौर --संज्ञा, पु० [हिं० डील] १. रचना, बनाअढ़ अढ़ डिढ़ काहू में न गति है।
वट, ढंग २. प्रयत्न, मार्ग, ढब ।।
-भूषण | उदा० १. केसर की खौरि करि कुंडल मकरडिढ़ाना-क्रि० स० [सं० दृढ़] स्थिर करना, डौर कान मैं पहिरि कान्ह बंशी अधरा धरो । दृढ़ करना, जमाना।
-तोष उदा० अरु इक भूकुटी कुटिल डिढ़ायें । मन २. उतर हेत इहि प्रस्न के, रचो पताका डौर । मन्मथ को चाप चढ़ायें। -सोमनाथ
-दास डिलारे-वि० [हिं० डील+वार] डीलडौल डौल-संज्ञा, पु० [हिं० डोल] बरावरी, युक्ति, वाले, बड़े कद वाले।
उपाय । उदा० बलक्क झलक्क ललक्कै उमंडै । बुखारेह मुहा० डौल बाँधना, युक्ति बैठाना; बराबरी के हैं डिलारे घुमंडै ।
-पद्माकर करना, उपाय करना । डीबी-संज्ञा, स्त्री० [हिं० डिब्बा] भिक्षा-पत्र, उदा० पवन को तोल कर, गगन को मोल कर. एक छोटा ढक्कनदार बर्तन ।।
कवि सों बाँधहि डोल ऐसो नर भाट है। उदा० जोगही गरीबी, तौ गुमान करि लीबी
-गंग कहा, हाथ गही डीवी, तब बादी अरु बीबी |
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